पुराणों में कई रोचक कथाएं मौजूद हैं, जो हमें भगवान की अनोखी लीलाओं का ज्ञान कराती हैं। ऐसी ही एक पौराणिक कथा का वर्णन हमें गणेश चतुर्थी के संबंध में भी मिलता है। इस कथा में ही हमें इस बात का उत्तर भी मिलता है कि गणेश चतुर्थी को चंद्र दर्शन निषेध क्यों होता है?
चिरकाल की बात है, एक बार धन के देवता कुबेर को अपने अपार धन पर अभिमान हो गया। एक दिन उनके मन में विचार आया कि “मेरे से अधिक धनवान समस्त जग में कोई नहीं है, मुझे अपने धन का प्रदर्शन करना चाहिए।” अपनी संपत्ति का दिखावा करने के लिए देवता कुबेर ने सभी देवताओं को भोजन पर आमंत्रित किया।
जब वह भगवान शिव और माता पार्वती को भोजन के लिए निमंत्रण देने पहुंचे, तो भगवान शिवजी कुबेर की मंशा को समझ गए थे कि वे सिर्फ अपनी धन-संपत्ति का दिखावा करने के लिए उन्हें अपने महल में आमंत्रित कर रहे हैं।
भगवान शिव जी ने कुबेर का अभिमान तोड़ने के लिए गणेश जी को उनके साथ भेजने का निर्णय लिया। भगवान शिव जी बोले, “मैं कुछ महत्वपूर्ण कार्यों में व्यस्त हूँ, आप मेरे पुत्र गणेश को अपने साथ ले जाएं।”
भगवान शिव जी की आज्ञा मानते हुए, कुबेर गणेश जी के साथ अपने महल वापिस आ गए। वहां उन्होंने गणेश जी के सामने अपने धन-दौलत का खूब बखान किया और फिर उसके बाद उन्होंने भगवान गणेश जी को भोजन ग्रहण करने के लिए कहा। गणेश जी को भोजन में विभिन्न प्रकार के पकवान परोसे गए और धीरे-धीरे गणपति जी ने पूरा भोजन समाप्त कर दिया।
इसके बाद उन्होंने कुबेर जी से और भोजन लाने को कहा, उन्हें काफी सारा भोजन फिर से परोसा गया और वह भी उन्होंने खत्म कर दिया। इस प्रकार वह महल के रसोई घर में बना पूरा भोजन खा गए, इसके बावजूद उनकी भूख शांत नहीं हुई और उन्होंने कुबेर जी से और भोजन की मांग की।
सबसे धनवान देवता होने के बावजूद जब कुबेर जी, गणेश जी को पेटभर खाना नहीं खिला पाए तो उन्हें काफी शर्मिंदगी महसूस हुई। साथ ही वह भगवान की लीला भी समझ गए और इस प्रकार उनका अभिमान टूट गया।
इसके बाद उन्होंने गणेश जी से माफ़ी मांगी और गणेश जी वहां से चले गए। रास्ते में वह अपनी सवारी मूषक पर सवार होकर जा रहे थे, रास्ते के बीच में मूषक ने एक सर्प देखा और भय से उछल पड़े। जिसके कारण वह संतुलन खो बैठे और नीचे गिर पड़े। नीचे गिरने की वजह से उनके सारे कपड़े गंदे हो गए, वह उठे और इधर-उधर देखने लगे। तभी उन्हें कहीं से हँसने की आवाज़ सुनाई दी, लेकिन गणेश जी को आसपास कोई नहीं दिखा। थोड़ी देर बाद उनका ध्यान आसमान में चंद्रमा पर गया और उन्हें तब पता चला कि चंद्र देव उनके गिरने का उपहास बना रहे थे।
यह देखकर गणेश जी अत्यंत क्रोधित हो उठे और चंद्रमा को श्राप देते हुए बोले कि, “हे चंद्रमा! तुम इस प्रकार से मेरी विवशता का मजाक उड़ा रहे हो, यह तुम्हें शोभा नहीं देता। मेरी मदद करने की बजाय तुम मुझ पर हंस रहे हो, जाओ मैं तुम्हे श्राप देता हूं कि आज के बाद तुम इस विशाल गगन पर राज नहीं कर सकोगे और तुम्हें कोई भी देख नहीं पाएगा।
इस श्राप के प्रभाव से चारों ओर अंधेरा छा गया और चंद्र देव की रोशनी गायब हो गई। चंद्रमा को अपनी गलती का एहसास हुआ और वो अपनी गलती के लिए गणेश जी से बार-बार क्षमा मांगने लगे।
चंद्रमा को इस प्रकार लाचार देखकर, गणेश जी का गुस्सा शांत हो गया। चंद्र देव ने फिर से गणेश जी से कहा कि “कृपया आप मुझे माफ कर दीजिए और मुझे अपने इस श्राप से मुक्त कीजिए। यदि मैं अपनी रोशनी इस संसार पर नहीं फैला पाया तो मेरे होने न होने का अर्थ खत्म हो जाएगा।”
यह सुनकर गणेश जी ने कहा कि “ मैं अब चाहकर भी अपना श्राप वापस नहीं ले सकता। परन्तु इस श्राप के प्रभाव को कम ज़रूर कर सकता हूँ। प्रत्येक माह में केवल चंद्रमा अमावस्या के दिन आपको कोई देख नहीं पाएगा। इसके बाद आपकी कलाएं बढ़ती जाएंगी, और पूर्णिमा के दिन आप अपने पूर्ण स्वरूप में दिखाई देंगे। पूर्णिमा के बाद फिर से आपकी कलाएं घटती जाएंगी। गणेश जी ने आगे कहा कि, आज गणेश चतुर्थी पर आपने मेरा अपमान किया है, आज के दिन अगर कोई आपको देख लेगा तो पाप का भागीदार बनेगा।
इसके पश्चात गणेश जी कैलाश पर्वत पर वापस लौट गए। मान्यताओं के अनुसार, इस कारण से आज भी गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन अशुभ माना जाता है।