रथ सप्तमी से जुड़ी संपूर्ण जानकारी

रथ सप्तमी से जुड़ी संपूर्ण जानकारी

16 फरवरी, 2024, शुक्रवार - जानें क्यों मनाते हैं रथ सप्तमी?


रथ सप्तमी से जुड़ी संपूर्ण जानकारी (Rath Saptami Vrat 2024)

सृष्टि के निर्माण के समय चारों दिशाओं मे केवल अंधकार ही अंधकार था, तब नव ग्रहों के राजा सूर्य अपने सात घोड़े वाले रथ पर सवार होकर प्रकट हुए थे। सनातन शास्त्रों में निहित है कि माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी यानि की रथ सप्तमी के दिन से ही सूर्यदेव ने समस्त जगत को आलोकित करना प्रारंभ किया था। अत: इस तिथि को सूर्य जयंती भी कहा जाता है। सरल शब्दों में कहें तो रथ सप्तमी के दिन सूर्यदेव का प्रादुर्भाव हुआ है।

रथ सप्तमी को अचला सप्तमी, सूर्यरथ सप्तमी, आरोग्य सप्तमी आदि नामों से भी जाना जाता है। इस वर्ष यह तिथि 7 फरवरी दिन सोमवार को है। रथ सप्तमी वसंत ऋतु और कटाई के मौसम की शुरुआत का भी प्रतीक है।

माघी सप्तमी के दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और भगवान सूर्य का पूजन करती हैं। धार्मिक मान्यता है कि सूर्यदेव की विधिवत पूजा करने से व्यक्ति को सुख, समृद्धि और संतान की प्राप्ति होती है। ज्योतिषों की मानें तो कारोबार में उन्नति और प्रगति के लिए सूर्य का प्रबल होना अनिवार्य है। जिन जातकों के कुंडली में सूर्य उत्तम का होता है। उन्हें कारोबार में कोई समस्या नहीं आती। कई ज्योतिष सरकारी नौकरी पाने के लिए सूर्य को मजबूत करने की सलाह देते हैं। जीवन में सुख, शांति और समृद्धि के इच्छुक जातकों को प्रतिदिन सूर्य देव को जल का अर्ध्य देना चाहिए। सूर्यदेव को प्रातः काल स्नान कर अर्घ्यदान तथा दान-पुण्य करने से लंबी आयु, उत्तम स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त होती है।

रथ सप्तमी को दान-पुण्य के लिए सूर्य ग्रहण के समान अत्यधिक शुभ माना गया है। रथ सप्तमी पर अरुणोदय के दौरान स्नान करना चाहिए। सूर्योदय से पहले स्नान करना एक स्वस्थ परम्परा है, और यह सभी प्रकार की बीमारियों से मुक्त रखता है।

रथ सप्तमी का महत्व (Rath Saptami Vrat Ka Mahatav)

रथ सप्तमी के दिन भगवान सूर्य के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है। रथ सप्तमी का दिन भगवान सूर्य के नाम से दान-पुण्य वाले कार्यों में भाग लेने के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन सभी पापों और दुखों से मुक्ति मिल सकती है। कहा जाता है कि मनुष्य अपने जीवन में सात प्रकार के पाप करता है। ये जानबूझकर, अनजाने में, मुंह के वचन से, शारीरिक क्रिया द्वारा, मन में, प्रचलित जन्म और पिछले जन्मों में किए गए पाप हैं। रथ सप्तमी के दिन सूर्य भगवान की आराधना करने से इन सभी पापों से मुक्ति मिलती है।

रथ सप्तमी के दिन, सूर्योदय से पहले भक्त पवित्र स्नान करने के लिए जाते हैं। रथ सप्तमी पर तीर्थ और पवित्र नदियों में किया गया स्नान एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है और इसे केवल सूर्योदय के समय ही किया जाना चाहिए। यह माना जाता है कि इस समय के दौरान पवित्र स्नान करने से व्यक्ति को सभी बीमारियों से मुक्ति मिलती है और उसे अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है। इस कारण रथ सप्तमी को आरोग्य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है।

रथ सप्तमी में क्यों बनाते हैं रंगोली (Kyu Banate Hai Rath Saptami Vrat Mai Rangoli)

रथ सप्तमी के दिन कई घरों में महिलाएं सूर्य देवता के स्वागत के लिए उनका और उनके रथ के साथ चित्र बनाती हैं। वे अपने घरों के सामने सुंदर रंगोली बनाती हैं। आंगन में मिट्टी के बर्तनों में दूध डाल दिया जाता है और सूर्य की गर्मी से उसे उबाला जाता है। बाद में इस दूध का इस्तेमाल सूर्य भगवान को भोग में अर्पण किए जाने वाले चावलों में किया जाता है।

रथ सप्तमी तिथि एवं पूजा का शुभ मुहूर्त (Rath Saptami Vrat Ki Tithi and Shubh Muhurat)

रथ सप्तमी की तिथि: 16 फरवरी 2024, शुक्रवार रथ सप्तमी तिथि का प्रारंभ: 15 फरवरी 2024, शुक्रवार को सुबह 10 बजकर 10 मिनट से होगा और तिथि का समापन 16 फरवरी 2024, शनिवार को सुबह 8 बजकर 55 मिनट पर होगा।

रथ सप्तमी का स्नान मुहूर्त: 16 फरवरी 2024, प्रातः 05:04 से प्रातः 06:42 तक कुल अवधि: 01 घण्टा 38 मिनट

