पितृ पक्ष - विशेष जानकारी
श्राद्ध के दौरान निकाला जाने वाला भोजन
जानिए पितृ दोष होने के ये संकेत
पितृ पक्ष में दीपक किस दिशा में लगायें?
पितरों को जल देने के नियम
पितरों का आशीर्वाद पाने के उपाय
इस पाठ से पितरों को मिलेगी शांति
श्राद्ध के दौरान निकाला जाने वाला भोजन
पितृ पक्ष के सोलह दिनों के दौरान पितरों के निमित्त पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म करने का विधान है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, पितृपक्ष में पूर्वज पितृलोक से पृथ्वी पर आते हैं, और अपने वंशजों द्वारा किए गए पिंडदान तर्पण आदि से तृप्त होकर उन्हें आशीष देते हैं। कहा जाता है कि पितृ पशु-पक्षियों के रूप में आते हैं, इसलिए पितृ पक्ष में कुछ पशु-पक्षियों को भोजन कराने का विधान है।
इस लेख में आप जानेंगे-
क्या है पंचबलि क्रिया?
पितृपक्ष में पंचबलि कैसे दी जाती है?
पितृपक्ष के पांच अंश भोजन का पंचतत्व से संबंध
क्या है पंचबलि क्रिया?
पितृ पक्ष में श्राद्ध के समय पशु-पक्षियों के भोजन का अंश निकाला जाता है। मान्यता है कि भोजन का अंश निकाले बिना श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता है। पितरों के निमित्त निकाले जाने वाले भोजन के इस पांच अंश को ही पंचबलि कहते हैं।
पितृपक्ष में कैसे दी जाती हैं पञ्चबलि?
भोजन की पहली तीन आहुति कंडा जलाकर दी जाती है। फिर इस भोजन को अलग-अलग पांच अंशों में बांटा जाता है। इनमें गाय, कुत्ता, चींटी और देवताओं के लिए पत्ते पर भोजन निकालने का विधान है, जबकि कौवे का एक अंश भूमि पर रखा जाता है। इसके बाद श्राद्ध करने वाला व्यक्ति अपने पितरों से प्रार्थना करता है कि वे आकर भोजन ग्रहण करें, और प्रसन्न होकर सभी परिजनों को आशीष दें।
पितृपक्ष के पांच अंश भोजन का पंचतत्व से संबंध
पितृपक्ष में पितरों के निमित्त निकाले जाने वाले इस भोजन का संबंध पंचतत्वों से माना गया है। जैसा कि हमने आपको पहले बताया कि, पितृपक्ष में पितर गाय, कुत्ता, कौवा और चींटियों के माध्यम से हमारे पास आते हैं, और अपने वंशजों द्वारा दिया गया भोजन ग्रहण करते हैं।
पितरों का श्राद्ध करते समय भोजन के पांच अंश निकाले जाते हैं, जो गाय, कुत्ता, चींटी, कौवा और देवताओं के लिए होते हैं। पुराणों के अनुसार कुत्ता ‘जल तत्त्व’ का प्रतीक माना जाता है, चींटी को ‘अग्नि तत्व’ का प्रतीक, कौवा को ‘वायु तत्व’, गाय को ‘पृथ्वी तत्व’, और देवताओं को ‘आकाश तत्व’ का प्रतीक माना गया है। यही पंचतव ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के कारक माने जाते हैं। इस तरह से इन पांच जीवों के लिए निकाला गया भोजन पंचतत्वों के प्रति आभार व्यक्त करने के समान माना जाता है।
तो ये थी पितृ पक्ष में श्राद्ध के दौरान निकाले जाने वाले भोजन के 5 अंश के महत्व से जुड़ी जानकारी। आप भी अपने पितरों की तृप्ति और कृपा पाने के लिए पितृ पक्ष के दौरान इन कर्मों का पालन करें।
जानिए पितृ दोष होने के ये संकेत
नमस्कार दोस्तों, श्री मंदिर में आपका एक बार फिर से स्वागत है। वृहत पाराशरी ग्रंथ के अनुसार कुल 14 प्रकार के श्राप होते हैं। जिसमें पितृ श्राप के कारण बनने वाला पितृ दोष सबसे पहले है। आइये जानते हैं कि पितृ दोष के क्या लक्षण हैं।
इन लक्षणों से करें पितृ दोष की पहचान!
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर आपकी कुंडली में सूर्य और राहु की युति बन रही हो तो यह पितृ दोष होता है।
इसके अलावा कुंडली में जब सूर्य और राहु की दृष्टि संबद्ध हो तब भी आपकी कुंडली में पितृ दोष के योग बनते है।
परिवार में किसी के मंदबुद्धि का होना या पागल होना भी पितृ दोष के एक लक्षण को बताता है।
पितृ पक्ष में दीपक किस दिशा में लगायें?
