पोंगल उत्सव (Pongal Festival)
भारत में ऐसे बहुत से त्योहार हैं, जिन्हें लोग बेहद जोश और उमंग के साथ मनाते हैं। ठीक ऐसा ही एक त्योहार भारत में फसल की कटाई करने पर भी मनाया जाता है। आइए इस लेख के माध्यम से इस विशेष त्योहार के बारे में जानते हैं।
हम जिस त्योहार की बात कर रहे हैं, उस त्यौहार का नाम मट्टू पोंगल है। यह दक्षिण भारतीय राज्य केरल, तमिलनाडु, ओडिशा, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश समेत अन्य राज्यों के प्रमुख त्योहारों में से एक है और पोंगल के तीसरे दिन मनाया जाता है। इस साल पोंगल 15 जनवरी 2023 से शुरू होगा और 18 जनवरी 2023 को इसकी समाप्ति होगी।
पोंगल का त्योहार कब और क्यों मनाया जाता है (When Is Pongal Festival And Why It is Celebrated)
पोंगल का त्योहार विशेष रूप से कृषि से संबंधित होता है। अब जिस तरह से उत्तर भारत में मकर संक्रांति और पंजाब में लोहड़ी मनाई जाती है, ठीक उसी तरह दक्षिण भारत में पोंगल मनाया जाता है। यह त्योहार ईश्वर के प्रति आस्था प्रकट करने और नई फसल के होने पर मनाया जाता है। तमिल भाषा में पोंगल शब्द का अर्थ ‘उबालना’ होता है और इस दिन गुड़ और चावल को उबालकर भगवान सूर्य को चढ़ाया जाता है। भगवान सूर्य को विशेष रूप से चढ़ाने वाला यह प्रसाद ही पोंगल के नाम से जाना जाता है। करीब हज़ारों सालों से मनाया जाने वाले इस त्योहार में संपन्नता एवं समृद्धि लाने के लिए वर्षा, धूप, पालतू पशुओं और कृषि की पूजा की जाती है।
पोंगल का त्योहार (Pongal Festival)
दक्षिण भारत में पूरे उत्साह और जोश के साथ मनाया जाने वाला यह त्योहार 4 दिनों तक चलता है। इस त्योहार के पहले दिन को 'भोगी पोंगल', दूसरे दिन को 'सूर्य पोंगल', तीसरे दिन को 'मट्टू पोंगल' और चौथे दिन को 'कन्नम पोंगल' कहते हैं। इसके हर एक दिन अलग-अलग परंपराओं और रीति रिवाजों का पालन किया जाता है।
पोंगल के पहले दिन घर की साफ सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता हैं। इस दिन घर की सभी पुरानी और बेकार चीजों को फेंक दिया जाता है और अच्छी फसल के लिए भगवान इंद्र की आराधना की जाती है। फिर दूसरे दिन सूर्यदेव की पूजा की जाती है और इस दिन नये मिट्टी के बर्तन में लोग दूध, चावल और गुड़ से स्वादिष्ट पकवान अथवा व्यंजन बनाते हैं। इसके साथ ही, एक बर्तन में हल्दी की गांठ बांधकर घर के बाहर सूर्य देवता के सामने चाँवल और दूध साथ में उबलते है और इसे सूर्य भगवान को भेंट करते हैं।
तीसरे दिन नंदी बैल की पूजा होती है और साथ ही इसमें खेती में मदद करने वाले जानवरों के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं। इस दिन गायों तथा बैलों को घंटी और पुष्पमाला के साथ सजाकर इनकी पूजा की जाती है। फिर उनकी सेवा करने के लिए विशेष पकवान तैयार किये जाते हैं। इसको मट्टू पोंगल के नाम से जाना जाता है। फिर आखिरी दिन कन्या की पूजा होती है और इस दिन घर को फूलों से बड़ी आकर्षित तरीके से सजाया जाता है।
पौंगल से जुड़ी पौराणिक कथा (Pongal Pauranik Katha)
कथाओं के अनुसार एक बार भगवान श्री कृष्ण जी ने अपनी बाल अवस्था में घमंडी इंद्र देव को सबक सिखाने का फैसला किया, क्योंकि वह स्वर्ग लोक के राजा बनने के बाद अहंकारी बन गए थे। भगवान कृष्ण ग्वाल-बालों के संग से सभी सभी से कहा की भगवान इंद्र की पूजा नहीं करनी है। सभी लोगों ने वैसा ही किया और ये बात जब देव इंद्र को पता चली तो उन्हें क्रोध आया और उन्होंने अपनी शक्ति का दुरूपयोग करते हुए लगातार तीन दिनों तक पृथ्वी पर भयानक आंधी-तूफ़ान और बारिश की। इस आपदा को देखते हुए, लोग भगवान कृष्ण के पास गए, और जनजीवन के बचाव के लिए भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी एक उंगली पर उठा लिया और समस्त जनों ने पर्वत के नीचे शरण पायी। इस दृश्य को देख भगवान इंद्र को अपनी गलती को महसूस हुआ और भगवान कृष्ण को नतमस्तक हो कर क्षमा याचना की। इसी दिन से पोंगल पर्व भी प्रारम्भ हुआ ।