जानें जया पार्वती की तिथि और महत्व

जानें जया पार्वती की तिथि और महत्व

अखंड सौभाग्य की होगी प्राप्ति


जया पार्वती व्रत (Jaya Parvati Vrat)



जया पार्वती व्रत माता पार्वती को समर्पित पर्व है। सुहागिन स्त्रियां इस व्रत को रखकर माता से अपना सुहाग अखंड होने की कामना करती हैं, और कुंवारी कन्याएं ये व्रत सुयोग्य वर पाने के लिए रखती हैं। जयापार्वती व्रत हर वर्ष अषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि से प्रारंभ होकर कृष्ण पक्ष की तृतीया पर समाप्त होता है।

जयापार्वती व्रत देवी जया को समर्पित एक महत्वपूर्ण उपवास दिवस है। देवी जया, देवी पार्वती के विभिन्न रूपों में से एक हैं। जयापार्वती व्रत मुख्य रूप से गुजरात में मनाया जाता है। जयापार्वती व्रत अविवाहित लड़कियों के साथ-साथ विवाहित महिलाएं भी रखती हैं। अविवाहित लड़कियां सुयोग्य वर पाने के लिए जयापार्वती व्रत रखती हैं और विवाहित महिलाएं अपने सुखी वैवाहिक जीवन के लिए यह व्रत रखती हैं।

जया पार्वती व्रत 2024: तिथि और शुभ मुहूर्त (Jaya Parvati Vrat 2024: Date and Time)


साल 2024 में जया-पार्वती व्रत शुक्रवार 19 जुलाई को रखा जाएगा। जयापार्वती पर प्रदोष पूजा मूहूर्त शाम 06 बजकर 50 मिनट से रात 08 बजकर 55 मिनट है। त्रयोदशी तिथि का प्रारम्भ 18 जुलाई 2024 को रात 08 बजकर 44 मिनट से होगा और त्रयोदशी तिथि का समापन 19 जुलाई 2024 को शाम 07 बजकर 41 मिनट पर होगा।

जया पार्वती व्रत पूजा की विधि (Jaya Parvati Vrat Puja Vidhi)


  • आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाएं।
  • इसके बाद स्नानादि कार्यों से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
  • व्रत के पहले दिन एक पात्र में ज्वार या गेहूँ के दानों को बोकर पूजा के स्थान पर रख दें और अगले 5 दिनों तक ज्वार के पात्र में जल,अक्षत पुष्प, रोली, और रूई की माला चढ़ाएं। रूई से बनी इस माला के हार को नगला के नाम से जाना जाता है, जिसे कुमकुम से सजाया जाता है।
  • इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विधान है। इसलिए घर के मंदिर में एक आसन पर लाल कपड़ा बिछाकर माता पार्वती और भगवान शिव की प्रतिमा को स्थापित करें।
  • इसके बाद भगवान के समक्ष दीप जलाएं और व्रत का संकल्प लें।
  • अब शिव-पार्वती जी को कुमकुम, अष्टगंध, शतपत्र,कस्तूरी और फूल, नारियल, नैवेद्य, ऋतु फल, धूप पंचामृत आदि अर्पित करें।
  • साथ ही माँ पार्वती को सुहाग की सामग्री चढ़ाएं। अगर आपने बालू या रेत से बने हाथी का निर्माण किया है तो उस पर पांच प्रकार के फल, फूल और प्रसाद अवश्य चढ़ाएं।
  • इसके बाद व्रत कथा का पाठ करें और फिर माता पार्वती और भगवान शिव की आरती उतारें।
  • आखिरी में माता पार्वती का ध्यान करते हुए सुख-सौभाग्य और गृह शांति की कामना करें और अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगे।
  • व्रत के पांचवे दिन आप सुबह स्नान करके माता पार्वती, भगवान शिव और ज्वार पात्र की पूजा करें और रात्रि में भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें।
  • अगले दिन रेत के हाथी और ज्वार के पौधों को किसी पवित्र नदी या तालाब में विसर्जित करें।
  • इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दान-दक्षिणा देने के पश्चात, हरी सब्जी तथा गेहूँ से बनी रोटियों से व्रत का पारण करें।

जया पार्वती व्रत का महत्व (Importance Of Jaya Parvati Vrat )


जया पार्वती व्रत का आरंभ आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष के त्रयोदशी से होता है। जया पार्वती व्रत को विजया पार्वती व्रत के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत विवाहित महिलाओं और अविवाहित महिलाओं, दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। जहां विवाहित स्त्रियां इस व्रत को सुखी वैवाहिक जीवन की कामना से करती हैं, वहीं अविवाहित महिलाएं, इस व्रत को योग्य वर की प्राप्ति के लिए करती हैं। इसे करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति भी होती है। यह व्रत भक्तों की माता पार्वती के प्रति असीम आस्था का प्रतीक है। साथ ही यह व्रत महिलाओं की भक्ति एवं समर्पण को भी दर्शाता है।

दरअसल, जया पार्वती व्रत एक प्रकार की साधना है क्योंकि इसकी अवधि 5 दिनों की होती है। इस व्रत का उद्यापन 5 वर्ष , 9 वर्ष ,11 वर्ष या फिर 20 सालों के बाद किया जाता है। यह पर्व मुख्यतः गुजरात में मनाया जाता है और इस दौरान वहां का वातावरण भक्तिमय हो जाता है। उपवास के आखिरी दिन स्त्रियां जागरण करती हैं व पूरी रात भजन-कीर्तन करते हुए माँ की आराधना व ध्यान करती हैं। धार्मिक भजनों तथा रात्रि जागरण की इस प्रथा को जया पार्वती जागरण के नाम से जाना जाता है।

इन बातों का रखें ध्यान (Keep These Things In Mind)


  • आप इस व्रत के दौरान ब्राह्मणों को भोजन कराएं और साथ ही दान-पुण्य भी अवश्य करें।
  • इन पांच दिनों में माता पार्वती का स्मरण करते हुए भजन-कीर्तन करें और मंदिर जाकर उनके दर्शन करें।
  • इसके अलावा अगर संभव हो तो व्रत के आखिरी दिन 5 कन्याओं को भोजन करवाएं।
  • आपको बता दें इस व्रत में नमक खाना वर्जित है।
  • इसके अलावा इन पाँच दिनों के उपवास की अवधि के दौरान अनाज तथा सभी प्रकार की सब्जियों को भी ग्रहण नहीं किया जाता है।


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