नवरात्रि का सातवां दिन | Seventh Day of Navratri

नवरात्रि का सातवां दिन

इस विशेष दिन पर माँ की कृपा प्राप्त करने के लिए आवश्यक उपायों और अनुष्ठान के बारे में जानें।


नवरात्रि का सातवां दिन (Seventh Day of Navratri)

माँ भगवती समस्त सृष्टि की अधिष्ठात्री देवी है। मान्यता है कि नवरात्रि के समय माँ पृथ्वी पर अपने भक्तों के बीच उपस्थित होती है। ऐसा योग साल में आने वाली चार नवरात्रियों के पर्व पर संभव होता है। इस पर्व के दौरान स्वयं त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा-विष्णु-महेश भी माता की आराधना करके उनकी कृपा प्राप्त करते हैं। इसीलिए नवरात्रि में पूजन को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। नवरात्री के नौं दिनों माता के नौं स्वरूपों की आराधना की जाते है। नवरात्री सातवां दिन मां के कालरात्रि स्वरुप को समर्पित है इस दिन इस रूप में माता की आरधना की जाती है। आइए, जानते हैं नवरात्र के सातवें दिन का महत्व, पूजा विधि और इससे जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी।

नवरात्रि के सातवें दिन का महत्व (Importance of the Seventh Day of Navratri)

नवरात्रि के सातवें दिन को सप्तमी भी कहा जाता है। इस दिन माता के कालरात्रि स्वरूप की आराधना करने का विधान है। ‘देवी कालरात्रि’ भगवती का विकराल रूप है। देवी कालरात्रि जीवन में कष्टों,बाधाओं से मुक्ति और खुशियों का संचार करती है। सच्चे मन से की गई इनकी पूजा आराधना से मनुष्य को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। जातकों को सभी तरह की नकारात्मक शक्तियों से छुटकारा मिलता है और वो सभी सुखों को प्राप्त करता है।

नवरात्रि के सातवें दिन का शुभ मुहूर्त (Auspicious time of Seventh Day of Navratri)

नवरात्र के सातवें दिन माँ दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा का बहुत महत्व है। इस वर्ष नवरात्रि का सातवाँ दिन 09 अक्टूबर 2024 को है।

सप्तमी तिथि प्रारंभ: 09 अक्टूबर, बुधवार 12:14 PM सप्तमी तिथि समापन: 10 अक्टूबर, गुरुवार 12:31 PM

माँ कालरात्रि की पूजा विधि (Mata Kalaratri Samagri and Puja Vidhi)

  • सर्वप्रथम सुबह नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • चौकी को साफ करके, वहां गंगाजल का छिड़काव करें, चौकी पर आपने एक दिन पहले जो पुष्प चढ़ाए थे, उन्हें हटा दें।
  • आपको बता दें, चूंकि चौकी की स्थापना प्रथम दिन ही की जाती है, इसलिए पूजन स्थल पर विसर्जन से पहले झाड़ू न लगाएं।
  • इसके बाद आप पूजन स्थल पर आसन ग्रहण कर लें।
  • इसके बाद माता की आराधना शुरू करें- सबसे पहले दीपक प्रज्वलित करें।
  • अब ॐ गं गणपतये नमः का 11 बार जाप करके भगवान गणेश को नमन करें।
  • इसके बाद अब ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:॥ मन्त्र के द्वारा माँ स्कंदमाता का आह्वान करें।
  • साथ ही माता को नमन करके निम्नलिखित मन्त्र के साथ माँ स्कंदमाता का ध्यान करें-
  • प्रथम पूज्य गणेश जी और देवी माँ को कुमकुम का तिलक लगाएं।
  • कलश, घट, चौकी को भी हल्दी-कुमकुम-अक्षत से तिलक करके नमन करें।
  • इसके बाद धुप- सुगन्धि जलाकर माता जी को फूल-माला अर्पित करें। आप देवी जी को लाल और पीले पुष्प अर्पित कर सकते हैं।
  • नर्वाण मन्त्र ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाऐ विच्चे’ का यथाशक्ति अनुसार 11, 21, 51 या 108 बार जप करें।
  • एक धुपदान में उपला जलाकर इस पर लोबान, गुग्गल, कर्पूर या घी डालकर माता को धुप दें, और इसके बाद इस धुप को पूरे घर में दिखाएँ। आपको बता दें कि कई साधक केवल अष्टमी या नवमी पर हवन करते हैं, वहीं कई साधक इस विधि से धुप जलाकर पूरे नौ दिनों तक साधना करते हैं। आप अपने घर की परंपरा या अपनी इच्छा के अनुसार यह क्रिया कर सकते हैं।
  • अब भोग के रूप में मिठाई या फल माता को अर्पित करें।
  • इसके बाद माँ स्कंदमाता की आरती गाएं।

