आषाढ़ चौमासी चौदस व्रत

आषाढ़ चौमासी चौदस व्रत

आषाढ़ चौमासी चौदस का महत्व, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त


आषाढ़ चौमासी चौदस

हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की शुक्ल एकादशी से लेकर श्रावण, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी तक के चार महीनों को चौमासा या चतुर्मास कहा जाता है। इन्हीं महीनों के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को चौमासी चौदस कहते हैं। लेकिन किसी भी व्रत को करने के लिए उसका शुभ मुहूर्त बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। तो आइए पहले जानते है आषाढ़ चौमासी चौदस का शुभ मुहूर्त।

चौमासी चौदस का शुभ मुहूर्त

आषाढ़ चौमासी चौदस - 02 जुलाई, रविवार (आषाढ़ शुक्ल चौदस) चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ: 01 जुलाई, शनिवार को 11:07 PM पर चतुर्दशी तिथि समापन: 02 जुलाई, रविवार को 08:21 PM पर

चौमासी चौदस का महत्व

हर व्रत का अपने आप में एक अलग महत्व होता है। वैसे ही चौमासी चौदस का भी एक अलग महत्व है। इसे चौमासी चौदस कहने का कारण मौसम से जुड़ा है। वर्षा ऋतु की अवधि चार मास तक होने के कारण इसे चौमासा कहा जाता है। चौमासे के इन चारों मास में पड़ने वाली शुक्ल चतुर्दशी यानि चौमासी चौदस का विशेष महत्व होता है।

  • पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव को चौमासी चौदस की तिथि बहुत प्रिय होती है। चौमासे के समय भगवान विष्णु शयन करते हैं, इसलिए भी इस दौरान शिव जी की उपासना की जाती है।
  • चौमासी चौदस भगवान शंकर और माता शक्ति के मिलन का पर्व भी माना जाता है।
  • एक मान्यता ऐसी भी है कि ज्योतिर्लिंगों का प्रादुर्भाव चतुर्दशी के प्रदोष काल में हुआ था। इस कारण हर मास की दोनों चतुर्दशी तिथियों को शिव चतुर्दशी कहा जाता है।
  • चौमासी चौदस हिंदू धर्म में ही नहीं, बल्कि जैन समुदाय के लिए भी बहुत महत्व रखती है। जैन धर्म के लोग इसे श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाते हैं। चौमासे के पर्व को जैन धर्म में वर्षा वास भी कहा जाता है।
  • चतुर्मास के दौरान धर्म कर्म और दान पुण्य करने का भी विशेष महत्व होता है। चूंकि देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु शयनमुद्रा में चले जाते हैं, और वो देवउठनी एकादशी पर जागृत होते हैं। ऐसे में इन चार महीनों के दौरान धार्मिक कार्य, और दान पुण्य का विधान बताया गया है।

तो यह थी चौमासी चौदस के शुभ मुहूर्त, तिथि व महत्व से जुड़ी पूरी जानकारी। लेकिन क्या आप जानते है कि आषाढ़ चौमासी चौदस का व्रत कैसे किया जाता है, आइए जानते है चौमासी चौदस की व्रत की विधि।

आषाढ़ चौमासी चौदस की पूजा विधि

सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि करके घर के मंदिर में बैठ जाए, अगर मंदिर नहीं हो तो भगवान शिवजी की तस्वीर के सामने पूर्व दिशा में पीले रंग का कपड़ा बिछाकर बैठ जाएं। विधि विधान से पारद शिवलिंग या शिवयंत्र की स्थापना कर विधिनुसार उसका पूजन किया जाता है। घी का दीपक, चंदन की धूप, तिलक के लिये पीला चंदन, अर्पित करने के लिये पीले रंग के पुष्प, भोग लगाने के लिये केसर की खीर एवं पपीते को फल के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। रूद्राक्ष की माला लेकर 108 बार भगवान शिव के विशेष मंत्र का जाप भी किया जा सकता है।

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