पहले श्रावण सोमवार की व्रत कथा

पहले श्रावण सोमवार की व्रत कथा

पढ़ें और पाएं इस श्रावण शिवजी का आशीर्वाद - 24 जुलाई, सोमवार


श्रावण का पवित्र महीना शुरू हो गया है और आज हम श्रावण सोमवार की व्रत कथा लेकर आपके सामने प्रस्तुत हुए हैं, तो चलिए साथ में इस पुण्यदायिनी कथा का श्रवण करते हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक नगर में अमीर साहूकार निवास करता था। उसके घर में धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी, परंतु संतान न होने के कारण वह अत्यंत दुखी रहता था। संतान प्राप्ति के लिए वह हर सोमवार श्रद्धापूर्वक भगवान शिव जी की उपासना करता था और संध्या के समय मंदिर में जाकर भगवान शिव के समक्ष दीप जलाता था।

उसके भक्ति भाव को देखते हुए, एक दिन माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि, हे प्राणनाथ! यह आपका सच्चा भक्त है तथा इतने वर्षों से आपकी पूजा-अर्चना कर रहा है। आप इसे संतान प्राप्ति का वरदान क्यों नहीं दे रहे हैं?

माता पार्वती का प्रश्न सुनकर भगवान शिव ने उन्हें बताया कि साहूकार के पिछले जन्म के कर्मों के कारण उसके भाग्य में संतान सुख नहीं लिखा है।

यह सुनकर माता पार्वती ने भगवान शिव से आग्रह किया कि वे उस साहूकार को संतान प्राप्ति का वर प्रदान करें। माता पार्वती के आग्रह के बाद भगवान भोलेनाथ ने ये बात मान ली और स्वप्न में उस साहूकार को दर्शन देकर संतान प्राप्ति का वरदान दिया। इसके साथ ही भगवान ने उन्हें यह भी बताया कि उसका पुत्र अल्पायु होगा और वह केवल 16 वर्ष तक ही जीवित रहेगा।

साहूकार को इस बात की हार्दिक प्रसन्नता तो हुई, लेकिन वह संतान को कुछ समय बाद खोने के विचार से चिंतित हो गया। उसने पूरा वृतांत अपनी पत्नी को सुनाया। पुत्र की अल्पायु के बारे में सुनकर उसकी पत्नी भी अत्यंत दुखी हो गई।

यह बात जानकर भी साहूकार ने अपने आराध्य की पूजा अर्चना जारी रखी। कुछ समय पश्चात उसकी पत्नी गर्भवती हो गई और उसने एक सुंदर बालक को जन्म दिया। उन्होंने उस बालक का नाम अमर रखा। जब अमर 11 वर्ष का हुआ तो साहूकार ने उसे अपने मामा के साथ शिक्षा ग्रहण करने के लिए काशी भेज दिया। काशी जाने से पहले, साहूकार ने बालक के मामा को कुछ धन दिया और कहा कि तुम जिस भी मार्ग से जाना वहां यज्ञ और ब्राह्मणों को भोजन अवश्य कराना।

इसके बाद दोनों मामा-भांजे काशी की ओर निकल पड़े। यात्रा करते हुए बालक और उसके मामा एक राज्य में विश्राम के लिए रुके। वहां पर राजा की पुत्री का विवाह हो रहा था। परंतु जिस राजकुमार का विवाह उस राजकुमारी से हो रहा था वह एक आंख से काना था और यह बात किसी को पता नहीं थी।

राजकुमार के पिता को इस बात की चिंता थी कि अगर राजकुमारी को यह पता चल गया कि राजकुमार एक आंख से काना है तो वह शादी से मना कर देगी। इसलिए जब उसने साहूकार के पुत्र को देखा तो राजकुमार के पिता ने उससे राजकुमार की जगह मंडप में बैठ जाने का आग्रह किया। साथ ही उसने उस बालक से कहा कि वह विवाह के बाद इस भेद के बारे में किसी को न बताएं।

अमर, उस राजा की बात मानकर दूल्हे के स्थान पर जाकर मंडप में बैठ गया। इस प्रकार राजकुमारी और बालक का विवाह संपन्न हुआ। विवाह के बाद बालक अपने मामा के साथ काशी के लिए प्रस्थान कर गया। काशी जाने से पहले उस बालक ने राजकुमारी को पत्र के माध्यम से सब सच बता दिया, साथ ही यह भी बताया कि जिस राजकुमार से उसकी विदाई हो रही है वह दरअसल काना है।

सत्य जानकार, राजकुमारी ने उस राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया। वहीं दूसरी ओर मामा-भांजे काशी पहुंच गए। वहां कुछ वर्ष रहने के पश्चात् जब वह बालक 16 वर्ष का हुआ तो मामा-भांजे ने एक यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ के समापन के बाद उन्होंने ब्राह्मणों को भोजन भी कराया और दान-दक्षिणा भी दी। इसके पश्चात बालक की तबीयत खराब होने लगी। वह मूर्छित होकर ज़मीन पर गिर गया और उसकी मृत्यु हो गई।

जब उस बालक के मामा ने बालक को इस अवस्था में पाया तो वह ज़ोर-ज़ोर से विलाप करने लगे, उसी समय भगवान शिव और माता पार्वती उस मार्ग से गुज़र रहे थे, जब उन्होंने विलाप की आवाज़ सुनी तो माता पार्वती ने भगवान शिव से आग्रह किया कि वो उस रोते हुए व्यक्ति का कष्ट दूर करें।

तब भगवान शिव में देवी पार्वती को बताया कि यह वही साहूकार का पुत्र है, जिसे उन्होंने 16 वर्ष तक जीवित रहने का वरदान दिया था। तब माता पार्वती ने कहा कि- हे प्राणनाथ, इस बालक का पिता पिछले 16 वर्षों से सोमवार का व्रत करते हुए आपके समक्ष दीप जलाता है। कृपया आप इसके दुखों को दूर करें।

माता पार्वती के वचन सुनकर भगवान शिव ने अमर को जीवन का वरदान दिया और इसके पश्चात् वह बालक जीवित हो गया। यह देखकर उसके मामा की प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं रहा। इसके बाद काशी से पढ़ाई पूरी करने के बाद, वह दोनों वापस घर की ओर निकल पड़े। रास्ते में फिर से वह नगर पड़ा जहां अमर का विवाह वहां की राजकुमारी से हुआ था। जब राजकुमारी ने अमर को देखा तो वह उसे तुरंत पहचान गई। राजा ने भी प्रसन्नतापूर्वक अपनी पुत्री को अमर के साथ विदा कर दिया।

वहीं दूसरी ओर साहूकार और उसकी पत्नी यह सोचकर अत्यंत दुखी थे कि 16 वर्ष की आयु के बाद उनके पुत्र की मृत्यु हो जाएगी। लेकिन जब उन्होंने देखा कि उनका पुत्र अपनी वधु के साथ सुरक्षित घर वापस लौट आया है तो उनके सारे कष्ट दूर हो गए और उन्होंने प्रफुल्लित मन से उन दोनों का स्वागत किया।

इस प्रकार भगवान शिव की निरंतर आराधना से साहूकार को न केवल पुत्र प्राप्ति हुई बल्कि उसके पुत्र को जीवनदान भी मिला। श्रावण सोमवार की व्रत कथा का श्रवण करने से सभी मनुष्य पुण्य के भागीदार बनते हैं।

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