माँ कालरात्रि को क्या भोग लगाएं और उनका बीज मंत्र (What should be offered to Mata Kaalratri and her Beej Mantra)

सातवे दिन मां कालरात्रि को गुड़ या मेवों से बनी चीजों का भोग लगाएं। इससे माँ आपके उपर आने वाले सभी संकटों से आपको दूर रखेंगी। ऐसे में, आप गुड़ ओर मेवे से बने लड्डू का भोग लगा सकते हैं।

लड्डू बनाने के लिए, मेवे को बारीक काट लें और देशी घी में भून लें। इसके बाद, गुड़ को कड़ाही में डालें और पिघलने पर उसमें कटे हुए मेवे डाले। हल्का ठंडा होने पर उसके लड्डू बना लें और माता रानी को भोग लगाएं।

मां महागौरी का बीज मंत्र : श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:

माँ कालरात्रि की कथा (Story of Mata Brahmacharini)

पौराणिक कथा के अनुसार दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में अपना आंतक मचाना शुरू कर दिया तो देवतागण परेशान हो गए और भगवान शंकर के पास पहुंचे। तब भगवान शंकर ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए कहा। भगवान शंकर का आदेश प्राप्त करने के बाद पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध किया। लेकिन जैसे ही मां दुर्गा ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त की बूंदों से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए। तब मां दुर्गा ने मां कालरात्रि के रूप में अवतार लिया। मां कालरात्रि ने इसके बाद रक्तबीज का वध किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को अपने मुख में भर लिया।

माँ कालरात्रि की आरती (Aarti of Mata Brahmacharini)

ॐ जय जय कालरात्रि मैया ॐ जय जय कालरात्रि दुष्टों की संहारिणी दुष्टों की संहारिणी सुखों की माँ दात्री ॐ जय जय कालरात्रि

ॐ जय जय कालरात्रि मैया ॐ जय जय कालरात्रि दुष्टों की संहारिणी दुष्टों की संहारिणी सुखों की माँ दात्री ॐ जय जय कालरात्रि

रूप भयंकर माँ का दुष्ट सदा काँपे मैया दुष्ट सदा काँपे भक्त सदा हर्षावे भक्त सदा हर्षावे रिद्धि सिद्धि पाते ॐ जय जय कालरात्रि

महामाई हो जग की दयामयी हो माँ मैया दयामयी हो माँ भैरवी भद्रकाली भैरवी भद्रकाली चामुंडा कई नाम ॐ जय जय कालरात्रि

सप्तम नवराते में साधक करता ध्यान मैया साधक करता ध्यान सिद्धियाँ भक्ता पावे सिद्धियाँ भक्ता पावे मिटता हर अज्ञान ॐ जय जय कालरात्रि

खड्गधारिणी मैया वरमुद्राधारी मैया वरमुद्राधारी सृष्टि करे नित आरती सृष्टि करे नित आरती गुण गावे नर नारी ॐ जय जय कालरात्रि

सर्वजगत हे मैया तुमसे प्रकाशित है मैया तुमसे प्रकाशित है कर दो कृपा हे मैया कर दो कृपा हे मैया हम सब याचक हैं ॐ जय जय कालरात्रि

भूत प्रेत डर जावे जब तुम हो आती मैया जब तुम हो आती शत्रु डर न सतावे शत्रु डर न सतावे करुणा माँ बरसाती ॐ जय जय कालरात्रि

गर्द्भव सवारी साजे दू दुख दूर करें मैया दू दुख दूर करें निर्बल शक्ति पावे निर्बल शक्ति पावे भय से मुक्त करें ॐ जय जय कालरात्रि

मातु कालरात्रि की आरती जो गावे मैया आरती जो गावे शक्ति भक्ति नित पावे शक्ति भक्ति नित पावे डर न निकट आवे ॐ जय जय कालरात्रि

ॐ जय जय कालरात्रि मैया ॐ जय जय कालरात्रि दुष्टों की संहारिणी दुष्टों की संहारिणी सुखों की माँ दात्री ॐ जय जय कालरात्रि

ॐ जय जय कालरात्रि मैया ॐ जय जय कालरात्रि दुष्टों की संहारिणी दुष्टों की संहारिणी सुखों की माँ दात्री ॐ जय जय कालरात्रि

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