पितृ पक्ष 2024 | Pitru Paksha
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष का प्रारंभ होता है, और इसका समापन आश्विन मास की अमावस्या तिथि को होता है। पितृपक्ष की अवधि में पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध आदि कर्म करने का विधान है। मान्यता है कि इस समय पूर्वज अपने परिवार के सदस्यों से मिलने पृथ्वीलोक आते हैं।
इस लेख में आप जानेंगे-
- पितृ पक्ष 2024 कब प्रारंभ होगा
- श्राद्ध की तिथियां व मुहूर्त
- श्राद्ध के लिए 3 सबसे महत्वपूर्ण तिथियां
- पितृ पक्ष का महत्व? क्यों मनाया जाता है पितृ पक्ष?
- पितृ पक्ष में श्राद्ध का अर्थ एवं महत्व
- पितृ पक्ष में पिंडदान का अर्थ एवं महत्व
- पितृ पक्ष में तर्पण का अर्थ एवं महत्व
- पितृ पक्ष में तर्पण व पिंडदान की विधि व मंत्र
- पितरों को खुश करने के लिए करें ये उपाय
पितृ पक्ष 2024 कब प्रारंभ होगा (Pitru Paksha Kab Se Suru Hoga)
- पितृ पक्ष 18 सितम्बर 2024, बुधवार को प्रारम्भ होगा।
- साल 2024 में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 17 सितंबर, मंगलवार को पड़ रही है। ऐसे में पितृ पक्ष इसी दिन से प्रारंभ होगा।
- पितृ पक्ष का समापन अश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर होता है, जो कि इस साल 02 अक्टूबर, बुधवार के दिन पड़ रहा है।
श्राद्ध की तिथियां व मुहूर्त (Pitru Paksha Tithi & Muhurat)
- पूर्णिमा श्राद्ध: मंगलवार, 17 सितंबर 2024
- पूर्णिमा प्रारम्भ- 17 सितंबर 2024 को 11:44 AM
- पूर्णिमा समाप्त- 18 सितंबर 2024 को 08:04 AM
मुहूर्त:-
- कुतुप मुहूर्त: 11:28 AM से 12:17 PM
- रौहिण मुहूर्त: 12:17 PM से 01:06 PM
- अपराह्न काल: 01:06 PM से 03:33 PM
प्रतिपदा श्राद्ध: बुधवार, 18 सितंबर 2024
- प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ- 18 सितंबर 2024 को 08:04 AM
- प्रतिपदा तिथि समाप्त- 19 सितंबर 2024 को 04:19 AM
मुहूर्त:-
- कुतुप मुहूर्त: 11:27 AM से 12:16 PM
- रौहिण मुहूर्त: 12:16 PM से 01:05 PM
- अपराह्न काल: 01:05 PM से 03:32 PM
द्वितीया श्राद्ध: गुरुवार, 19 सितंबर 2024
- द्वितीया तिथि प्रारम्भ- 19 सितंबर 2024 को 04:19 AM
- द्वितीया तिथि समाप्त- 20 सितंबर 2024 को 12:39 AM
मुहूर्त:-
- कुतुप मुहूर्त: 11:27 AM से 12:16 PM
- रौहिण मुहूर्त: 12:16 PM से 01:05 PM
- अपराह्न काल: 01:05 PM से 03:31 PM
तृतीया श्राद्ध: शुक्रवार, 20 सितंबर 2024
- तृतीया तिथि प्रारम्भ- 20 सितंबर 2024 को 12:39 AM
- तृतीया तिथि समाप्त- 20 सितंबर 2024 को 09:15 PM
मुहूर्त:-
- कुतुप मुहूर्त: 11:27 AM से 12:15 PM
- रौहिण मुहूर्त: 12:15 PM से 01:04 PM
- अपराह्न काल: 01:04 PM से 03:30 PM
चतुर्थी श्राद्ध- 02 अक्टूबर 2023, सोमवार
- चतुर्थी तिथि प्रारम्भ- 20 सितम्बर 2024 को 09:15 PM
- चतुर्थी तिथि समाप्त- 21 सितम्बर 2024 को 06:13 PM
मुहूर्त:-
- कुतुप मुहूर्त- 11:26 AM से 12:15 PM
- रौहिण मुहूर्त- 12:15 PM से 01:04 PM
- अपराह्न काल- 01:04 PM से 03:29 PM
महा भरणी श्राद्ध: शनिवार, 21 सितंबर 2024