पितरों के लिए कौन सा दीपक लगाना चाहिए?
प्रिय भक्तों… हिंदू धर्म में किसी भी शुभ काम करने से पहले दीपक जलाने की परंपरा बहुत पुरानी है। दीपक को सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना गया है। ऐसा माना जाता है कि दीपक जलाने देवी-देवता प्रसन्न होते हैं। वहीं पितृ पक्ष में भी दीपक नाराज पितरों की नाराजगी दूर करता है। आइए जानते हैं कि घर में किस दिशा में कौन सा दीपक जलाना चाहिए…
किस दिशा में दीपक जलाएं?
पितृ पक्ष के दौरान रोजाना एक दीपक जलाकर दक्षिण दिशा में रखें, यह पितरों की दिशा मानी जाती है। यदि पितृ पक्ष के दौरान रोजाना पीपल में जल देकर घी का दीपक जलाएं तो पितृ प्रसन्न होते हैं। पितृ पक्ष में दीपक जलाना शुभ माना गया है।
पितरों को दीपक जलाते समय इन बातों का ध्यान रखें
पितरों की याद में उन्हें दीप जलाकर याद किया जाता है। इसे विशेष समर्पण और श्रद्धा के साथ किया जाना चाहिए।
इस दीपक को पितरों के नाम से संबोधित करना चाहिए, जैसे कि “हे पितरों, हम आपको याद कर रहे हैं और आपके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए यह दीपक जला रहे हैं।”
इसे घर के उचित स्थान पर रखना चाहिए, जो आमतौर पर पूजा या ध्यान के लिए प्राकृतिक होता है, जैसे कि पूजा घर में।
इसे सुबह और संध्या के समय जलाना चाहिए।
दीपक जलाकर पितरों की आत्मा को शांति प्रदान की जाती है और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए यह परंपरागत रूप से किया जाता है।
पितरों के लिए दीपक लगाने की विधि
एक साफ थाली लें और उसमें थोड़ा सा पानी डालें।
थाली में एक घी का दीपक या तेल का दीपक रखें।
दीपक को जलाने के लिए माचिस या लकड़ी का चिराग का उपयोग करें।
दीपक को जलाते समय पितरों को प्रणाम करें और उनसे आशीर्वाद मांगें।
दीपक को पूर्ण रूप से जलने दें।
पितृक दीपक को जलाकर पितरों की आत्मा को शांति प्रदान की जाती है और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए यह परंपरागत रूप से किया जाता है।
पितरों को जल देने के नियम
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। मान्यता है कि श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। पितृपक्ष में श्रद्धा के साथ पितरों के निमित्त पूजा, तर्पण, श्राद्ध, दान आदि करने पर पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। पितृ पक्ष में पितरों को जल देना विशेष माना गया है। आइए जानतें हैं तर्पण करते समय किन बातों का खास ध्यान रखना चाहिए।
पितरों को जल देने का समय
पितरों को जल देने का सबसे उपयुक्त समय प्रातः 11:30 से 12:30 के बीच का होता है। इस समय को पितृ काल कहा जाता है। इस समय देवता, पितृ और पितर लोक के अन्य प्राणी पृथ्वी पर आते हैं। इसलिए इस समय पितरों को जल देने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
जानें तर्पण करने का नियम
पितरों को जल देने के लिए एक साफ और स्वच्छ लोटे में गंगाजल, कुशा, अक्षत, पुष्प और काले तिल डालें।
इसके बाद दक्षिण की ओर मुख करके बैठें और पितरों का ध्यान करें।
फिर जल को अपने अंगूठे से पृथ्वी पर डालें।
इस प्रक्रिया को जलांजलि कहा जाता है।
पितरों को जल देते समय इन मंत्रों का उच्चारण करें
पितृगणाय स्वाहा
पितृदेवताय स्वाहा
पितृभ्यः स्वाहा
तो भक्तों यह लेख यहीं खत्म होता है, लेकिन किसी भी कारणवश पितृ पक्ष में आप अपने पितरों के लिए पूजा नहीं कर पा रहे हैं तो श्री मंदिर के चढ़ावा सेवा या पूजा सेवा के माध्यम से आप पितृ पक्ष के दौरान पितरों के लिए पूजा या दान करवा सकते हैं।
पितरों का आशीर्वाद पाने के उपाय
कैसे प्राप्त होता है पितरों का आशीर्वाद?
