पौष पुत्रदा एकादशी 2025 कब है?
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पौष पुत्रदा एकादशी 2025 कब है?

पौष पुत्रदा एकादशी 2025 कब है? इस दिन की तिथि और पूजा विधि जानें, और संतान सुख पाने के लिए भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करें!

पौष पुत्रदा एकादशी के बारे में

पौष पुत्रदा एकादशी का दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत के लिए समर्पित है। विशेष रूप से संतान प्राप्ति और उनके कल्याण की कामना के लिए इस एकादशी का महत्व है। भक्त उपवास रखते हैं, विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हैं और भगवान विष्णु से कृपा की प्रार्थना करते हैं। यह दिन परिवार में सुख-शांति और समृद्धि लाने वाला माना जाता है।

पौष पुत्रदा एकादशी कब है

पौष पुत्रदा एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है। इस एकादशी पर किया गया व्रत और पूजन मनुष्य के समस्त पापों का नाश करता है और उन्हें भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार पौष माह के शुक्ल पक्ष में पौष पुत्रदा एकादशी मनाई जाती है।

पौष पुत्रदा एकादशी का शुभ मुहूर्त

  • पौष पुत्रदा एकादशी 10 जनवरी 2025, शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी।

  • इसका पारण (व्रत तोड़ने का) समय 11 जनवरी को 06:45 ए एम से 08:21 ए एम तक रहेगा।

  • पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय - 08:21 ए एम

  • एकादशी तिथि प्रारम्भ - 09 जनवरी 2025 को 12:22 पी एम बजे से

  • एकादशी तिथि समाप्त - 10 जनवरी 2025 को 10:19 ए एम बजे तक

अन्य शुभ मुहूर्त -

  • ब्रह्म मुहूर्त 05:27 ए एम से 06:21 ए एम तक
  • प्रातः सन्ध्या 05:54 ए एम से 07:15 ए एम तक
  • अभिजित मुहूर्त 12:08 पी एम से 12:50 पी एम तक
  • विजय मुहूर्त 02:13 पी एम से 02:55 पी एम तक
  • गोधूलि मुहूर्त 05:40 पी एम से 06:07 पी एम तक
  • सायाह्न सन्ध्या 05:42 पी एम से 07:04 पी एम तक
  • अमृत काल 11:29 ए एम से 01:00 पी एम तक
  • निशिता मुहूर्त 12:02 ए एम, जनवरी 11 से 12:56 ए एम, (11 जनवरी)

एकादशी व्रत का पारण

  • एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना आवश्यक है।
  • यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही करना चाहिए।
  • एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।
  • हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है।
  • व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।
  • अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिए।
  • जब एकादशी व्रत दो दिन होता है, तब स्मार्त-परिवारजनों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए।
  • दूसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं।
  • सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए

हमारे शास्त्र कहते हैं कि एकादशी व्रत में सही अवधि में पारण करना अनिवार्य है, क्योंकि इसके बिना आपको व्रत का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है। हमारा आपको यह सुझाव है कि एकादशी समाप्त होने के बाद द्वादशी तिथि में हरिवासर की अवधि में पारण बिल्कुल न करें। आप श्री मंदिर पर हर द्वादशी के दिन पारण करने का शुभ मुहूर्त जानने के बाद ही अपना व्रत खोलें, जिससे आपका यह महत्वपूर्ण व्रत सफल बनें।

पौष पुत्रदा एकादशी महत्व

हमने अपने पहले लेख में आपको पौष पुत्रदा एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त के बारे में बताया था। अब हम आपको बताएंगे कि -

  • पौष पुत्रदा एकादशी क्या है?
  • पौष पुत्रदा एकादशी पर पूजा और व्रत क्यों किया जाता है?
  • यह एकादशी तिथि क्यों महत्वपूर्ण है?

पौष पुत्रदा एकादशी क्या है

  • हिन्दू पंचांग के अनुसार एक वर्ष में लगभग चौबीस एकादशी तिथियां आती हैं। उन्हीं चौबीस एकादशी तिथियों में से एक है पुत्रदा एकादशी।

  • पुत्रदा एकादशी साल में दो बार आती है, एक हिन्दू मास पौष में और एक श्रावण मास में। हम पौष मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली पुत्रदा एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी के नाम से जानते हैं।

  • इस एकादशी का महत्व इसके अर्थ में निहित है, ‘पुत्र’ अर्थात संतान और ‘दा’ अर्थात देने वाला। इस प्रकार पौष पुत्रदा एकादशी संतानदायिनी एकादशी कहलाती है।