- भरणी नक्षत्र प्रारम्भ- 21 सितंबर 2024 को 02:43 AM
- भरणी नक्षत्र समाप्त- 22 सितंबर 2024 को 12:36 AM
मुहूर्त:-
- कुतुप मुहूर्त: 11:26 AM से 12:,15 PM
- रौहिण मुहूर्त: 12:15 PM से 01:04 PM
- अपराह्न काल: 01:04 PM से 03:29 PM
पंचमी श्राद्ध: रविवार, 22 सितंबर 2024
- पंचमी तिथि प्रारम्भ- 21 सितंबर 2024 को 06:13 PM
- पंचमी तिथि समाप्त- 22 सितंबर 2024 को 03:43 PM
मुहूर्त:-
- कुतुप मुहूर्त: 11:26 AM से 12:15 PM
- रौहिण मुहूर्त: 12:15 PM से 01:03 PM
- अपराह्न काल: 01:03 PM से 03:29 PM
षष्ठी श्राद्ध: सोमवार, 23 सितंबर 2024
- षष्ठी तिथि प्रारम्भ- 22 सितंबर 2024 को 03:43 PM
- षष्ठी तिथि समाप्त- 23 सितंबर 2024 को 01:50 PM
मुहूर्त:-
- कुतुप मुहूर्त: 11:26 AM से 12:14 PM
- रौहिण मुहूर्त: 12:14 PM से 01:03 PM
- अपराह्न काल: 01:03 PM से 03:28 PM
सप्तमी श्राद्ध: सोमवार, 23 सितंबर 2024
- सप्तमी तिथि प्रारम्भ- 23 सितंबर 2024 को 01:50 PM
- सप्तमी तिथि समाप्त- 24 सितंबर 2024 को 12:38 PM
मुहूर्त:-
- कुतुप मुहूर्त: 11:26 AM से 12:14 PM
- रौहिण मुहूर्त: 12:14 PM से 01:03 PM
- अपराह्न काल: 01:03 PM से 03:28 PM
अष्टमी श्राद्ध: मंगलवार, 24 सितंबर 2024
- अष्टमी तिथि प्रारम्भ- 24 सितंबर 2024 को 12:38 PM
- अष्टमी तिथि समाप्त- 25 सितंबर 2024 को 12:10 PM
मुहूर्त:-
- कुतुप मुहूर्त: 11:25 AM से 12:14 PM
- रौहिण मुहूर्त: 12:14 PM से 01:02 PM
- अपराह्न काल: 01:02 PM से 03:27 PM
नवमी श्राद्ध: बुधवार, 25 सितंबर 2024
- नवमी तिथि प्रारम्भ- 25 सितंबर 2024 को 12:10 PM
- नवमी तिथि समाप्त- तिथि समाप्त: 26 सितंबर 2024 को 12:25 PM
मुहूर्त:-
- कुतुप मुहूर्त: 11:25 AM से 12:13 PM
- रौहिण मुहूर्त: 12:13 PM से 01:02 PM
- अपराह्न काल: 01:02 PM से 03:26 PM
दशमी श्राद्ध: गुरुवार, 26 सितंबर 2024
- दशमी तिथि प्रारम्भ- 26 सितंबर 2024 को 12:25 PM
- दशमी तिथि समाप्त- 27 सितंबर 2024 को 01:20 PM
मुहूर्त:-
- कुतुप मुहूर्त: 11:25 AM से 12:13 PM
- रौहिण मुहूर्त: 12:13 PM से 01:01 PM
- अपराह्न काल: 01:01 PM से 03:25 PM
एकादशी श्राद्ध: शुक्रवार, 27 सितम्बर 2024
- एकादशी तिथि प्रारम्भ: 27 सितम्बर 2024 को 01:20 PM बजे
- एकादशी तिथि समाप्त: 28 सितम्बर 2024 को 02:49 PM बजे
मुहूर्त:-
- कुतुप मुहूर्त: 11:25 AM से 12:13 PM
- रौहिण मुहूर्त: 12:13 PM से 01:01 PM
- अपराह्न काल: 01:01 PM से 03:25 PM
द्वादशी श्राद्ध: रविवार, 29 सितम्बर 2024
- द्वादशी तिथि प्रारम्भ: 28 सितम्बर 2024 को 02:49 PM बजे
- द्वादशी तिथि समाप्त: 29 सितम्बर 2024 को 04:47 PM बजे
मुहूर्त:-
- कुतुप मुहूर्त: 11:24 AM से 12:12 PM
- रौहिण मुहूर्त: 12:12 PM से 01:00 PM
- अपराह्न काल: 01:00 PM से 03:23 PM
मघा श्राद्ध: रविवार, 29 सितम्बर 2024
- मघा नक्षत्र प्रारम्भ: 29 सितम्बर 2024 को 03:38 PM बजे
- मघा नक्षत्र समाप्त: 30 सितम्बर 2024 को 06:19 PM बजे
मुहूर्त:-
- कुतुप मुहूर्त: 11:24 AM से 12:12 PM
- रौहिण मुहूर्त: 12:12 PM से 01:00 PM
- अपराह्न काल: 01:00 PM से 03:23 PM
