चैत्र पूर्णिमा व्रत का महत्व

चैत्र पूर्णिमा व्रत का महत्व

यह व्रत करेगा समस्त कष्टों का नाश


चैत्र पूर्णिमा व्रत (Chaitra Purnima Vrat)

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, चैत्र मास वर्ष का प्रथम मास माना जाता है, और चैत्र मास में पड़ने वाली पहली पूर्णिमा को चैत्र पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस पूर्णिमा तिथि से जुड़ी कई धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं। इस दिन विष्णु भक्त अपने आराध्य की उपासना करते हैं, साथ ही इस पूर्णिमा पर भगवान श्री राम के परम भक्त हनुमान जी की जयंती भी मनाई जाती है। जैसा कि आप जानते हैं, मंगलवार को हनुमान जी का दिन माना जाता है, इसलिए यदि ये पूर्णिमा तिथि मंगलवार के दिन पड़े, तो इस महत्व और अधिक हो जाता है।

एक और मान्यता के अनुसार, चैत्र पूर्णिमा के दिन ब्रज में भगवान श्री कृष्ण ने योगमाया की सहायता से एक हज़ार गोपियों संग महारास लीला रचाई थी, इस उपलक्ष्य में भी कई क्षेत्रों में ये पर्व मनाने की परंपरा है। कई जगहों पर इस पर्व को 'चैती पूनम' के नाम से भी जाना जाता है। इस तिथि पर रात के समय चन्द्रमा अपनी सोलह कलाओं को पूर्ण करके अपने सम्पूर्ण रूप में आकाश में प्रकाशमान होता है। आइए इस लेख में जानें 2024 में चैत्र पूर्णिमा व्रत कब किया जाएगा और इसका क्या महत्व है।

चैत्र पूर्णिमा व्रत 2024 का शुभ मुहूर्त (Chaitra Purnima Vrat 2024 Shubh Muhurat)

साल 2024 में चैत्र पूर्णिमा व्रत मंगलवार 23 अप्रैल 2024 को रखा जाएगा। जहां पूर्णिमा तिथि का प्रारम्भ 23 अप्रैल 2024 को सुबह 03 बजकर 25 मिनट पर होगा । वहीं पूर्णिमा तिथि का समापन 24 अप्रैल 2024 को सुबह 05 बजकर 18 मिनट पर किया जाएगा।

चैत्र पूर्णिमा का यह व्रत समस्त कष्टों का नाश करने वाला एवं मनोवांछित फलों का प्रदाता माना गया है। आप भी इस अद्भुत व्रत का पालन करें और हरि की विशेष कृपा के अधिकारी बनें।

चैत्र पूर्णिमा का महत्व (Importance Of Chaitra Purnima)

हमारे पुराणों में पूर्णिमा तिथि और इस दिन व्रत करने का महात्म्य बहुत अधिक है। एक ओर जहां चन्द्रमा की श्वेतिमा हमें इस दिन की दिव्यता का अनुभव करवाती है। कहते हैं कि पूर्णिमा के दिन व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट होते हैं और उन्हें पुण्यफल की प्राप्ति होती है। मान्यताएं हैं कि पूर्णिमा के दिन व्रत और स्नान-दान आदि करने से घर में सुख-समृद्धि निवास करते हैं, तथा सभी क्लेशों का नाश होता है। चैत्र पूर्णिमा पर किसी पवित्र नदी में स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करने एवं व्रत का संकल्प लेने का विशेष महत्व है। यदि इस दिन गंगास्नान संभव हो सके, तो श्रेष्ठ फल की प्राप्ति होती है। इस दिन यदि सच्ची आस्था से श्री सत्यनारायण भगवान की उपासना की जाए एवं उनकी कथा का पाठ किया जाए, तो सांसारिक सुखों के साथ-साथ मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है।

ये दिन विष्णु भक्तों के साथ-साथ हनुमान जी के भक्तों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। कई राज्यों में ये पर्व हनुमान जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पवन पुत्र श्री हनुमान जी की उपासना करने से जीवन के समस्त कष्टों का निवारण होता है, एवं दुख-दरिद्रता भी समाप्त होती है। इस पर्व पर प्रातःकाल स्नान करके भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, और रात्रि के समय चंद्र देव की पूजा के पश्चात् उन्हें अर्घ्य देने का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि चंद्र अर्घ्य के बिना चैत्र पूर्णिमा का व्रत पूर्ण नहीं माना जाता है। चैत्र पूर्णिमा तिथि पर दान-पुण्य का भी विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि यदि इस दिन घड़े में कच्चा अन्न डाल कर किसी निर्धन व्यक्ति को दान किया जाए, तो कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती हैं।

चैत्र पूर्णिमा के दिन क्या करना चाहिए? (Things To Do In Chaitra Purnima)