  • सनातन धर्म में इस दिन व्रत और पूजन को बहुत फलदायक और महत्वपूर्ण माना जाता है।

पौष पुत्रदा एकादशी पर पूजा और व्रत क्यों किया जाता है

  • सर्वप्रथम तो जो मनुष्य अपने पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं, वे पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत करते हैं।

  • वहीं कुछ लोगों द्वारा स्वस्थ और ओजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए भी पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत किया जाता है।

  • इसके साथ ही जो जातक अपने जीवन में अज्ञानतावश किये पापों से मुक्ति चाहते हैं, वे यह व्रत और विधिपूर्वक पूजा अवश्य करते हैं।

एकादशी का महत्व

हमारे पुराणों में पौष पुत्रदा एकादशी पर किये गए व्रत को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है कि यह एकादशी का व्रत महाभारत काल से प्रचलित है, और स्वयं श्री कृष्ण ने इस व्रत का महात्म्य धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाया था।

इस व्रत को करने से मनुष्य के जीवन में सकारात्मकता बढ़ती है। पौष पुत्रदा एकादशी पर व्रत करना इसलिए भी विशेष माना जाता है, क्योंकि इस व्रत को करने से मनुष्य की समस्त असंभव मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

यदि आप भी अपने जीवन में भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं तो इस पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत अवश्य करें। साथ ही इस व्रत से जुडी अन्य जानकारियों के लिए जुड़े रहिये हमारे साथ।

पौष पुत्रदा एकादशी की पूजा सामग्री

सनातन व्रतों में एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस दिन संपूर्ण विधि और उचित सामग्री के साथ पूजा करना अत्यंत फलदायक होता है। एकादशी पर की जाने वाली पूजा की सामग्री कुछ इस प्रकार है -

  • चौकी
  • पीला वस्त्र
  • गंगाजल
  • भगवान विष्णु की प्रतिमा
  • गणेश जी की प्रतिमा
  • अक्षत
  • जल का पात्र
  • पुष्प
  • माला
  • मौली या कलावा
  • जनेऊ
  • धूप
  • दीप
  • हल्दी
  • कुमकुम
  • चन्दन
  • अगरबत्ती
  • तुलसीदल
  • पञ्चामृत का सामान (दूध, घी, दही, शहद और मिश्री)
  • मिष्ठान्न
  • ऋतुफल
  • घर में बनाया गया नैवेद्य

नोट - गणेश जी की प्रतिमा के स्थान पर आप एक सुपारी पर मौली लपेटकर इसे गणेशजी के रूप में पूजा में विराजित कर सकते हैं।

इस सामग्री के द्वारा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा की जाती है, जो आपके लिए श्री मंदिर पर उपलब्ध है। आप इसका लाभ अवश्य उठायें।

पौष पुत्रदा एकादशी की पूजा कैसे करें?

एकादशी पर ऐसे करें भगवान विष्णु की पूजा

हिन्दू पंचांग के अनुसार एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस लेख में आप एकादशी की पूजा की तैयारी एवं विधि जानेंगे।

पूजा की तैयारी

  • एकादशी के दिन व्रत करने वाले जातक दशमी तिथि की शाम में व्रत और पूजन का संकल्प लें।
  • दशमी में रात्रि के भोजन के बाद से कुछ भी अन्न या एकादशी व्रत में निषेध चीजों का सेवन न करें।
  • एकादशी के दिन प्रातःकाल उठें, और किसी पेड़ की टहनी से दातुन करें।
  • इसके बाद नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करें। स्नान करते समय पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
  • स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। स्वयं को चन्दन का तिलक करें।
  • अब भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य दें और नमस्कार करते हुए, आपके व्रत और पूजा को सफल बनाने की प्रार्थना करें।
  • अब पूजा करने के लिए सभी सामग्री इकट्ठा करें और पूजा शुरू करें।

एकादशी की पूजा विधि

  • सबसे पहले पूजा स्थल को साफ करके इस स्थान पर एक चौकी स्थापित करें, और इसे गंगाजल छिड़क कर पवित्र करें।
  • इसके बाद चौकी पर एक पीला वस्त्र बिछाएं। इस चौकी के दायीं ओर एक दीप प्रज्वलित करें।

(सबसे पहले दीप प्रज्वलित इसीलिए किया जाता है, ताकि अग्निदेव आपकी पूजा के साक्षी बनें)

