भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को बहुला चतुर्थी कहते हैं। इस तिथि पर गणेश जी, श्रीकृष्ण और गौ माता की पूजा-अर्चना करने का विधान है। बहुला चतुर्थी वर्ष की चार प्रमुख चतुर्थियों में से एक है लेकिन क्या आप जानते हैं कि बहुला चतुर्थी का पर्व क्यों मनाया जाता हैं और इसका महत्व व शुभ मुहूर्त क्या है? तो आइए आगे जानते है बहुला चतुर्थी व्रत के शुभ मुहूर्त के बारे में।
बहुला चतुर्थी व्रत 2023 का शुभ मुहूर्त
इस बार भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 02 सितंबर 2023 रात 08:50 बजे से शुरू होगी और अगले दिन यानि की 03 सितंबर 2023 को शाम 06:25 बजे तक रहेगी।
बहुला चतुर्थी व्रत का महत्व
यह व्रत रखने से सभी मानसिक और शारीरिक रोग एवं कष्टों से मुक्ति मिलती है। साथ ही, संतान और सुख-संपत्ति की भी प्राप्ति होती है। बहुला चतुर्थी के व्रत को माताएं अपने पुत्रों की रक्षा के लिए करती है। साथ ही इस दिन व्रत करने से निसंतान महिलाओं को भी संतान की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है। बहुला चतुर्थी के दिन गेहूँ और चावल से बनी हुई वस्तुएं भोजन में ग्रहण करना वर्जित होता है। इस दिन गाय और शेर की मिट्टी से प्रतिमा बनाकर पूजन करने का विधान है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन चन्द्रमा के उदय होने तक बहुला चतुर्थी का व्रत करने का बहुत ही महत्त्व है।
तो दोस्तों यह था बहुला चतुर्थी व्रत का शुभ मुहूर्त आइए अब जानते हैं बहुला चतुर्थी व्रत की पूजा विधि के बारे में।
बहुला चतुर्थी व्रत की पूजा विधि
किसी भी व्रत की पूजा करने से पहले उसमें काम आने वाली सामग्री की जानकारी होना बहुत जरूरी होता है। तो आइए पहले जानते हैं, बहुला चतुर्थी व्रत की पूजा में काम आने वाली सामग्री के बारे में।
आपको इस पूजा के लिए धूप, दीप, पुष्प, गंध, कपूर, भोग, नैवेद्य के साथ भगवान श्रीकृष्ण, गौ माता व शेर की मिट्टी से बनी प्रतिमा की आवश्यकता होती है।
इस दिन सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठकर आप अपना स्नानादि सम्पन्न कर लें। इसके पश्चात, आप व्रत का संकल्प लेते हुए, गायों और उनके बछड़ों को भी स्नान करवाएं। अब घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें और भगवान श्री कृष्ण और गौ माता की प्रतिमा पर गंगाजल का छिड़काव करें। इसके बाद आप उन्हें तिलक लगाएं और पुष्प, धूप, अक्षत, कपूर, नैवेद्य, रोली समेत संपूर्ण पूजा सामग्री अर्पित करें।
अंत में आप भगवान श्रीकृष्ण और गौ माता की आरती उतारें और प्रसाद वितरित करें। अगर आपके घर में या घर के आस-पास गाय और बछड़े हैं तो आप शाम के वक़्त गोधुली बेला में उनकी पूजा भी अवश्य करें।
बहुला चतुर्थी की व्रत कथा
एक बार नंद बाबा की गौशाला में श्रीकृष्ण जी को बहुला नामक एक गाय से बेहद लगाव हो जाता है। उस गाय का छोटा बछड़ा भी गौशाला में उसके साथ रहता था। श्री कृष्ण अपना अधिकतर समय इसी बहुला नामक गाय के साथ ही बिताते थे।
एक दिन भगवान कृष्ण बहुला की परीक्षा लेने के लिए शेर का रूप धारण करते हैं और उसका शिकार करने के लिए आगे बढ़ते हैं। तभी बहुला प्रार्थना करते हुए कहती है कि, "आप अभी मेरा शिकार न करें, मेरा बछड़ा सुबह से भूखा है, मुझे उसे दूध पिलाना है। मैं उसे दूध पिलाकर वापस लौट कर आउंगी, तब आप मेरा शिकार कर लेना।”
ऐसा कहकर, वह बहुत मुश्किल से वापस घर आने की अनुमति लेती है। नन्द जी की गौशाला आने के बाद बहुला अपने बछड़े को खूब प्यार दुलार कर करती है और फिर दूध पिलाकर वापस उसी शेर के पास चली जाती है। अपने वचन के मुताबिक वह शेर से कहती है, कि "अब मेरा शिकार करके, आप अपनी भूख मिटा लो।”
तब श्री कृष्ण अपने असली रूप में आकर बहुला से कहते हैं, कि "बहुला, आज तुम अपनी इस परीक्षा में सफल हुई। मैं तुम्हें वचन देता हूं, कि भादों की कृष्ण चतुर्थी, बहुला चतुर्थी के रूप में जानी जाएगी और इस दिन लोग तुम्हारी पूजा-अर्चना एक माता के रूप में करेंगे।
तभी से जो भी व्यक्ति इस व्रत को रखता है, उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं और साथ ही उसे सभी सुखों की प्राप्ति भी होती है। इस दिन, गौ माता की पूरी श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना की जाती है। क्योंकि जिस प्रकार माता अपने बच्चे को दूध पिलाकर उनका पालन पोषण करती हैं, ठीक उसी तरह गौ माता भी मनुष्यों का पालन पोषण और रक्षा करती हैं।
तो दोस्तों यह थी बहुला चतुर्थी व्रत का शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और व्रत कथा के बारे में संपूर्ण जानकारी। हम आशा करते हैं कि आपका व्रत सफल हो और भगवान आपकी संतान को लंबी उम्र प्रदान करे।