त्रयोदशी श्राद्ध- सोमवार, 30 सितम्बर 2024
- त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ: 29 सितम्बर 2024 को 04:47 PM बजे
- त्रयोदशी तिथि समाप्त: 30 सितम्बर 2024 को 07:06 PM बजे
मुहूर्त:-
- कुतुप मुहूर्त: 11:24 AM से 12:11 PM
- रौहिण मुहूर्त: 12:11 PM से 12:59 PM
- अपराह्न काल: 12:59 PM से 03:22 PM
चतुर्दशी श्राद्ध: मंगलवार, 01 अक्टूबर 2024
- चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ: 30 सितम्बर 2024 को 07:06 PM बजे
- चतुर्दशी तिथि समाप्त: 01 अक्टूबर 2024 को 09:39 PM बजे
मुहूर्त:-
- कुतुप मुहूर्त: 11:23 AM से 12:11 PM
- रौहिण मुहूर्त: 12:11 PM से 12:59 PM
- अपराह्न काल: 12:59 PM से 03:22 PM
सर्वपितृ अमावस्या: बुधवार, 02 अक्टूबर 2024
- अमावस्या तिथि प्रारम्भ: 02 अक्टूबर 2024 को 09:39 PM बजे
- अमावस्या तिथि समाप्त: 03 अक्टूबर 2024 को 12:18 AM बजे
मुहूर्त:-
- कुतुप मुहूर्त: 11:23 AM से 12:11 PM
- रौहिण मुहूर्त: 12:11 PM से 12:58 PM
- अपराह्न काल: 12:58 PM से 03:21 PM
श्राद्ध के लिए 3 सबसे महत्वपूर्ण तिथियां
वैसे तो पितृ पक्ष की सभी तिथियां महत्वपूर्ण मानी जाती हैं, क्योंकि हर तिथि पर किसी न किसी के पूर्वज का देहांत हुआ होता है, और वे उसी तिथि पर उनके लिए श्राद्ध, तर्पण आदि अनुष्ठान करते हैं। लेकिन पितृ पक्ष में भरणी श्राद्ध, नवमी श्राद्ध और सर्व पितृ अमावस्या या अमावस्या श्राद्ध का विशेष महत्व बताया गया है।
पितृ पक्ष का महत्व? क्यों मनाया जाता है पितृ पक्ष? (Pitru Paksha Kyu Manya Jata Hai)
पितरों का आशीष पाने के लिए पितृ पक्ष का समय विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है। पुराणों के अनुसार, हमारी पिछली तीन पीढ़ियों के पूर्वज, मृत्यु के बाद स्वर्ग और पृथ्वी के बीच पितृलोक में विचरण करते हैं। श्राद्ध पक्ष के समय यही पूर्वज पितृलोक से पृथ्वी पर आकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।
मान्यता है कि इस समय किया श्राद्ध तर्पण पितरों को सीधे प्राप्त होता है, जिससे प्रसन्न होकर वे अपने परिवार को बाधाओं से बचाते हैं। वहीं, इस समय जो वंशज अपने पितरों का श्राद्ध-तर्पण आदि नहीं करते हैं, उनसे पूर्वज रूष्ट हो सकते हैं, और उनके प्रकोप के कारण आपके जीवन में बाधा आ सकती है। जिन जातकों की कुंडली में पितृ दोष है, उन्हें पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण, व पिंडदान करके इस दोष से छुटकारा मिल सकता है। ये थी पितृ पक्ष की तिथियों व मुहूर्त की संपूर्ण जानकारी।
पितृ पक्ष में श्राद्ध, पिंडदान, तर्पण का अर्थ एवं महत्व:
भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष का प्रारंभ हो रहा है। इस दौरान पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किए जाने का विधान है। ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष में पिंडदान और तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, और वे प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध में क्या अंतर होता है?