  • चौकी के सामने एक साफ आसन बिछाकर बैठ जाएं। जलपात्र से अपने बाएं हाथ से दाएं हाथ में जल लेकर दोनों हाथों को शुद्ध करें। अब स्वयं को तिलक करें।
  • अब चौकी पर अक्षत के कुछ दानें आसन के रूप में डालें और इस पर गणेश जी को विराजित करें।
  • इसके बाद चौकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें।
  • अब स्नान के रूप में एक जलपात्र से पुष्प की सहायता से जल लेकर भगवान गणेश और विष्णु जी पर छिड़कें।
  • भगवान गणेश को हल्दी-कुमकुम-अक्षत और चन्दन से तिलक करें।
  • इसके बाद वस्त्र के रूप में उन्हें जनेऊ अर्पित करें। इसके बाद पुष्प अर्पित करके गणपति जी को नमस्कार करें।
  • भगवान विष्णु को रोली-चन्दन का तिलक करें। कुमकुम, हल्दी और अक्षत भी चढ़ाएं।
  • अब ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जप करते हुए श्रीहरि को पुष्प, जनेऊ और माला अर्पित करें।
  • भगवान विष्णु को पंचामृत में तुलसीदल डालकर अर्पित करें। चूँकि भगवान विष्णु को तुलसी अतिप्रिय है इसीलिए भगवान के भोग में तुलसी को अवश्य शामिल करें।

(ध्यान दें गणेश जी को तुलसी अर्पित न करें)

  • इसके बाद भोग में मिष्ठान्न और ऋतुफल अर्पित करें।
  • विष्णु सहस्त्रनाम या श्री हरि स्त्रोतम का पाठ करें, इसे आप श्री मंदिर के माध्यम से सुन भी सकते हैं।
  • अंत में भगवान विष्णु की आरती करें। अब सभी लोगों में भगवान को चढ़ाया गया भोग प्रसाद के रूप में वितरित करें।
  • इस तरह आपकी एकादशी की पूजा संपन्न होगी। इस पूजा को करने से आपको भगवान विष्णु की कृपा निश्चित रूप से प्राप्त होगी।

साथ ही यह दिन भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए भी विशेष है। इस दिन भगवान श्री हरि को सच्चे मन से चढ़ावा अर्पित करने से उनका विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।

पौष पुत्रदा एकादशी पूजा पर इन मंत्रों का करें जाप

एकादशी के विशेष मंत्र व आरती

एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए कुछ विशेष मंत्रों का जाप करने से आपको इस व्रत का सम्पूर्ण फल प्राप्त होगा।

कुछ जातक एकादशी का व्रत नहीं करते हैं, लेकिन यदि वे भी पूजा के समय भगवान विष्णु का स्मरण करके नीचे दिए गए मंत्रों का जाप करते हैं, तो वो भगवान विष्णु की कृपा का पात्र अवश्य बनेंगे।

इस लेख में हम ये जानेंगे!

  • ॐ नमो एवं इसके लाभ
  • कृष्णाय वासुदेवाय एवं इसके लाभ
  • नारायणाय विद्महे एवं इसके लाभ
  • शान्ताकारं भुजगशयनं एवं इसके लाभ
  • ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय एवं इसके लाभ

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः

मंत्र का लाभ

यह मंत्र सर्वोत्तम विष्णु मंत्र माना जाता है। एकादशी के दिन 108 बार इस मंत्र का जाप करने से भगवान अति प्रसन्न होते हैं, और अपने भक्त की हर मनोकामना पूरी करते हैं।

कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने । प्रणत क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः।

मंत्र का लाभ

जीवन में आंतरिक, पारिवारिक क्लेश दूर हो जाते हैं। मानसिक दुविधाओं से निजात पाने के लिए इस मंत्र का जाप करते हैं।

नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि । तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ॥

मंत्र का लाभ

इस मंत्र के जाप से पारिवारिक कलह दूर होती है, और घर में सुख शांति और समृद्धि आती है।

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् । लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥

मंत्र का लाभ

इस मंत्र के जाप से मनुष्य निडर होता है।

ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वन्तरायेः अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय् त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप श्रीधनवन्तरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः ॥

मंत्र का लाभ

इस मंत्र के जाप से व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से छुटकारा मिलता है।

तो यह थी, एकादशी से जुड़ी संपूर्ण जानकारी। हमारी कामना है कि आपको पौष पुत्रदा एकादशी व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त हो, और आप पर भगवान विष्णु की कृपा सदैव बनी रहे। ऐसी और भी धर्म सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए बने रहिए श्री मंदिर के साथ।

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Published by Sri Mandir·December 30, 2024

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