गुरू पूर्णिमा व्रत का महत्व और पूजा विधि
हम हजारों वर्षों से गुरू पूर्णिमा मनाते आ रहे है, लेकिन क्या आप यह जानते है कि गुरु पूर्णिमा में किसकी पूजा की जाती है? अगर नहीं तो आज हम इस लेख में जानेंगे गुरू पूर्णिमा से जुड़ी संपूर्ण जानकारी। हर युग में ही शिष्यों के जीवन में गुरु का विशेष स्थान रहा है। गुरु के इसी महत्व को देखते हुए हर वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि पर गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी दिन महर्षि वेद व्यास जी का जन्म हुआ था, इसीलिए इस पूर्णिमा तिथि को वेदव्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। तो आइए जानते है गुरू पूर्णिमा का महत्व, गुरू पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त और गुरू पूर्णिम की पूजा विधि।
गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है इसका क्या महत्व है?
जीवन में संस्कार व सफलता बिना किसी गुरु के संभव नहीं है। इसीलिए गुरुओं को सम्मान देने के लिए गुरु पूर्णिमा मनाने की परंपरा शुरू हुई। कई शोध इस बात की पुष्टि करते हैं कि वेद व्यास जी ने हिन्दू संस्कृति के चारों वेद, महाकाव्य महाभारत और कई पुराणों की रचना की, इस कारण उन्हें प्राचीन भारत का प्रथम गुरु माना जाता है, और उन्हीं के सम्मान में ये पर्व मनाया जाता है। बौद्ध धर्म के लोगों के लिए भी गुरु पूर्णिमा के दिन का विशेष महत्व है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि भगवान बुद्ध ने सारनाथ में अपना पहला उपदेश इसी दिन दिया था।
गुरु पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त
गुरु पूर्णिमा का पर्व 3 जुलाई, सोमवार को मनाया जाएगा।
पूर्णिमा तिथि 02 जुलाई, रविवार को रात 08 बजकर 21 मिनट पर प्रारंभ होगी।
पूर्णिमा तिथि का समापन 03 जुलाई, सोमवार को शाम 05 बजकर 08 मिनट पर होगा।
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त प्रातः 03 बजकर 49 मिनट से प्रातः 04 बजकर 30 मिनट तक रहेगा।
प्रातः सन्ध्या मुहूर्त प्रात: 04 बजकर 10 मिनट से सुबह 05 बजकर 12 मिनट तक होगा।
अभिजित मुहूर्त दिन में 11 बजकर 35 मिनट से 12 बजकर 29 मिनट तक रहेगा।
विजय मुहूर्त दिन में 02 बजकर 19 मिनट से 03 बजकर 14 मिनट तक रहेगा।
इस दिन गोधूलि मुहूर्त शाम में 06 बजकर 51 मिनट से 07 बजकर 12 मिनट तक रहेगा।
सायाह्न सन्ध्या काल शाम में 06 बजकर 53 मिनट से 07 बजकर 54 मिनट तक रहेगा।
इस दिन अमृत काल सुबह 05 बजकर 14 मिनट से 06 बजकर 41 मिनट तक रहेगा
गुरु पूर्णिमा पूजा विधि
कहते है कि किसी भी व्रत की विधि-विधान से पूजा की जाएं तो भगवान जल्द ही प्रसन्न होते है और उस व्रत का फल प्राप्त होता है, को देर किस बात की जानते है गुरू पूर्णिमा व्रत की पूजा विधि श्री मंदिर के इस लेख में।
इस दिन आपको उनकी पूजा करनी है, जिन्हें आपने गुरु के रूप में सम्मान दिया है और जिन्होंने आपको जीवन में ज्ञान का मार्ग दिखाया है। गुरु पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि कार्यों से निवृत हो जाएं। इसके बाद स्वच्छ कपड़े धारण करें और मंदिर को भी साफ कर लें। अब मंदिर में रंगोली या स्वस्तिक बनाकर इसके ऊपर एक आसन रखें। उस आसन पर पीला या सफेद कपड़ा बिछाकर, चावल के दाने डाल दें। अब आप इन चावल के दानों पर गुरु की प्रतिमा या पादुका रख दें। अब आप उनके समक्ष दीप प्रज्वलित करें और उन्हें चंदन से तिलक लगाएं। अब आपको उन्हें अक्षत, पुष्प, जनेऊ, ऋतुफल, खीर आदि अर्पित करें। पूजा का समापन आरती के साथ करें और प्रसाद वितरित करें।
तो यह थी गुरू पूर्णिमा के दिन की जाने वाली पूजा की विधि। आइए अब आगे जानेंगे कि गुरू पूर्णिमा की कथा क्या है?
