गायत्री जयंती (Gayatri Jayanti)
सनातन धर्म में माँ गायत्री जयंती का विशेष महत्व है। धर्म ग्रंथों के अनुसार ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादधी तिथि को देवी गायत्री प्रकट हुई थीं। इसी उपलक्ष्य में गायत्री जयंती का पर्व मनाया जाता है। मां गायत्री को वेदमाता कहा जाता है, यानि सभी वेदों की उत्पत्ति इन्हीं से हुई है।
गायत्री जयंती के दिन ही माता गायत्री का जन्म हुआ था। माता गायत्री को सभी वेदों की जननी माना गया है। मान्यताओं के अनुसार, माता गायत्री के पांच मुख हैं, जो कि पृथ्वी के पांच तत्वों यानी जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि और आकाश के सूचक हैं। शास्त्रों के अनुसार, इस संसार के हर जीव में प्राण शक्ति के रूप में मां गायत्री विद्यमान हैं। माँ गायत्री को विश्व माता और देव माता का भी स्थान दिया गया है।
गायत्री जयंती 2024 (Gayatri Jayanti 2024 Date)
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साल 2024 में ज्येष्ठ गायत्री जयन्ती सोमवार 17 जून 2024 को मनाई जाएगी।
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एकादशी तिथि का प्रारम्भ: 17 जून 2024 को सुबह 04 बजकर 43 मिनट से होगा
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एकादशी तिथि का समापन: 18 जून 2024 को सुबह 06 बजकर 24 मिनट पर होगा।
गायत्री जयंती का महत्व (Importance Of Gayatri Jayanti)
वेदों में बताया गया है कि स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि यदि कोई ईश्वर को प्राप्त करना चाहता हो तो उसे गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। मन की शांति एवं तनाव से मुक्ति के लिए गायत्री मंत्र के जाप को अत्यंत ही लाभकारी माना गया है। इस मंत्र के उच्चारण से दुख, शारीरिक कष्ट, दरिद्रता, पाप आदि दूर होते हैं। इस दिन आप गायत्री माता की पूजा करते समय गायत्री मंत्र का उच्चारण अवश्य करें। इस दिन किसी गरीब व्यक्ति की सहायता करें। आप इस दिन गायत्री माता के मंदिर में दर्शन करने भी जा सकते हैं। इस दिन अपने गुरुजनों का अपमान कदापि न करें और मांस-मदिरा का सेवन न करें।
गायत्री जयंती पूजा विधि (Gayatri Jayanti Puja Vidhi)
वेदों में माँ गायत्री की पूजा को अत्यंत फलदायी माना गया है। गायत्री जयंती पर गायत्री माता की पूजा-पाठ करने का भी विशेष महत्व है। आज हम आपके लिए गायत्री जयंती की संपूर्ण पूजा विधि लेकर आए हैं।
तो चलिए जानते हैं कि इस पर्व पर गायत्री माता का आशीष प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा विधि-
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गायत्री जयंती के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर लें। संभव हो तो गंगा नदी में स्नान करें वरना घर के ही पानी में गंगाजल की कुछ बूंदें मिला लें।
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इसके बाद साफ वस्त्र धारण कर सूर्यदेव को तांबे के पात्र से अर्घ्य दें।
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अब आप किसी गायत्री मंदिर या घर के किसी भी शुद्ध पवित्र स्थान पर पीले कुशा के आसन पर सुखासन की मुद्रा में बैठ जाएं।
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इसके बाद माँ गायत्री का आह्वान करते हुए माँ गायत्री का प्रतीक चित्र या मूर्ति सुसज्जित पूजा वेदी पर स्थापित करें।
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इसके बाद मूर्ति के सामने कलश, घी का दीपक स्थापित करें।
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तत्पश्चात् गायत्री माता को पुष्प, धूप, नैवेद्य, अक्षत, चन्दन आदि अर्पित करें और उन्हें सात्विक चीजों का भोग लगाएं।
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इसके बाद आप व्रत कथा पढ़ें और सभी देवी-देवताओं की आरती करें।
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इसके साथ ही आपकी पूजा संपन्न होती है, और अब व्रत रखने वाले भक्त फलाहार ग्रहण कर सकते हैं।
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आप अगले दिन भगवान जी की पूजा पाठ के बाद व्रत का पारण करें।