नवरात्रि का पाँचवां दिन | Fifth Day of Navratri

नवरात्रि का पाँचवां दिन

इस विशेष दिन पर माँ की कृपा प्राप्त करने के लिए आवश्यक उपायों और अनुष्ठान के बारे में जानकारी प्राप्त करें।


नवरात्रि का पाँचवां दिन (Fifth Day of Navratri)

हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला कोई भी पर्व, व्रत और पूजा के बिना अधूरा माना जाता है। इसी प्रकार व्रत और पूजा भी उस व्रत में उपयोग होने वाली सामग्री के बिना अधूरा है। शारदीय नवरात्रि में भी व्रत और माता की आराधना का बहुत महत्व है। मां दुर्गा के नौं रूपों को समर्पित यह एक महोत्सव की तरह है। आज इस लेख में हम जानेंगे माता को समर्पित नवरात्र के पांचवे दिन के बारे में जो देवी स्कंदमाता को समर्पित है। इस दिन इस रूप में माता की आरधना की जाती है। आइए, जानते हैं नवरात्र के पांचवे दिन का महत्व, पूजा विधि और इससे जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी।

नवरात्रि के पाँचवें दिन का महत्व (Importance of the Fifth Day of Navratri)

“सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥”

माँ दुर्गा के पांचवे शक्ति स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है, और शारदीय नवरात्रि का पांचवा दिन, देवी जी के इसी स्वरूप को समर्पित है। इस वर्ष शारदीय नवरात्रि के पांचवे दिन अर्थात 07 अक्टूबर, सोमवार को माँ स्कंदमाता की साधना की जाएगी।

भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कन्द भी है, और इनकी माता के रूप में देवी के स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। देवी स्कन्दमाता का वाहन सिंह है। उनकी गोद में भगवान कार्तिकेय विराजमान है। माता का यह अवतार चतुर्भुजा अर्थात चार भुजाओं वाला है। अपने ऊपर के दो हाथों में माता ने कमल का फूल धारण किया हुआ है। एक हाथ से उन्होंने भगवान कार्तिकेय को संभाला हुआ है, और शेष एक हाथ अभय मुद्रा में है, जिससे माँ अपने सभी भक्तगणों को अभय का आशीष दे रही हैं।

नवरात्रि के पाँचवें दिन का शुभ मुहूर्त (Auspicious time of fifth day of Navratri)

नवरात्र के पांचवें दिन माँ दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां स्कन्दमाता की पूजा का बहुत महत्व है। इस वर्ष नवरात्रि का पांचवां दिन 07 अक्टूबर, सोमवार को है।

पंचमी तिथि प्रारंभ: 07 अक्टूबर, सोमवार 09:47 AM शुक्ल पंचमी समापन: 08 अक्टूबर, मंगलवार 11:17 AM

स्कंदमाता की पूजा से होने वाले लाभ (Benefits of Devi Skandamata Puja)

शारदीय नवरात्र के पांचवे दिन माँ स्कंदमाता की पूजा करने से साधकों को भगवान कार्तिकेय के समान तेजस्वी संतान प्राप्त होती है। माँ स्कंदमाता बहुत करुणामयी हैं, और वे अपने भक्तों से हुई हर त्रुटि के लिए उन्हें क्षमादान देती हैं। माँ की पूजा करने से भगवान कार्तिकेय का आशीर्वाद स्वतः ही साधकों को मिल जाता है। माँ स्कंदमाता को लाल रंग अतिप्रिय है। और इस बार शारदीय नवरात्रि के पांचवे दिन माँ स्कंदमाता की पूजा के लिए शुभ रंग हरा है।

माँ स्कंदमाता की पूजा विधि ( Devi Skandamata Puja Vidhi)

  • सर्वप्रथम सुबह नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • चौकी को साफ करके, वहां गंगाजल का छिड़काव करें, चौकी पर आपने एक दिन पहले जो पुष्प चढ़ाए थे, उन्हें हटा दें।
  • आपको बता दें, चूंकि चौकी की स्थापना प्रथम दिन ही की जाती है, इसलिए पूजन स्थल पर विसर्जन से पहले झाड़ू न लगाएं।
  • इसके बाद आप पूजन स्थल पर आसन ग्रहण कर लें।
  • इसके बाद माता की आराधना शुरू करें- सबसे पहले दीपक प्रज्वलित करें।
  • अब ॐ गं गणपतये नमः का 11 बार जाप करके भगवान गणेश को नमन करें।
  • इसके बाद अब ॐ देवी स्कंदमातायै नमः॥ मन्त्र के द्वारा माँ स्कंदमाता का आह्वान करें।
  • साथ ही माता को नमन करके निम्नलिखित मन्त्र के साथ माँ स्कंदमाता का ध्यान करें-
  • प्रथम पूज्य गणेश जी और देवी माँ को कुमकुम का तिलक लगाएं।
  • कलश, घट, चौकी को भी हल्दी-कुमकुम-अक्षत से तिलक करके नमन करें।
  • इसके बाद धुप- सुगन्धि जलाकर माता जी को फूल-माला अर्पित करें। आप देवी जी को लाल और पीले पुष्प अर्पित कर सकते हैं।
  • नर्वाण मन्त्र ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाऐ विच्चे’ का यथाशक्ति अनुसार 11, 21, 51 या 108 बार जप करें।
  • एक धुपदान में उपला जलाकर इस पर लोबान, गुग्गल, कर्पूर या घी डालकर माता को धुप दें, और इसके बाद इस धुप को पूरे घर में दिखाएँ। आपको बता दें कि कई साधक केवल अष्टमी या नवमी पर हवन करते हैं, वहीं कई साधक इस विधि से धुप जलाकर पूरे नौ दिनों तक साधना करते हैं। आप अपने घर की परंपरा या अपनी इच्छा के अनुसार यह क्रिया कर सकते हैं।
  • अब भोग के रूप में मिठाई या फल माता को अर्पित करें।
  • इसके बाद माँ स्कंदमाता की आरती गाएं।

