द्वितीय मंगला गौरी व्रत की कथा

द्वितीय मंगला गौरी व्रत की कथा

25 जुलाई, मंगलवार पढ़ें व्रत कथा और पाएं परिवार में सुख शांति


इस अधिक मास के मंगला गौरी व्रत की व्रत कथा सुनें और पाएं परिवार में सुख स्मृद्धि और खुशहाली।

एक समय की बात है, एक छोटे से गांव में एक साहूकार अपनी पत्नी के साथ निवास करता था। साहूकार धनवान था और उसके घर में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं थी, फिर भी वह और उसकी पत्नी संतान न होने के कारण दुखी रहते थे। संतान की कमी उन्हें हमेशा कचोटती रहती थी।

एक दिन की बात है, उस साहूकार के घर में साधु आए, साहूकार ने उनका आदर सत्कार किया और उन्हें अपनी समस्या के बारे में बताया। साधु ने साहूकार की पत्नी को सावन में मंगलवार को किए जाने वाले मंगला गौरी व्रत करने की सलाह दी। साथ में पूजा विधि के बारे में भी संपूर्ण जानकारी प्रदान की। इसके बाद साहूकार की पत्नी ने सावन माह के पहले मंगलवार से ही गौरी मंगला का पूजन व्रत रखना शुरू कर दिया। अब वह हर मंगलवार को विधि पूर्वक व्रत और पूजा पाठ करने लगी। इस प्रकार कई महीनों तक उसने वह व्रत किया। एक दिन उसकी धर्मनिष्ठा से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने भगवान शिव से साहूकार और उसकी पत्नी को संतान प्राप्ति का वरदान देने के लिए कहा।

साहूकार को उस रात स्वप्न में एक दिव्य शक्ति ने दर्शन देकर कहा कि- एक आम के पेड़ के नीचे भगवान गणेश की मूर्ति विराजमान है, तुम उस पेड़ से आम तोड़कर अपनी पत्नी को खिला देना, इससे तुम्हें संतान की प्राप्ति का सुख मिलेगा।

साहूकार ने अगले दिन सुबह उठकर अपनी पत्नी को इस सपने के बारे में बताया और वह उस आम के पेड़ को ढूंढने निकल पड़ा। काफी समय तक ढूंढने के बाद, आखिरकार साहूकार को वह आम का पेड़ मिला जहां भगवान गणेश की मूर्ति विराजमान थी। उसने आम तोड़ने के लिए उस पेड़ पर पत्थर मारना शुरू कर दिया।

पत्थर फेंकने से एक आम तो टूट कर नीचे गिर गया लेकिन गलती से एक पत्थर जाकर भगवान गणेश की प्रतिमा को लग गया। इससे भगवान गणेश क्रोधित हो गए और उन्होंने प्रकट होकर उस साहूकार को श्राप देते हुए कहा कि- हे स्वार्थी मनुष्य! तूने अपने स्वार्थ के कारण मुझे चोट पहुंचाई है, तुझे माँ पार्वती की कृपा से संतान की प्राप्ति तो होगी लेकिन उसकी मृत्यु 21 वर्ष की आयु में ही हो जाएगी।

यह सुनकर साहूकार बहुत घबरा गया और वो वापिस घर चला गया। उसने वह फल अपनी पत्नी को खिला दिया और किसी को भी इस घटना के बारे में नहीं बताया। कुछ समय पश्चात भगवान शिव और माता पार्वती के आशीर्वाद से साहूकार और उसकी पत्नी को पुत्र की प्राप्ति हुई। इससे उन दोनों के जीवन में खुशी का ठिकाना न रहा, लेकिन साथ ही साहूकार इस बात से भी चिंतित था कि उसका पुत्र अल्पायु होगा।

देखते ही देखते वह बालक 20 वर्ष हो गया और व्यापार में अपने पिता का हाथ बटाने लगा। एक दिन घर लौटते समय साहूकार पेड़ की छांव में तालाब किनारे बैठकर अपने पुत्र के साथ भोजन करने लगा। तभी वहां कमला और मंगला नामक दो कन्याएं कपड़े धोने के लिए आईं और कपड़े धोते हुए आपस में बात करने लगी। कमला ने मंगला से कहा कि, मैंने इस सावन मास में प्रत्येक मंगलवार को मंगला गौरी व्रत रखने का निश्चय किया है, तुम भी माँ पार्वती को समर्पित यह व्रत अवश्य करना। इससे माता पार्वती प्रसन्न होती हैं और आप पर उनकी कृपा दृष्टि बनी रहती है। इसे करने से मनोवांछित वर और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति भी होती है। कमला की बात सुनकर मंगला भी इस व्रत को करने के लिए तैयार हो गई।

दूसरी ओर साहूकार ने दोनों कन्याओं के बीच यह पूरा संवाद सुन लिया और उसने अपने मन में यह सोचा कि यह कन्या मंगला गौरी व्रत को करती है, इससे इसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी। यह मेरे पुत्र के लिए एक योग्य वधू साबित होगी। ऐसा सोचकर वह उन दोनों के विवाह का प्रस्ताव कन्या के पिता के पास लेकर गया।

साहूकार की गांव में प्रतिष्ठा और मान होने के कारण कमला के पिता अपनी पुत्री का विवाह साहूकार के लड़के से करवा देते हैं। विवाह के पश्चात् भी कमला विधिपूर्वक मंगला गौरी का व्रत रखना जारी रखती है।

उसके इस भक्ति भाव से प्रसन्न होकर माता पार्वती एक दिन उसे स्वप्न में दर्शन देती हैं और कहती हैं कि, मैं तुम्हारी भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हूँ, इसलिए तुम्हें अखंड सौभाग्य का वरदान देती हूँ। लेकिन तुम्हारा पति अल्पायु है, इसलिए अगले महीने मंगलवार के दिन एक सर्प तुम्हारे पति के प्राण लेने आएगा। तुम उसके लिए एक प्याले में मीठा दूध रख देना। उसके पास एक खाली मटका भी रख देना। सर्प दूध पीकर उस मटके में चला जाएगा और फिर तुम उस मटके को ऊपर से कपड़े द्वारा ढक देना।

अगले मंगलवार को कमला ने माता पार्वती की बात मानकर, एक प्याले में मीठा दूध रख दिया और पास में एक मटकी भी रख दी। सर्प ने आकर दूध पिया और मटकी में जाकर बैठ गया। कमला ने उस मटकी पर कपड़ा बांध कर उसे जंगल में रख दिया। माता पार्वती की कृपा से कमला के पति के प्राण बच गए। इस प्रकार मंगला गौरी व्रत के पुण्य फल से साहूकार का पुत्र श्राप मुक्त हो गया। जब कमला ने घर में सबको इस चमत्कार के बारे में बताया तो सभी आश्चर्यचकित रह गए। इसके बाद साहूकार और उसकी पत्नी ने अपने पुत्र और पुत्र वधु को आशीर्वाद दिया और पूरा परिवार सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा।

तो यह थी मंगला गौरी व्रत की कथा। भगवान आपके परिवार में खुशहाली लाएं।

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