श्राद्ध का आठवां दिन( Eighth Day of Shraddha)
श्राद्ध का आठवें दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु अष्टमी तिथि को हुई होती है। इस दिन श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को सम्पूर्ण समृद्धियों की प्राप्ति हो जाती है।
आठवें श्राद्ध का महत्व (Importance of Eighth Shraddha)
हिंदू पौराणिक कथाओं के मुताबिक 'पितृ लोक' एक क्षेत्र होता है जो कि स्वर्ग और पृथ्वी के मध्य रहता है। हमारी पिछली 3 पीढ़ियों की आत्माएं इसी 'पितृ लोक' में निवास करती हैं। मृत्यु के देवता यम इस क्षेत्र का नेतृत्व करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब अगली पीढ़ी के किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो पहली पीढ़ी को भगवान के समीप लाते हुए उन्हें स्वर्ग ले जाया जाता है। क्योंकि पितृलोक में सिर्फ अंतिम तीन पीढ़ियों को ही श्राद्ध कर्म दिया जा सकता है। शास्त्रों में ऐसा माना जाता है कि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु इन 16 तिथियों के अतिरिक्त अन्य किसी भी तिथि पर नहीं होती है। अर्थात जब भी पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है तो उनकी मृत्यु तिथि के अनुसार ही करने का प्रावधान है। इसलिए पितृ पक्ष 16 दिन के होते हैं।
आठवें श्राद्ध की तिथि और शुभ मुहूर्त(Date and auspicious time of Eighth Shraddha)
अष्टमी श्राद्ध - आठवां श्राद्ध अष्टमी तिथि शुरू - 06 अक्टूबर, 2023 को सुबह 06:34 बजे
अष्टमी तिथि ख़त्म - 07 अक्टूबर, 2023 को सुबह 08:08 बजे
अष्टमी श्राद्ध शुक्रवार, 06 अक्टूबर, 2023 का शुभ मुहूर्त
कुतुप मूहूर्त - सुबह 11:46 बजे से लेकर दोपहर 12:33 बजे तक
अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट
रौहिण मूहूर्त - दोपहर 12:33 बजे से लेकर दोपहर 01:20 बजे तक
अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट
अपराह्न काल - दोपहर 01:20 बजे से दोपहर 03:41 बजे
अवधि - 02 घण्टे 21 मिनट
आठवें श्राद्ध की कहानी (Story of Eighth Shraddha)
महाभारत काल से श्राद्ध की शुरुआत हुई । जिसके अनुसार दानवीर कर्ण की मृत्यु के बाद चित्रगुप्त ने उन्हें मोक्ष देने से मना कर दिया था। इस पर कर्ण ने चित्रगुप्त से पूछा कि मैंने अपनी सारी सम्पदा हमेशा दान पुण्य में ही दी है। फिर मुझ पर कैसा ऋण शेष रह गया है। कर्ण की बात सुनकर चित्रगुप्त ने बताया कि आपने देव ऋण और ऋषि ऋण को तो पूर्ण कर दिया है परंतु आप पर पितृ ऋण बचा हुआ है। आप जब जीवित थे तो आपने केवल सम्पदा और सोने का दान किया था। आपने कभी भी अन्न का दान नहीं किया। इस कारण आप पर पितृ ऋण शेष है। जब तक आप पितृ ऋण नहीं उतारते है। तो आपको मोक्ष नहीं मिल सकता है। तब चित्रगुप्त ने कर्ण को 16 दिन के लिए पृथ्वी पर जाकर अपने ज्ञात एवं अज्ञात पितरों को प्रसन्न करने हेतु विधिवत श्राद्ध-तर्पण तथा पिंड दान करने के लिए कहा। कर्ण ने वैसा ही किया तब उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुयी। ऐसा कहा जाता है कि तभी से ही श्राद्ध की प्रथा का आरंभ हुआ।
आठवें श्राद्ध की विधि(Method of Eighth Shraddha)
श्राद्ध कर्म को गया में या फिर किसी पवित्र नदी के किनारे भी कर सकते है। यदि ऐसा संभव नहीं है तो आप अपने घर पर भी श्राद्ध कर्म कर सकते है। श्राद्ध के समय ब्राह्मण को जरूर बुलाना चाहिए। श्राद्ध के दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद साफ वस्त्र पहनकर श्राद्ध और दान का संकल्प लेना चाहिए। आठवें दिन के श्राद्ध को कुतुप काल में करना चाहिए। श्राद्ध कर्म करने के लिए पहले दक्षिण दिशा में मुंह करके कुशा के आसन पर बैठना चाहिए। इसके बाद एक ताम्बे के लौटे में जल लेकर उसमे गंगाजल, गाय का दूध, जौ, चावल, तिल और सफ़ेद फूल लेना चाहिए। इसके बाद तर्पण करना चाहिए। पितरों को खीर का भोग लगाना चाहिए। साथ ही भोजन का कुछ भाग भगवान, गाय, कुत्ता, कौआ और चींटी के लिए भी निकालना चाहिए। इनको भोजन कराते समय अपने पितरों को स्मरण कर उन्हें भी भोजन ग्रहण करने की प्रार्थना करनी चाहिए। ऐसा करने से पितर भोजन ग्रहण करते है।
आठवें श्राद्ध से जुड़े रहस्य (Mysteries related to Eighth Shraddha)
विशेष स्थान जैसे गया, प्रयागराज, हरिद्वार में श्राद्ध कर्म करने से पितरों को मोक्ष मिलता है और वह सीधे स्वर्ग को जाते है। जो व्यक्ति श्राद्ध कर्म करता है वह पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है। उसे सभी सुख सुविधाएं प्राप्त होती है। पितृ पक्ष के समय पितरों को पूजा अर्चना करने से भविष्य में आने वाली सभी परेशानियाँ दूर हो जाती है।
आठवें श्राद्ध में क्या करें( What to do on the Eighth Shraddha)
- पितरों के निमित गीता के आठवें अध्याय का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से पितरों को भगवान की प्राप्ति आसानी से होती है।
- श्राद्ध के दौरान ब्राह्मण को घर बुलाकर भोजन कराना चाहिए और यथा शक्ति दान भी देना चाहिए।
- पितरों की पसंद का भोजन बनाना चाहिए। इससे पितर प्रसन्न होते है और आशीर्वाद देते है।
आठवें श्राद्ध में क्या न करें(What not to do in the Eighth Shraddha)
- श्राद्ध कर्म के दिन ब्राह्मण भोजन के पहले कुछ नहीं खाना चाहिए। पितृ पक्ष में शुभ कार्य जैसे नया सामान खरीदना, नए कपडे खरीदना, विवाह, जनेऊ आदि नहीं करने चाहिए।
- पितृ पक्ष में सात्विक भोजन करना चाहिए। प्याज लहसुन का इस्तेमाल भोजन में नहीं करना चाहिए। इसके अलावा कांच या फिर लोहे के बर्तनों का भी उपयोग नहीं करना चाहिए। आप ब्राह्मण को भोजन कराने के लिए पत्तल का इस्तेमाल कर सकते है।
- ऐसा माना जाता है कि इन 15 दिनों में पितर किसी भी रूप में अपने घर आ सकते हैं। इसलिए घर पर आये जरूरतमंद व्यक्ति या फिर पशु को अनादर नहीं करना चाहिए। उन्हें भोजन कराना चाहिए और उनकी सहायता करनी चाहिए।