चलिए इस लेख में जानते हैं-
पितृ पक्ष में श्राद्ध का अर्थ एवं महत्व -
पितृ पक्ष में मृत परिजनों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करने को श्राद्ध कहा जाता है। ये पितरों के प्रति श्रद्धा और आभार व्यक्त करने की एक क्रिया है। श्राद्ध के समय सर्वप्रथम प्रातःकाल नित्यकर्म करके स्नान करें। इसके पश्चात् पितरों को याद करते हुए उन्हें जल में काला तिल मिलाकर अर्पित करें, और उन्हें प्रणाम करें।
महत्त्व
विष्णु पुराण के अनुसार श्रद्धायुक्त होकर श्राद्ध कर्म करने से पितृगण ही तृप्त नहीं होते, अपितु ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, दोनों अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, अष्टवसु, वायु, विश्वेदेव, ऋषि, मनुष्य, पशु-पक्षी और सरीसृप आदि समस्त भूत प्राणी भी तृप्त होते हैं।
पितृ पक्ष में पिंडदान का अर्थ एवं महत्व -
पिंडदान का अर्थ होता है अपने मृत परिजनों को भोजन का दान देना। मान्यता है कि पितृपक्ष में हमारे पूर्वज गाय, कुत्ता, चींटी, कौआ आदि के रूप में आकर भोजन ग्रहण करते हैं। इसलिए पितृ पक्ष के समय भोजन के पांच अंश निकालने की परंपरा है। पिंडदान के दौरान मृतक के निमित्त जौ या चावल के आटे को गूंथ कर गोल आकृति वाले पिंड बनाए जाते हैं। इसलिए इसे पिंडदान कहा जाता है।
महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार, श्रद्धापूर्वक किए हुए श्राद्ध में पिण्डों पर गिरी हुई पानी की नन्हीं-नन्हीं बूंदों से पशु-पक्षियों की योनि में पड़े हुए पितरों की आत्मा वर्ष भर के लिए तृप्त हो जाती है। पुराणों में ये भी वर्णन मिलता है कि पितृ पूजन से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, बल, वैभव, सुख, धन और धान्य का आशीर्वाद देते हैं।
पितृ पक्ष में तर्पण का अर्थ एवं महत्व -
पितरों को जल दान या तृप्त करने की क्रिया को तर्पण कहा जाता है। पितृ पक्ष के दौरान हाथ में जल, कुश, अक्षत, तिल आदि लेकर मृत परिजनों का तर्पण करने का विधान है। इस समय लोग दोनों हाथ जोड़कर अपने पितरों का स्मरण करते हैं, और उनका आह्वान करके जल ग्रहण करने की प्रार्थना करते हैं।
महत्व
जिस प्रकार पिंडदान से पितरों की क्षुधा शांत होती है, उसी प्रकार तर्पण करने से उनकी जल की इच्छा तृप्त होती है। मान्यता है कि तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, और वे अपने अपने वंशजों को सुख शांति का आशीर्वाद देते हैं।
तो ये थी पितृ पक्ष में पितरों की तृप्ति के लिए किए जाने वाले कर्मों से जुड़ी जानकारी। आप भी अपने पितरों की तृप्ति और कृपा पाने के लिए पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण के विधान का पालन करें।
पितृ पक्ष में तर्पण व पिंडदान की विधि व मंत्र
पितृ पक्ष भाद्रपद पूर्णिमा से प्रारंभ होता है और आश्विन अमावस्या तक चलता है। पितृ पक्ष में हम अपने दिवंगत परिजनों की आत्मा की शांति, मोक्ष और आत्म तृप्ति के लिए श्राद्ध, पिंडदान तर्पण आदि कर्म करते हैं, जिससे पूर्वज प्रसन्न होते हैं, और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। वहीं जो मनुष्य पितृ पक्ष में अपने पितरों की तृप्ति के लिए कोई कर्म नहीं करते हैं, उनसे पितृ नाराज़ हो सकते हैं।
