श्री मंदिर पर आपके लिए मासिक कार्तिगाई से जुड़ी हुई ज़रूरी जानकारी लेकर आए हैं, इसलिए इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें। इसमें हम जानेंगे कि मासिक कार्तिगाई क्या है, कार्तिगाई महीने में किस भगवान की पूजा की जाती है व मासिक कार्तिगाई व्रत की कहानी क्या है। तो आइए जानते है
इस लेख में हम जानेंगे -
क्या है मासिक कार्तिगाई मासिक कार्तिगाई कब मनाया जाता है मासिक कार्तिगाई से जुड़ी हुई पौराणिक कथा कहां जलाते हैं महादीपम कैसे की जाती है इस दिन पूजा
क्या है मासिक कार्तिगाई
मासिक कार्तिगाई एक मासिक त्यौहार है जिसे मुख्य रूप से तमिल हिन्दुओं द्वारा काफी हर्षोल्लास से मनाया जाता है। मासिक कार्तिगाई को दीपम कार्तिगाई के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिगाई दीपम का नाम कार्तिगाई या कृत्तिका नक्षत्र से लिया गया हैं। जिस दिन कृत्तिका नक्षत्र प्रबल होता है उस दिन कार्तिगाई दीपम मनाया जाता है।
मासिक कार्तिगाई कब मनाया जाता है
आपको बता दें, यह पर्व फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष में 26 तारीख को अर्थात 26 फरवरी को मनाया जाएगा। त्योहार के दिन शाम के समय घरों और गलियों में तेल के दीप एक पंक्ति में जलाये जाते हैं। साथ ही, इस दिन भगवान शिव एवं उनके पुत्र कार्तिकेय जी की पूजा का विधान है। ऐसी मान्यता है कि इनकी आराधना करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है।
मासिक कार्तिगाई से जुड़ी हुई पौराणिक कथा
इस पर्व से जुड़ी हुई एक पौराणिक कथा भी है, जिसके अनुसार, एक बार भगवान शिव ने भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी को अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए स्वयं को प्रकाश की अनन्त ज्योत में बदल लिया था। इसलिए उनके सम्मान में इस दिन ज्योत जलाने का विधान है।
कहां जलाते हैं महादीपम
तिरुवन्नामलई की पहाड़ी में कार्तिगाई का त्यौहार बहुत प्रसिद्ध हैं। कार्तिगाई के दिन पहाड़ी पर विशाल दीप जलाया जाता है जो पहाड़ी के चारों ओर कई किलोमीटर तक दिखता है। इस दीप को महादीपम कहते हैं और हिन्दु श्रद्धालु यहाँ जाते हैं और भगवान शिव की प्रार्थना करते हैं।
मासिक कार्तिगाई पर कैसे की जाती है पूजा
मासिक कार्तिगाई पर, भगवान-शिव और भगवान-मुरुगन का आशीर्वाद लेने का बहुत ही अधिक महत्व है और इसीलिये भक्तगण इस दिन सुबह-सुबह अपने दैनिक कार्यों को करने के बाद पूजा-अर्चना में लग जाते हैं। इस दिन मंदिरों में भारी भीड़ देखने को मिलती है।
- इस दिन भक्त स्नानादि के बाद अपने घर को साफ करते हैं।
- उसके बाद पूजा वेदी तैयार की जाती है, और भगवान मुरुगन की प्रतिमा पर पुष्प माला अर्पित की जाती है।
- आटा, घी और गुड़ से तैयार एक दीपक जलाया जाता है जो बहुत शुभ माना जाता है।
- सुब्रह्मण्य कवचम और कंडा षष्ठी कवचम का जाप करके पूजा की जाती है।
- अगरबत्ती, चंदन, हल्दी का लेप और सिंदूर भगवान को चढ़ाया जाता है।
- भक्त भोग के रूप में कई व्यंजनों को तैयार करते हैं।
- बाद में सुब्रह्मण्य जी की आरती की जाती है।
- कई भक्त इस दिन उपवास रखते हैं। उपवास भोर के दौरान शुरू होता है और शाम के दौरान समाप्त होता है।
- सुबह के साथ-साथ शाम को भी पूजा की जाती है।
तो यह थी मासिक कार्तिगाई से जुड़ी ज़रूरी जानकारी, ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए आप श्री मंदिर से जुड़े रहें।