कल्कि द्वादशी (Kalki Dwadashi)
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को कल्कि द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के 10वें अवतार कल्कि की पूजा का विधान है। विष्णु पुराण के अनुसार भगवान् विष्णु के दशवें अवतार के रूप में कल्कि का जन्म होगा, जिनके द्वारा कलयुग की समाप्ति होगी। आज हम आपको कल्कि अवतार से जुड़े कुछ विशेष तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं-
इस लेख में आप जानेंगे:
- कल्कि द्वादशी कब है?
- इस दिन के अन्य शुभ मुहूर्त
- कल्कि अवतार का उद्देश्य
- कल्कि द्वादशी के दिन के अनुष्ठान
- कल्कि स्वरूप की पूजा विधि
- अवतरण से पहले ही क्यों होती है कल्कि देव की पूजा?
- कहां हो सकता है कल्कि का जन्म
कल्कि द्वादशी कब है?
- कल्कि द्वादशी 15 सितंबर 2024, रविवार (भाद्रपद, शुक्ल द्वादशी) को मनाई जायेगी।
- द्वादशी तिथि 14 सितम्बर 2024, शनिवार को 08:41 PM पर प्रारंभ होगी।
- द्वादशी तिथि का समापन 15 सितम्बर 2024, रविवार को 06:12 PM पर होगा।
इस दिन के अन्य शुभ मुहूर्त
- ब्रह्म मुहूर्त - 04:10 AM से 04:57 AM तक
- प्रातः सन्ध्या - 04:34 AM से 05:44 AM तक
- अभिजित मुहूर्त - 11:28 AM से 12:17 PM तक
- विजय मुहूर्त - 01:56 PM से 02:45 PM तक
- गोधूलि मुहूर्त - 06:02 PM से 06:25 PM तक
- सायाह्न सन्ध्या - 06:02 PM से 07:12 PM तक
- अमृत काल - 09:10 AM से 10:39 AM तक
- निशिता मुहूर्त - 11:30 पी एम से 12:16 ए एम, (16 सितम्बर) तक
कल्कि अवतार का उद्देश्य
भगवान विष्णु का कल्कि अवतार आज भी एक रहस्य बना हुआ है। पौराणिक मान्यता के अनुसार,भगवान विष्णु के नौ अवतारों का प्राकट्य हो चुका है, अब कलियुग में वे कल्कि के रूप में अपना दसवां अवतार लेंगे। ये उनका अंतिम अवतार होगा। भगवान विष्णु के इस अवतार का उद्देश्य धर्म की पुनर्स्थापना और पापियों का सर्वनाश करना रहेगा।
पुराणों में भगवान विष्णु का कल्कि अवतार बहुत ही आक्रामक बताया गया है। कहा जाता है कि भगवान कल्कि देवदत्त नामक सफेद घोड़े पर सवार होकर, हाथ में तलवार लिए पापियों का संहार करने आएंगे। मान्यता है कि कल्कि अवतार होने के बाद कलियुग का अंत होगा, और सत्य युग प्रारंभ हो जाएगा।
कल्कि द्वादशी के दिन के अनुष्ठान
- कल्कि द्वादशी के दिन व्रत रखने का भी विधान है, लेकिन यदि किसी कारणवश आप व्रत नहीं रख सकते हैं, तो विधिपूर्वक पूजा करके भी भगवान कल्कि की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
- कल्कि द्वादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- यदि आपके पास कल्कि स्परूप की तस्वीर या मूर्ति है, तो उसे करें, वरना आप भगवान विष्णु के मंदिर जाकर भी इनकी आराधना कर सकते हैं।
- भगवान का जलाभिषेक करके उन्हें कुमकुम, अक्षत, फल व फूल अर्पित करें।
- चंदन से भगवान का तिलक करें और उनके समक्ष घी का दीप प्रज्ज्वलित करें।
- इसके बाद भगवान कल्कि की आरती करें, और जाने-अनजाने जीवन में हुई किसी भी भूल के लिए क्षमा-प्रार्थना करें।
अवतरण से पहले ही क्यों होती है कल्कि देव की पूजा?
अभी भगवान विष्णु के दसवें अवतार का प्राकट्य नहीं हुआ है, लेकिन भगवान का ये एकमात्र ऐसा अवतार है, जिसकी पूजा अर्चना उनके जन्म से पहले से ही की जा रही है। पुराणों में विष्णु जी के दसवें अवतार के रूप में कल्कि के जन्म की पुष्टि की गई है। यही कारण है कि जन्म से पहले ही भगवान कल्कि की उपासना की जाती है। आपको बता दें कि कल्कि अवतार से पहले ही हमारे देश में भगवान कल्कि के कई मंदिर स्थित हैं, जहाँ बड़ी संख्या में भक्त पूजा-अर्चना के लिए जाते हैं।
कहां हो सकता है भगवान कल्कि का जन्म?
भगवान कल्कि के जन्मस्थान की बात करें, तो धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान् विष्णु के कल्कि अवतार का जन्म उत्तरप्रदेश के संभल गांव में होगा। कहा जा रहा है कि भगवान का ये अवतार एक विष्णु भक्त दंपत्ति के घर होगा। भगवान् विष्णु के राम अवतार की तरह ही कल्कि भी चार भाई होंगें, वे सब मिलकर पापियों का नाश करेंगे, और पुनः धर्म की स्थापना करेंगे।
तो यह थी पवित्र पर्व कल्कि द्वादशी से जुड़ी संपूर्ण जानकारी, हम आशा करते हैं इस दिन व्रत रखने वाले सभी भक्तों पर भगवान विष्णु की कृपा बनी रहे। ऐसे ही व्रत त्यौहारों से जुड़ी जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' के इस धार्मिक मंच पर।