पूर्णिमा के दिन व्रत करने के साथ ही चंद्रमा और माता लक्ष्मी की पूजा अवश्य करें। इससे आपके घर में धन-धान्य की कभी कमी नहीं होगी। यदि आपकी कुंडली में चंद्र दोष है तो पूर्णिमा के दिन व्रत करने एवं चंद्रमा की पूजा करने से आपकी कुंडली का चंद्र दोष दूर हो जाएगा। चूँकि पूर्णिमा तिथि पर चंद्रमा मनुष्य को अधिक प्रभावित करता है, इसलिए इस दिन व्रत एवं चंद्रमा को जल अर्पित करने से आपको विशेष लाभ होगा।

चैत्र पूर्णिमा व्रत की पूजा विधि (Chaitra Purnima puja Chaitra Purnima Chaitra Purnima Vidhi)

पूजा से पहले किए जाने वाले कार्य

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि कार्यों से निवृत हो जाएं। चैत्र पूर्णिमा के दिन वैसे तो किसी जलाशय या पवित्र नदी में स्नान करने का विशेष महत्व होता है, लेकिन अगर ऐसा संभव न हो पाए तो, घर में ही जल में गंगाजल मिलाकर स्नान कर लें। ब्रह्म मुहूर्त में ही सूर्य देव को अर्घ्य दें। इसके बाद तुलसी के पौधे की जड़ों में गाय का दूध अर्पित करें, दीप प्रज्वलित करें, धूप दिखाएं, भोग लगाएं और आरती उतारें। इस दिन भोग में तुलसी जी को 30 या 31 पूड़ी और खीर अर्पित करना शुभ माना गया है।

भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की पूजन विधि

चैत्र पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण भगवान यानी विष्णु जी की पूजा का विशेष महत्व है। इसके लिए ईशान-कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा में एक चौकी स्थापित कर लें और चौकी पर पीला वस्त्र बिछाएं। इस चौकी के ऊपर केले के पत्तों का मंडप लगाएं। चौकी पर गंगाजल छिड़ककर उस स्थान को शुद्ध कर लें। अब चौकी पर अक्षत का आसन देत हुए, भगवान विष्णु, भगवान गणेश, माँ लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित कर लें। इसके पश्चात् सभी प्रतिमाओं पर भी एक-एक करके गंगाजल छिड़कें। अब कलश की स्थापना के लिए मूर्ति के समक्ष चावल रखें या अष्टदल बनाएं और उस पर कलश रखकर उस पर मौली बांध दें। अब कलश में गंगा जल, शुद्ध जल, सुपारी, सिक्का, हल्दी, कुमकुम आदि डाल दें और इसके मुख पर आम के पत्ते रख दें। आम के पत्तों और नारियल पर भी मौली बांध कर रखें। मूर्ति या चित्र के दाएं तरफ एक घी का दीपक रख दें। इस प्रकार पूजा की तैयारियां पूरी हो जाएंगी, अब आप पूजा प्रांरभ कर सकते हैं।

पूजा प्रारंभ-

सबसे पहले आसन ग्रहण करें और “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मंत्र का जाप करते हुए आचमन करें। अब आप घी के दीपक को प्रज्वलित करें और हाथ में पुष्प और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें और फिर वह पुष्प भगवान जी के चरणों में अर्पित कर दें। सबसे पहने भगवान गणेश का पूजन करें। उन्हें हल्दी-रोली से तिलक करें। फिर उन्हें अक्षत, जनेऊ, लाल पुष्प और दूर्वा अर्पित करें। अब सत्यनारायण जी को हल्दी-चंदन का तिलक लगाएं और लक्ष्मी माता को कुमकुम-हल्दी को तिलक करें। सभी प्रतिमाओं को अक्षत अर्पित करें। इसके पश्चात् सत्यनारायण भगवान को जनेऊ चढ़ाएं, पुष्प चढ़ाएं और पीले फूलों की माला पहनाएं। माँ लक्ष्मी को कमल का फूल, पुष्प माला, मौली और सुहाग की पूरी सामग्री अर्पित करें। अब भोग में आप भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी को पंचामृत, पंजीरी, फल और मिठाई का भोग लगाएं। भगवान गणेश जी को भी मिठाई और फल अर्पित करें। भोग के साथ भगवान जी को दक्षिणा भी अर्पित करें। अब सत्यनारायण भगवान की कथा को पढ़ें या सुनें। इसके पश्चात् सभी प्रतिमाओं को धूप दिखाएं और उनकी आरती उतारें। अंत में हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर भगवान जी से पूजा में हुई किसी भी गलती के लिए क्षमा मांगे और अक्षत व पुष्प को भगवान के चरणों में छोड़ दें। इसके पश्चात् अगर आप व्रत रख रहे हैं तो स्वयं फलाहार ग्रहण करें और परिवारजनों में प्रसाद वितरित कर दें।

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