फाल्गुन अमावस्या व्रत कथा (Falgun Amavasya Ki Katha)
फाल्गुन का महीना हिंदू पंचांग के अनुसार साल का अंतिम महीना होता है, इसके बाद आने वाले चैत्र महीने से हिंदू नववर्ष का प्रारंभ हो जाता है। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को फाल्गुन अमावस्या मनाते हैं जो कि 2024 में रविवार 10 मार्च को पड़ रही है। फाल्गुन अमावस्या महाशिवरात्रि के पर्व के बाद आती है और हिंदू वर्ष की अंतिम अमावस्या होती है।
यह अमावस्या सुख, संपत्ति और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए विशेष फलदायी है। जीवन में सुख और शांति के लिए फाल्गुन अमावस्या का व्रत रखा जाता है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान कर, जरूरतमंदों को दान करते हैं। यह अमावस्या पितरों को मोक्ष दिलाने वाली होती है इसलिए इस दिन पितरों की शांति और पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तर्पण और श्राद्ध भी करते है।
साल भर में 12 अमावस्याएं आती हैं। यदि निरंतरता में प्रत्येक अमावस्या को आप पितरों हेतु श्राद्ध नहीं कर पाते हैं तो कुछ अमावस्याएं विशेष तौर पर सिर्फ श्राद्ध कर्म के लिए शुभ मानी जाती हैं। फाल्गुन मास की अमावस्या उन्हीं में से एक है।
फाल्गुन अमावस्या व्रत की पौराणिक कथा (Falgun Amavasya Ki Pauranik Katha )
माना जाता है कि जो व्यक्ति फाल्गुन अमावस्या के दिन व्रत रखता है उसके जीवन में कोई समस्या नहीं आती है और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। इस दिन पितरों का पूजन करने का भी विधान है। अमावस्या पर पितरों का पूजन करने से उनका आशीर्वाद मिलता है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। मान्यताओं के अनुसार, आज के दिन गंगा में डुबकी लगाने और दान करने से कई गुना पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
फाल्गुन अमावस्या कथा
एक दीन ब्राह्मण परिवार था जिसमें पति-पत्नी और उनकी एक पुत्री थी। उनका जीवन सामान्य चल रहा था। वर्ष बीतते गए और पुत्री भी धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। बढ़ती आयु के साथ उसमें स्त्रियों के गुणों का भी विकास होने लगा था। वह अत्यंत ही सुंदर, सुशील और सर्व गुण सम्पन्न थी लेकिन गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था। एक दिन उस ब्राह्मण के घर एक साधु महाराज पधारें। ब्राह्मण पुत्री की सेवा से साधु महाराज का मन बहुत प्रसन्न हुआ और उन्होंने कन्या को लंबी उम्र का आशीर्वाद तो दिया लेकिन यह भी बताया कि उसके हथेली में विधवा योग है। इस बात से चिंतित होकर ब्राह्मण परिवार ने साधु से उपाय पूछा, तब साधु ने कुछ देर विचार करने के पश्चात अपने ध्यान के आधार पर बताया कि कुछ दूरी पर एक गांव में सोना नाम की धोबिन जाति की एक महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है, जो बहुत ही संस्कारों से संपन्न तथा पति परायण और निष्ठावान है। यदि यह कन्या उसकी सेवा करे और इसके विवाह में वह महिला अपनी मांग का सिंदूर लगा दें, तो इस कन्या का विधवा योग मिट सकता है। साधु ने यह भी कहा कि वह महिला कहीं आती-जाती नहीं है। यह बात सुनकर ब्राह्मणी ने अपनी बेटी से धोबिन की सेवा करने की बात कही। अगले दिन कन्या प्रात: काल उठकर सोना धोबिन के घर चली गई और फिर प्रतिदिन वह धोबिन के घर की साफ-सफाई और अन्य सारे कार्य कर अपने घर वापस आ जाती थी। एक दिन सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है कि, “तुम तो सवेरे उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता”। तब बहू ने कहा, “माँजी, मैंने तो सोचा कि आप ही प्रातः उठकर सारे काम खुद ही खत्म कर लेती हैं। मैं तो देर से उठती हूं”। इसके बाद दोनों सास-बहू निगरानी करने लगी कि कौन है जो सवेरे ही घर का सारा काम करके चला जाता है। कई दिनों बाद धोबिन ने देखा कि एक कन्या प्रातः घर में आती है और सारे काम करने के बाद चली जाती है। जब वह जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी और पूछने लगी कि वह कौन है जो इस प्रकार छुपकर उसके घर में काम करती है। तब कन्या ने साधु द्बारा कही गई सारी बात बताई। सोना धोबिन पति परायण थी, उसमें तेज था इसलिए वह इस बात के लिए मान गई। सोना धोबिन के पति थोड़े अस्वस्थ थे इसलिए उसने अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा। सोना धोबिन ने जैसे ही अपने मांग का सिंदूर उस कन्या की मांग में लगाया, उसके पति की मृत्यु हो गई। थोड़े समय बाद उसे इस बात का पता चला, वह घर से निर्जल ही चली थी, यह सोचकर की रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भंवरी देकर उसकी परिक्रमा करने के बाद ही जल ग्रहण करेगी। उस दिन अमावस्या थी। ब्राह्मण के घर मिले पूए-पकवान की जगह उसने ईंट के टुकड़ों से 108 बार भंवरी देकर पीपल के पेड़ की 108 बार परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया। ऐसा करते ही उसका पति वापस जीवित हो गया इसलिए माना जाता है कि इस दिन व्रत आदि करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।