गुरु पूर्णिमा की व्रत कथा
आज हम आपको परम ज्ञानी तथा कई पुराणों व ग्रंथों के रचयिता वेदव्यास की उत्पत्ति की कथा सुनाने जा रहे हैं। जो ही गुरु पूर्णिमा की व्रत कथा है। वेदव्यास जी ऋषि पाराशर और सत्यवती के पुत्र थे। उनके जन्म के पीछे एक काफी रोचक कथा है, तो चलिए इस वीडियो के माध्यम से जानते हैं, किस प्रकार हुआ वेद व्यास जी का जन्म। पौराणिक काल में योगिराज पाराशर तीर्थयात्रा करते हुए यमुना तट पर पहुंच गए। वहां पर उन्होंने एक निषाद मल्लाह से नौका द्वारा यमुना नदी पार कराने के लिए कहा। इस पर निषाद ने अपनी मत्स्यगंधा नामक कन्या से कहा कि, पुत्री ये महान तपस्वी पाराशर हैं जो कि चारों वेदों में पारंगत हैं, तुम इन्हें शीघ्र ही नौका से उस पार ले जाओ। मत्स्यगंधा ने अपने पिता की बात सुनकर महामुनी जी को नौका से नदी पार कराने लगी। इस दौरान ऋषि पाराशर उस कन्या पर मोहित हो गए और उन्होंने उसे अपने दाहिने हाथ से स्पर्श किया। कन्या को उनकी मंशा का ज्ञान हो गया। मत्स्यगंधा ने उनसे कहा कि- हे मुनिवर्य, आप एक तपस्वी हैं, परम ज्ञानी, विद्वान, सुंदर एवं ऊंचे कुल से हैं, और मैं दुर्गन्धयुक्त, काले रंग की मल्लाह से उत्पन्न एक मामूली कन्या हूँ, हम दोनों का मिलन कैसे संभव है? यह सुनते ही ऋषि पाराशर ने कहा कि मैं कभी अप्सराओं पर भी मोहित नहीं हुआ, लेकिन लगता है ईश्वर की यही इच्छा है। ऐसा कहकर उन्होंने उस मत्स्यगंधा को मनोहर, सुंदर एवं सुगंधित कन्या में परिवर्तित कर दिया। मुनि की ऐसी इच्छा देखकर कन्या ने बोला कि आप कृपया करके रात्रि तक प्रतीक्षा करें क्योंकि दिन में प्रसंग उचित नहीं माना गया है। मुनिश्रेष्ठ ने यह बात सुनकर शीघ्र ही अपनी शक्तियों से चारों ओर अंधकार उत्पन्न कर दिया। यह देखकर कन्या चकित हो गई और कहने लगी कि यदि हमारे मिलन से मैं गर्भवती हो गई तो मैं बाद में अपने पिता को क्या उत्तर दूंगी। समाज में भी मेरी अवहेलना होगी। ऋषि पराशर ने कन्या की प्रार्थना सुनकर उसे वरदान दिया कि उसका नाम सत्यवती हो जाएगा और उसे चारों दिशाओं में प्रसिद्धि मिलेगी। साथ ही मुनि पाराशर ने कन्या को महातेजस्वी पुत्र का भी वरदान दिया जिसकी प्रशंसा तीनों लोकों में होगी और वह पुराणों की रचना व वेद की शाखाओं का विभाजन करेगा। इसके बाद ऋषि पाराशर और सत्यवती के मिलन से वेद व्यास जी का जन्म हुआ और पाराशर जी के वरदान से उन्होंने अपने जीवन काल में कई महान कार्य किए। तो यह थी वेद व्यास जी की जन्म कथा, अगर आप गुरु पूर्णिमा की पूजा विधि जानना चाहते हैं तो श्री मंदिर ऐप पर अवश्य जाएं।