तर्पण व पिंडदान की विधि
- पितृ पक्ष में प्रतिदिन पवित्र नदी में स्नान करके तट पर ही पितरों के नाम का तर्पण किया जाता है।
- तर्पण या पिंडदान करते समय सफेद वस्त्र पहनें, और ये क्रिया दोपहर के समय करें।
- इस समय जौ, काला तिल और एक लाल फूल डालकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके मंत्र बोलते हुए पितरों को जल अर्पित करें।
- शुद्ध जल, बैठने के लिए कुशा का आसन, तांबे की थाली , कच्चा दूध, गुलाब के फूल, फूल-माला, कुशा, सुपारी, जौ, काली तिल, जनेऊ आदि एकत्र कर लें, और आसन पर बैठकर ॐ केशवाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ गोविन्दाय नम: बोलते हुए तीन बार आचमन करें।
- आचमन के बाद हाथ धोकर अपने ऊपर जल छिड़कर पवित्र हों। फिर गायत्री मंत्र से शिखा बांधकर तिलक लगाएं, इसके बाद कुशा की पवित्री (पैंती) बनाकर अनामिका उंगली में पहनें। कर हाथ में जल, सुपारी, सिक्का, फूल लेकर तर्पण का संकल्प लें।
- इस समय अपने नाम एवं गोत्र उच्चारण करते हुए बोलें 'अथ् श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थ देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणम करिष्ये'।।
- अब थाली में जल, कच्चा दूध, गुलाब की पंखुड़ी डालें, फिर हाथ में चावल लेकर देवताओं एवं ऋषियों का आह्वान करें। स्वयं पूर्व मुख करके बैठें, कुशा के अग्रभाग को पूर्व की ओर रखें और दाएं हाथ की अंगुलियों के अग्रभाग से तर्पण दें। इसी विधि से ऋषियों को भी तर्पण दें।
- अब उत्तर मुख करके जनेऊ को माला की तरह पहनें और पालथी लगाकर बैठें। फिर दोनों हथेलियों के बीच से जल गिराते हुए दिव्य मनुष्य को तर्पण दें। आपको बता दें कि उंगलियों से देवता और अंगूठे से पितरों को जल अर्पित करने का विधान है।
- अब दक्षिण दिशा की ओर मुख करके, जनेऊ को दाहिने कंधे पर रखकर बाएं हाथ के नीचे लाएं, थाली में काला तिल छोड़ें, फिर इस तिल को हाथ में लेकर मंत्र पढ़ते हुए अपने पितरों का आह्वान करें- ॐ आगच्छन्तु में पितर इमम ग्रहन्तु जलान्जलिम। फिर अंगूठे और तर्जनी के मध्य भाग से तर्पण दें।
- तर्पण करते समय अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मत्पितामह (पिता का नाम) वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।
- इसी प्रकार तीन पीढ़ियों का नाम लेकर उन्हें जल अर्पित करें। इस मंत्र को पढ़ते हुए पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में 14 बार जलांजलि दें।
- आपको जिन पितरों के नाम याद न हों, उनके तर्पण के समय रूद्र, विष्णु एवं ब्रह्मा जी का नाम उच्चारण कर सकते हैं।
- इसके बाद सूर्यदेव को जल चढ़ाएं। फिर कंडे पर गुड़-घी की धूप दें।
- पिंडदान के लिए चावल को पकाकर उसमें गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद को मिलाकर गोल-गोल पिंड बनाए जाते हैं।
- इसके बाद दाएं कंधे पर जनेऊ पहनकर, दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बनाए गये पिंडो को पितरों को अर्पित करने की क्रिया को ही पिंडदान कहा जाता है।