स्कंदमाता को क्या भोग लगाएं और उनका बीज मंत्र (What should be offered to Skandamata and her Beej Mantra)

नवरात्र के पांचवे दिन स्कंदमाता जी को केले का भोग लगाना चाहिए और इसका दान भी करना चाहिए। इससे माँ, प्रसन्न होकर अच्छी सेहत का वरदान देती हैं। साथ ही यश एवं सुख-समृद्धि भी प्रदान करती हैं।

मां स्कंदमाता का बीज मंत्र : ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:

स्कंदमाता की कथा (Story of Devi Skandamata)

पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर ने कठोर तपस्या करके ब्रह्माजी को प्रसन कर दिया था। तब ब्रह्माजी प्रसन्न होकर उस राक्षस को साक्षात दर्शन दिए। ब्रह्माजी को देखकर तारकासुर ने भगवान से अमर रहने का वरदान मांगा। ब्रह्माजी ने उसके इस वर को सुनकर उनसे कहा हे पुत्र जो इस धरती पर जन्म लिया उसका मरना निश्चय है। तब तारकासुर ब्रह्माजी का यह वचन सुनकर निराश होकर फिर से ब्रह्मा जी से कहा कि हे प्रभु कुछ ऐसा करेगी कि मैं शिवजी के पुत्र के हाथों मरू। उसके मन में यह था कि भगवान शिव की विवाह तो होगी नहीं और उनका कोई पुत्र नहीं होगा। इस वजह से उसकी मृत्यु भी नहीं हो सकेगी। तब ब्रह्मा जी तथास्तु कह कर वहां से अंतर्ध्यान हो गए। फिर तो तारकासुर ने अपने अत्याचार से पूरे पृथ्वी और स्वर्ग को त्रस्त कर दिया। हर कोई उसके अत्याचारों से परेशान हो चुका था। तब भगवान परेशान होकर शिव जी के पास गए। उन्होंने हाथ जोड़ते हुए शिवजी से तारकासुर से मुक्ति दिलाने को कहा। तब भगवान शिव ने पार्वती से विवाह किया और कार्तिक के पिता बनें। बाद में भगवान कार्तिकेय बड़े होकर तारकासुर का वध किये। आपको बता दें स्कंदमाता कार्तिकी ही माता है।

स्कंदमाता की आरती (Aarti Of Devi Skandamata)

ॐ जय जय स्कंदमाता मैया जय स्कंदमाता परम सुखदाई मैया परम सुखदाई मैया तुमसे सुख आता ॐ जय जय स्कंदमाता

ॐ जय जय स्कंदमाता मैया जय स्कंदमाता परम सुखदाई मैया परम सुखदाई मैया तुमसे सुख आता ॐ जय जय स्कंदमाता

शक्ति स्वरूपा माता मोक्ष नर पावे मैया मोक्ष नर पावे द्वार तिहारे आये द्वार तिहारे आये खाली नहीं जावे ॐ जय जय स्कंदमाता

चारभुजाधारी माँ हस्त कमल सोहे मैया हस्त कमल सोहे स्कंद संग में विराजे स्कंद संग में विराजे छवि अति मन मोहे ॐ जय जय स्कंदमाता

पंचम नवरातों में ध्यान भक्त करे मैया ध्यान भक्त करे मनवांछित फल पावे मनवांछित फल पावे कष्ट माँ तू ही हरे ॐ जय जय स्कंदमाता

रूप निराले हैं माता जग गुणगान करे मैया जग गुणगान करे कर दो कृपा हे मैया कर दो कृपा हे मैया तुम्हरे द्वार खड़े ॐ जय जय स्कंदमाता

विपदा हरती हो मैया जो मन से सुमिरे मैया जो मन से सुमिरे साधक नित हर्षावे साधक नित हर्षावे जय जय माता कहे ॐ जय जय स्कंदमाता

शिव योगी की शक्ति तुमको ही जग जाने मैया तुमको ही जग जाने कार्तिकेय करे वंदन कार्तिकेय करे वंदन माता ये जग माने ॐ जय जय स्कंदमाता

तुम्हरी कृपा से धर्म हर पल ही जीते मैया हर पल ही जीते तुम्हारी इच्छा से भक्ता तुम्हारी इच्छा से भक्ता भक्ति रस पीते ॐ जय जय स्कंदमाता

स्कंदमाता की आरती जो मन से गावे मैया जो मन से गावे भव बंधन से छूटे भव बंधन से छूटे नित सुख वो पावे ॐ जय जय स्कंदमाता

ॐ जय जय स्कंदमाता मैया जय जय स्कंदमाता परम सुखदाई मैया परम सुखदाई मैया तुमसे सुख आता ॐ जय जय स्कंदमाता

ॐ जय जय स्कंदमाता मैया जय जय स्कंदमाता परम सुखदाई मैया परम सुखदाई मैया तुमसे सुख आता ॐ जय जय स्कंदमाता

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