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष के दौरान पितरों के लिए किए जाने वाले तर्पण, श्राद्ध का विशेष महत्व है। मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष के दौरान पितरों के लिए किए जाने वाले पिंड दान, तर्पण आदि से प्रसन्न होकर पितृ अपने परिवार के लोगों पर कृपा बरसाते हैं। अगर कोई व्यक्ति किसी भी कारण इस क्रिया को करने में असमर्थ हो तो वह दान के माध्यम से इसका पुण्य फल प्राप्त कर सकता है। दान करने पर पितरों की आत्मा संतुष्ट होती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
ये हैं वो धार्मिक क्रिया - कलाप
पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं।
आदरपूर्ण श्राद्ध आयोजन : पितरों के आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रमुख तरीका उनके आदरपूर्ण श्राद्ध आयोजन में होता है। श्राद्ध के दौरान आपको पितृओं के लिए प्रसाद और आहार प्राप्त करके उनकी आत्माओं के पास पहुंचाना चाहिए।
प्रार्थना और मनन : श्राद्ध के दौरान, पितृओं के आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करें और उनकी यादों को मनन करें। आप उन्हें आदर और प्यार से स्मरण करें और उनकी आत्माओं के साथ बातचीत करें।
धार्मिक क्रियाएं : अपने पितृओं के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आप धार्मिक क्रियाएं कर सकते हैं, जैसे कि मंदिर या तीर्थस्थलों की यात्रा करना, व्रत रखना, और यात्रा करना।
कर्मकांड और पुण्यकर्म : आप अपने पितृओं के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए धर्मिक कर्मकांड और पुण्यकर्म कर सकते हैं। यह आपके कर्मों के माध्यम से उनकी आत्माओं के लिए आशीर्वाद लाने में मदद कर सकता है।
पितरों के आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि आप उन्हें याद करें और उनका सम्मान करें। उनके लिए श्राद्ध कर्म और पितृ तर्पण करें।
इस पाठ से पितरों को मिलेगी शांति
पितरों की शांति के लिए कौन सा पाठ करना चाहिए?
पितरों की शांति के लिए इस पाठ को करने से मिलती है मुक्ति? प्रिय भक्तों, पितरों के नाराज होने के कई कारण हो सकते हैं। लेकिन पितरों की शांति के लिए विभिन्न पाठ-पूजा की जा सकती है, जो धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के अनुसार होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि पितृ मुक्त नहीं होते उनकी शांति होती है।
आइए जानते हैं पितरों की शांति के लिए कौनसा पाठ करना चाहिए:
पितरों की शांति के लिए करें ये पाठ:
पितृ गायत्री मंत्र : यह मंत्र पितरों को प्रसन्न करने और उनकी आत्मा को शांति देने के लिए बहुत प्रभावी माना जाता है। इस मंत्र का जप नियमित रूप से करने से पितृ दोष से भी मुक्ति मिल सकती है।
मंत्र:
ॐ भूर्भुवः स्वः
पितृभ्यो नमः
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्
ॐ अर्हं ब्रह्म नमस्ते
अर्हं ब्रह्म नमस्ते
अर्हं ब्रह्म नमस्ते
ॐ पितृभ्यो नमः
पितृ पाठ : यह पाठ पितरों की आत्मा को शांति देने और उन्हें मोक्ष दिलाने के लिए किया जाता है। इस पाठ में पितरों की स्तुति और उनसे क्षमा याचना की जाती है।
पूजा करते समय बोलें- हे पितृ देवता, आप हमारे पूर्वज हैं, हमारे आराध्य हैं। हम आपके ऋणी हैं, आपकी कृपा से ही हम इस संसार में हैं। आपने हमें जीवन दिया, पालन-पोषण किया, शिक्षा दी। आपने हमें जीवन जीने की कला सिखाई। हमारे द्वारा जाने-अनजाने में किए गए अपराधों के लिए हम आपसे क्षमा याचना करते हैं। आपकी आत्मा को शांति मिले, आपको मोक्ष मिले। पितृ देवता, हम आपकी कृपा चाहते हैं। हमें अपने आशीर्वाद से सुखी और समृद्ध बनाएं।
पितृ श्राद्ध : पितृ श्राद्ध एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है जो पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए किया जाता है। इस अनुष्ठान में पितरों को भोजन, जल, और अन्य सामग्री अर्पित की जाती है।
पितरों की शांति के लिए उपाय
पितरों की तस्वीर या प्रतिमा घर में लगाएं और उनकी नियमित रूप से पूजा करें।
पितरों के नाम पर दान करें।
पितरों के लिए श्राद्ध और तर्पण करें।
पितरों के लिए गंगाजल, तिल, और अन्न का दान करें।
पितरों की शांति के लिए आप इन पाठों में से किसी एक का या सभी पाठों का संयुक्त रूप से पाठ कर सकते हैं। पाठ करते समय मन को शांत रखें और पितरों के प्रति सच्चा भाव रखें। - इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलेगी और आपके जीवन में सुख-समृद्धि आएगी।