हिंदू धर्म में हर एक त्योहार का एक अलग महत्व होता है और लोग हर व्रत त्योहार को बड़े धूम धाम से मनाते हैं। वैसा ही एक त्योहार आने वाला है, जिसका नाम है कजरी तीज। कजरी तीज का त्योहार भादो मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। जिसे कजली तीज, बड़ी तीज, नीमड़ी तीज और सातुड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि कजरी तीज कब है, कजरी तीज क्यों मनाई जाती है? और कजरी तीज का शुभ मुहूर्त क्या है? अगर नहीं तो आप इस लेख में इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। तो आइए जानते हैं कजरी तीज की तिथि और शुभ मुहूर्त के बारे में।
कजरी तीज का शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष भादव मास की तृतीया तिथि 01 सितंबर 2023 को रात 11 बजकर 50 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 02 सितंबर 2023 को रात 08 बजकर 49 मिनट पर इसका समापन होगा। वहीं बात करें कजरी तीज पर पूजा करने के शुभ मुहूर्त की तो सुबह 7 बजकर 57 मिनट से सुबह 9 बजकर 31 मिनट तक है। अगर आप रात को पूजा करना चाहते हैं तो आप रात में 9 बजकर 45 मिनट से 11 बजकर 12 मिनट तक है।
तो दोस्तों यह थी कजरी तीज की तिथि और उसके शुभ मुहूर्त के बारे में सम्पूर्ण जानकारी। आइए आगे जानते हैं कजरी तीज के महत्व के बारे में।
कजरी तीज का महत्व
यह त्योहार सभी विवाहित महिलाओं और कुवांरी कन्याओं के लिए महत्वपूर्ण होता है। जहां विवाहित महिलाएं यह व्रत सुखी वैवाहिक जीवन और अपने पति की लंबी आयु की कामना के साथ रखते हैं, वहीं, कुंवारी लड़कियां इस व्रत को मनोवांछित वर की कामना के साथ करती हैं।
इस दिन विधि पूर्वक पार्वती माता का स्वरूप नीमड़ी माता की पूजा-अर्चना की जाती है। करवा चौथ की तरह इस व्रत को निर्जला रखा जाता है और रात में चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत को खोला जाता है। इस दिन महिलाएं कजरी तीज के गीत गाती हैं और झूला झूलती हैं। तो दोस्तों यह था कजरी तीज का महत्व, आइए आगे जानते हैं कजरी तीज की पूजा विधि के बारे में।
कजरी तीज की पूजा विधि
कजरी तीज की पूजा विधि के लिए आइए जानते है पूजा में काम आने वाली सामग्री के बारे में।
गोबर, काली मिट्टी, रोली, मौली, मेहंदी, अक्षत, हल्दी, गाय का कच्चा दूध, नीम की टहनी, दीप, धूप, भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश जी की प्रतिमा या चित्र, मिष्ठान, आसन, कुमकुम, चंदन, सफेद कागज़, गेहूं के दाने, पानी का लोटा, नींबू, ककड़ी, केला, सेब, सत्तू, अक्षत, सोलह श्रृंगार की सामग्री, आदि।
पूजा में सबसे पहले महत्वपूर्ण होता है विधि पूर्वक भगवान जी का आसन स्थापित करना। इसके लिए आप पूजा स्थल को हल्दी से लीप लें और उस पर अक्षत रखकर एक आसन को स्थापित कर दें। फिर इस आसन पर भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी का चित्र या फिर प्रतिमा स्थापित करें। इसके साथ ही आप पानी का लोटा अवश्य रख लें, जिससे संध्या में चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाएगा।
इसके बाद पूजा में काली मिट्टी और गोबर से बनने वाले तलाब का भी खास महत्व होता है। इसके लिए आप काली मिट्टी और गोबर को एक साथ मिलाकर दीवार के सहारे एक तालाब जैसी आकृति बनाएं। इस तालाब में अब गाय का कच्चा दूध और पानी डालें। तालाब के किनारे नीम की टहनी रोपें साथ ही तालाब को फूलों से सजाएं।
अब तालाब के किनारे एक घी का दीप प्रज्वलित करें और धूप जलाएं फिर नीमड़ी माता को जल व रोली के छींटे दें और उन्हें अक्षत चढ़ाएं।
जैसा कि हम सभी को पता है कि तीज में झूले का विशेष महत्व होता है। कजरी तीज में पूजा स्थल पर मौली की मदद से एक झूला भी बनाया जाता है।
इसके बाद दीवार या कागज़ पर रोली की मदद से स्वास्तिक बनाएं। फिर इसमें मेहंदी, रोली और काजल की 13-13 बिंदियां अंगुली से उस पर लगा दें। इसके बाद सभी प्रतिमाओं और नीम की पत्तियों को कुमकुम का तिलक लगाना है, साथ ही जो जल का लोटा आपने रखा था उसके मुख पर भी कुमकुम से 13 बिंदियां लगानी हैं।
इसके अलावा कजरी तीज में बेसन (सत्तू) की भी पूजा करने का विधान है। तो आप भी सत्तू का एक बड़ा लड्डू बनाएं और उस पर एक सिक्का, सुपारी और मौली चढ़ाएं।
इसके पश्चात आपके द्वारा बनाया गया भोग नीमड़ी माता को अर्पित करें, साथ में उन्हें सोलह श्रृंगार की सामग्री भी चढ़ाएं । पूजा करते वक्त नीम की टहनी पर रक्षा सूत्र अवश्य बांधें।
फिर पूजा स्थल पर बने तालाब के किनारे पर रखे दीपक के उजाले में नींबू, ककड़ी, नीम की डाली, नाक की नथ, साड़ी का पल्ला आदि की परछाई देखें। कहा जाता है कि ऐसा करना अत्यंत शुभ होता है। इसके अलावा इस पूजा में व्रत कथा सुनना बिल्कुल भी न भूलें। इसलिए कथा सुनने या पढ़ने के बाद अंत में मॉं की आरती उतारें।
वहीं कजरी तीज पर संध्या के समय चंद्रमा को अर्घ्य देने की भी परंपरा है। इसके लिए चंद्रमा को जल के छींटे देकर रोली, मौली, अक्षत चढ़ाएं और फिर भोग अर्पित करें। अब गेहूं के दानों को हाथ में लेकर जल से अर्घ्य दें और एक ही जगह खड़े होकर चार बार घूमें। इसी के साथ आपकी पूजा संपूर्ण हो जाएगी।