हिंदू धर्म में एकादशी के व्रत के साथ उस दिन पूजा का भी विशिष्ट महत्व है। प्रत्येक एकादशी की तरह अजा एकादशी की भी पूजा और व्रत को अत्यंत पुण्यकारी माना गया है। एकादशी को हम, 'हरि दिन' और 'हरि वासर' के नाम से भी जानतें हैं। अजा शब्द का अर्थ है - 'जिसका जन्म न हो’। इस शब्द का उपयोग, आदिशक्ति के लिए किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि 2023 की अजा एकादशी कब है? अजा एकादशी व्रत का महत्व क्या है? और इसका शुभ मुहूर्त क्या है? तो आइए जानते हैं अजा एकादशी के बारे में सम्पूर्ण जानकारी।
अजा एकादशी का शुभ मुहूर्त
इस वर्ष 2023 में अजा एकादशी का व्रत भाद्रपद मास में, श्री कृष्ण जन्माष्टमी के बाद, रविवार 10 सितम्बर के दिन रखा जाएगा, जिसका पारण अगले दिन यानी 11 सितम्बर को किया जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास में एकादशी तिथि की शुरूआत 9 सितंबर 2023 को शाम 07:18 बजे से होगी और तिथि का समापन 10 सितंबर 2023, रात 09:28 बजे होगा। वहीं व्रत का पारणा 11 सितम्बर को सुबह 06:04 बजे से 08:33 बजे तक कर सकेंगे।
अजा एकादशी व्रत का महत्व
ऐसा माना जाता है, कि जो भक्त पूरी श्रद्धा और विधि विधान से इस व्रत का पालन करता है, उन पर भगवान श्री हरि, सदैव अपनी दया-दृष्टि बनाए रखते हैं और उन्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। इस एकादशी के दिन व्रत रखने से, समस्त पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं। केवल यही नहीं, अजा एकादशी के व्रत को करने से, पूर्वजन्म के सभी पापों से भी मुक्ति मिल जाती है।
अजा एकादशी में, भगवान विष्णु के 'उपेन्द्र' स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है और रात्रि में, जागरण किया जाता है। इस पवित्र एकादशी के फल को, लोक और परलोक दोनों में ही, श्रेष्ठ माना गया है। जितना पुण्य मनुष्य को हज़ार गौदान करने से मिलता है, उतना ही पुण्य, इस व्रत को सच्चे मन से करने से प्राप्त होता है। इसके अलावा, मनुष्यों द्वारा जाने-अनजाने में किए गए सभी पापों से मुक्ति पाने और जीवन में सुख-समृद्धि अथवा शांति प्राप्ति के लिए, इस व्रत का पालन किया जाता है।
आइए, अब जानते हैं इस पुण्यदायनी एकादशी की संपूर्ण पूजा विधि-
अजा एकादशी की पूजा विधि
इस दिन आप प्रातःकाल उठकर, अपनी नित्यक्रियाओं से निवृत्त हो लें। अगर संभव हो पाए तो आप इस दिन तिल व मिट्टी के लेप का उपयोग करते हुए स्नान करें।
आप अपने घर और मंदिर की भी अच्छी तरह से साफ-सफाई कर लें और इसके बाद मंदिर में आसन पर पीले रंग का वस्त्र बिछाकर, उस पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। पूजा से पहले, आप कुम्भ यानी पवित्र कलश की स्थापना करें। तत्पश्चात, आप श्री विष्णु की प्रतिमा के सामने व्रत का संकल्प लें, उन्हें तिलक लगाएं और साथ ही प्रभु को धूप, दीप, पुष्प, चंदन, अक्षत और नैवेद्य इत्यादि संपूर्ण पूजा सामग्री अर्पित करें।
भगवान विष्णु के साथ-साथ, इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा का भी विशेष विधान है, अतः आप उन्हें भी पूजन सामग्री अर्पित करें। तत्पश्चात, आप भगवान विष्णु को भोग लगाएं। उन्हें तुलसी के पत्ते भी अर्पित करें। पूजा सम्पन्न करने के पश्चात, आप विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और भगवान जी की आरती उतारें।
तो यह थी, अजा एकादशी की पूजा-विधि की विस्तृत जानकारी। आशा करते हैं, कि आपकी पूजा फलीभूत हो और ईश्वर की कृपा, आप पर सदैव बनी रहे।