पाँचवां श्राद्ध

पाँचवां श्राद्ध

29 सितम्बर, 2023 जानें श्राद्ध के पॉंचवें दिन का महत्व


श्राद्ध का पाँचवां दिन(Fifth day of Shraddha)

श्राद्ध के पांचवें दिन में उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जो अविवाहित होते है या फिर उनकी मृत्यु पंचमी तिथि को हुई हो। पंचमी तिथि के दिन श्राद्ध कर्म करने वाले श्राद्धकर्ता को उत्तम लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

पाँचवें श्राद्ध का महत्व (Importance of fifth Shraddha)

श्राद्ध का विशेष महत्त्व रहता है। पितृ ऋण से मुक्ति पाने का यह एक मात्रा माध्यम है। श्राद्ध करने से पितरों को संतुष्टि प्राप्त होती है। इसलिए यह आवश्यक माना गया है। श्राद्ध करने से पितरों को मोक्ष मिलता है साथ ही श्राद्धकर्ता का भी कल्याण होता है। श्राद्ध कर्म से संतुष्ट होकर पितर श्राद्धकर्ता को सुख, समृद्धि, दीर्घायु, धन आदि का आशीर्वाद देते है और मृत्यु के बाद उन्हें स्वर्ग और मोक्ष भी प्रदान करते है।

पाँचवें श्राद्ध की तिथि और शुभ मुहूर्त (Date and Auspicious time of fifth Shraddha)

पाँचवां श्राद्ध पञ्चमी तिथि आरम्भ - 03 अक्टूबर, 2023 को सुबह 06:11 बजे पञ्चमी तिथि ख़त्म - 04 अक्टूबर 2023 को सुबह 05:33 बजे

पञ्चमी श्राद्ध मंगलवार, 03 अक्टूबर, 2023 का शुभ मुहूर्त कुतुप मूहूर्त - सुबह 11:46 बजे से दोपहर 12:34 बजे तक अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट रौहिण मूहूर्त - दोपहर 12:34 बजे से दोपहर 01:21 बजे तक अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट अपराह्न काल - दोपहर 01:21बजे से दोपहर 03:43 बजे तक अवधि - 02 घण्टे 22 मिनट

पाँचवें श्राद्ध की कहानी (Story of fifth Shraddha)

हिंदू पवित्र ग्रंथों के अनुसार, भगवान ब्रह्मा के 10 पुत्रों में से ऋषि अत्रि द्वारा निमि ऋषि को श्राद्ध के अनुष्ठानों को समझने वाले पहले व्यक्ति थे। अपने पुत्र की अचानक मृत्यु से दुखी होकर, निमि ऋषि ने नारद मुनि के मार्गदर्शन में अपने पूर्वजों का आह्वान करना शुरू कर दिया। उनके पूर्वज उनके सामने आए और कहा, “निमि, आपका पुत्र पहले ही पितृ देवों में स्थान ले चुका है। चूँकि आपने अपने दिवंगत पुत्र की आत्मा को भोजन कराने और उसकी पूजा करने का कार्य किया है, यह वैसा ही है जैसे आपने पितृ यज्ञ किया हो। तभी से श्राद्ध को सनातन धर्म का महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है।

पाँचवें श्राद्ध की विधि (Method of fifth Shraddha)

  • पांचवां श्राद्ध कर्म करने के लिए किसी योग्य ब्राह्मण को घर पर आमंत्रित करना चाहिए।
  • ब्राह्मण को पकवानों का भोजन करवाए और फिर उन्हें उचित दान देकर संतुष्ट करना चाहिए।
  • साथ ही किसी जरुरतमंदो और गरीब को भी दान और सहायता करनी चाहिए। ऐसा करने से पितर प्रसन्न हो जाते हैं।
  • भोजन का कुछ भाग गाय, कौआ, कुत्ते और चींटी के लिए भी निकालना चाहिए। उन्हें भोजन कराते समय अपने पूर्वजों का स्मरण करते हुए उन्हें भी भोजन ग्रहण करने की विनती करनी चाहिए।
  • श्राद्ध कर्म करने के बाद जल द्वारा तर्पण अवश्य करना चाहिए।
  • श्राद्ध कर्म को अपने घर या फिर अपनी भूमि पर करना चाहिए।
  • किसी दूसरे की जमीन या दूसरे के घर पर श्राद्ध भूलकर नहीं करना चाहिए।
  • आप चाहें तो सार्वजानिक स्थान पर श्राद्ध कर्म कर सकते है। श्राद्ध कर्म करने के दौरान मन में श्रद्धा भाव रखना चाहिए। तभी आपका श्राद्ध कर्म फलदायी होता है।

पाँचवें श्राद्ध से जुड़े रहस्य (Mysteries Related to the Fifth Shraddha)

पितृपक्ष के समय जिन लोगों की मृत्यु होती है उन्हें स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है। भले ही मान्यताओं के अनुसार इन दिनों में कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता है परन्तु ये 16 दिन अशुभ नहीं होते हैं। ऐसी मान्यता है कि पीपल के पेड़ पर देवी-देवताओं के अतिरिक्त पितरों का भी वास होता है। इसलिए यदि कोई व्यक्ति पीपल में जल देता है और प्रतिदिन घी का दीपक पीपल के नीचे जलाता है तो ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं। साथ ही ऐसे व्यक्तियों को पितृ दोष से भी मुक्ति प्राप्त होती है।

पितरों का आहार है अन्न-जल का सारतत्व होता है। जैसे मनुष्यों का आहार अन्न होता है, पशुओं का आहार तृण होता है, उसी प्रकार पितरों का आहार अन्न का सारतत्व (गंध और रस) होता है। वे अन्न व जल का सारतत्व ही ग्रहण करते हैं।

पाँचवें श्राद्ध में क्या करें (What to do in the fifth Shraddha)

पितृ के निमित लक्ष्मी नारायण का ध्यान करते हुए गीता के पाँचवें अध्याय का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से पितरों को इसका फल प्राप्त होता है और उन्हें मोक्ष मिलता है। पितरों का आशीर्वाद पाने हेतु श्राद्ध, तर्पण, दान-पुण्य और पिंडदान आदि करना चाहिए। श्राद्ध में गाय का दूध, दही और घी उपयोग करना चाहिए। इसका विशेष महत्त्व रहता है। ऐसा माना जाता है कि पितरों को पुष्प अर्पित करना अच्छा होता है। ऐसा करने से पितर आनंदित होते है। पितरों को जल देने के समय अपने गोत्र और अपने पिता का नाम लेते हुए- 'वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः' मंत्र का उच्चारण करना चाहिए और तीन बार जल चढ़ाना चाहिए।

पाँचवें श्राद्ध में क्या न करे (What not to do in the fifth Shraddha)

लोहे के बर्तनों यानी की पीतल के बर्तनों में श्राद्ध के दौरान भोजन नहीं कराना चाहिए। इसे शुभ नहीं माना जाता है। ऐसा करने से पितृ दोष लग सकता है। पितृ दोष लगने पर वैवाहिक जीवन में हमेशा तनाव रहता है। आए दिन पति-पत्नी के मध्य झगड़े होते हैं। इतना ही नहीं परिवार में एकता नहीं होती है। अक्सर घर में क्लेश होता है। इसलिए श्राद्ध के समय गलतियों को करने से बचना चाहिए। मांस, मदिरा, लहसुन प्याज आदि का सेवन करने से भी बचना चाहिए। श्राद्ध के भोजन में अरवी, अंडा ,आलू आदि का भोजन नहीं बनाना चाहिए।

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