रथ सप्तमी की पूजा विधि (Rath Saptami Vrat Ki Puja Vidhi)

  • इस दिन सबसे पहले प्रातः काल उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें।
  • सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करें। सूर्यदेव को अर्घ्य देने के बाद मिट्टी के दीए लें और उन्हें घी से भरकर प्रज्ज्वलित करें। इसी को रथ सप्तमी पूजन कहते है।
  • इसके बाद विधि अनुसार पूजा करें। पूजन में शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए और कपूर, धुप और फूलों से सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए। माघ का कल्पवास कर रहे श्रद्धालुओं को इस दिन सूर्यास्त के बाद भी स्नान करना चाहिए।
  • इसके बाद भगवान भास्कर की आरती करें।
  • इस दिन केवल एक बार ही भोजन करना चाहिए। इस दिन नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

रथ सप्तमी व्रत में ध्यान देने वाली बातें: (Rath Saptami Vrat Mai Dhayn Dene Wali Bate)

  • रथ सप्तमी की पूर्व संध्या पर अरुणोदय के समय जगे रहना और स्नान करना आवश्यक है।
  • स्नान के बाद नमस्कार करते हुए सूर्यदेव को जल का अर्घ्य दें। अगर संभव हो तो सूर्यदेव को गंगाजल से अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय सूर्यदेव के पवित्र नामों का स्मरण करें।
  • अर्घ्यदान करते समय भगवान सूर्य के सामने मुँह करते हुए, नमस्कार मुद्रा में, मुड़े हुए हाथ से, छोटे कलश की सहयता से धीरे-धीरे जल चढ़ाते हैं।
  • इस दिन भगवान विष्णु की पूजा भी शुभ मानी जाती है।
  • इस दिन अपनी शक्ति के अनुसार वस्त्र, भोजन आदि चीजों का दान करें।

रथ सप्तमी व्रत कथा (Rath Saptami Vrat Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार, एक गणिका नाम की महिला ने अपने पूरे जीवन में कभी कोई दान-पुण्य का कार्य नहीं किया था। जब उस महिला का अंत काल आया तो वह वशिष्ठ मुनि के पास गई। महिला ने मुनि से कहा कि मैंने कभी भी कोई दान-पुण्य नहीं किया है तो मुझे मुक्ति कैसे मिलेगी। मुनि ने कहा कि माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को अचला सप्तमी है। इस दिन किसी अन्य दिन की अपेक्षा किया गया दान पुण्य का हजार गुना प्राप्त होता है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान कर भगवान सूर्य को जल दें और दीप दान करें तथा दिन में एक में बार बिना नमक के भोजन करें। ऐसा करने से महान पुण्य की प्राप्ति होती है। गणिका ने वशिष्ठ मुनि द्वारा बताई हर बात का सप्तमी के दिन व्रत और विधि पूर्वक कार्य किया। कुछ दिन बाद गणिका ने शरीर त्याग दिया और उसे स्वर्ग के राजा इंद्र की अप्सराओं का प्रधान बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

माघ शुक्ल सप्तमी से संबंधित कथा का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। इसके अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल पर बहुत अभिमान हो गया था। एक बार दुर्वासा ऋषि भगवान श्रीकृष्ण से मिलने आए। वे बहुत अधिक दिनों तक तप करके आए थे और इस कारण उनका शरीर बहुत दुर्बल हो गया था। शाम्ब उनकी दुर्बलता का मजाक उड़ाने लगा और उनका अपमान भी किया इसे बात से क्रोधित होकर दुर्वासा ऋषि ने शाम्ब को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया। शाम्ब की यह स्थिति देखकर श्रीकृष्ण ने उसे भगवान सूर्य की उपासना करने को कहा। पिता की आज्ञा मानकर शाम्ब ने भगवान सूर्य की आराधना करना प्रारंभ किया, ऐसा करने से कुछ समय में ही कुष्ठ रोग ठीक हो गया। इसलिए जो श्रद्धालु सप्तमी के दिन भगवान सूर्य की आराधना करता है। उन्हें आरोग्य, पुत्र और धन की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में सूर्य को आरोग्यदायक कहा गया है तथा सूर्य की उपासना से रोग मुक्ति का मार्ग भी बताया गया है।

अचला सप्तमी की एक कथा के अनुसार, एक गणिका इन्दुमती ने वशिष्ठ मुनि के पास जाकर मुक्ति पाने का उपाय पूछा। मुनि ने कहा, ‘माघ मास की सप्तमी को अचला सप्तमी का व्रत करो।' गणिका ने मुनि के बताए अनुसार व्रत किया। इससे मिले पुण्य से जब उसने देह त्यागी, तब उसे इन्द्र ने अप्सराओं की नायिका बना दिया। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल और सौष्ठव पर बहुत अधिक अभिमान हो गया था। शाम्ब ने अपने इसी अभिमानवश होकर दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया। दुर्वासा ऋषि को शाम्ब की धृष्ठता के कारण क्रोध आ गया, जिसके पश्चात उन्होंने को शाम्ब को कुष्ठ हो जाने का श्राप दे दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र शाम्ब से भगवान सूर्य नारायण की उपासना करने के लिए कहा। शाम्ब ने भगवान कृष्ण की आज्ञा मानकर सूर्य भगवान की आराधना करनी आरम्भ कर दी। जिसके फलस्वरूप सूर्य नारायण की कृपा से उन्हें अपने कुष्ठ रोग से मुक्ति प्राप्त हो गई।

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