- पिंड को हाथ में लेकर इस मंत्र का जाप करते हुए, 'इदं पिण्ड (पितर का नाम लें) तेभ्य: स्वधा' के बाद पिंड को अंगूठा और तर्जनी उंगली के मध्य से छोड़ें।
- अब पिंडों को उठाकर नदी में प्रवाहित कर दें।
- पिंडदान के बाद पंचबलि कर्म करने का विधान है। इसमें पांच जीवों को भोजन कराया जाता है। इसमें गोबलि अर्थात् गाय को भोजन, श्वान बलि अर्थात् कुत्ते को भोजन, काकबलि अर्थात कौवे को भोजन, देवादिबलि अर्थात् देवताओं को और चींटी को भोजन अर्पित किया जाता है।
- अंत में पितृभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:।पितामहेभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:।प्रपितामहेभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:।सर्व पितृभ्यो श्र्द्ध्या नमो नम:।। का पाठ करते हुए पितरों से श्रद्धापूर्वक प्रार्थना करें।
तो ये थी पितृ पक्ष में पितरों के तर्पण व पिंडदान की विधि से जुड़ी जानकारी। आप भी अपने पितरों की तृप्ति और कृपा पाने के लिए पितृ पक्ष के दौरान इन कर्मों का पालन करें।
पितरों को खुश करने के लिए करें ये उपाय
हर साल भादो माह की पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष की शुरुआत होती है। जो अश्विन माह की अमावस्या तक चलती है। ऐसे में आज हम आपको कुछ अटूट उपाय बताने जा रहे है, जिससे आप पितरों को खुश कर सकतें है।
पितरों को खुश करने के सरल उपाय
- पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भोजन करते समय पितरों को मन में याद कर भूल चूक के लिए क्षमा मांगना सहायक साबित होता है।
- सनातन धर्म में पितरों को प्रसन्न करने के लिए नियमित 15 दिनों तक पिंडदान और जल अर्पित करने से लाभ होता है।
- पूर्वजों को भोजन अर्पित करने के पहले भगवान विष्णु को भोग लगाने से पितर बहुत जल्द खुश होने की संभावनाएं बढ़ जाती है।
- वास्तु शास्त्र के अनुसार पितरों की तस्वीर घर में दक्षिण दिशा में लगाने से पितरों को खुशी मिलती है।
- पितृ पक्ष के दिनों में पितरों को जल देते समय- पितृभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधा नम:। पितामहेभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:।। प्रपितामहेभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:। सर्व पितृभ्यो श्र्द्ध्या नमो नम:।। मंत्र का जाप करने से पितृ प्रसन्न होते हैं।
- पितृपक्ष में पितरों को प्रसन्न करने के लिए गरीब, असहाय लोगों को कपड़े, जूते-चप्पल दान करने से पितृ जल्द प्रसन्न होते हैं।
- पितृपक्ष के दौरान ब्रह्म मुहूर्त में स्नान ध्यान करने के बाद पितरों को प्रणाम करना चाहिए। उन्हें फूल माला अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने से पितरों के जल्द प्रसन्न होने की संभावना बढ़ जाती है।
- पितृ पक्ष में अपने घर में पितरों की एक तस्वीर लगाए और 15 दिनों तक प्रतिदिन इस फोटो का पूजन करें। ऐसा करने से पितरों का आशीर्वाद आप पर हमेशा बना रहता है और आपके घर की निरंतर तरक्की में सहायक साबित होगा।
- पितरों का निरंतर आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनकी जयंती और पुण्यतिथि जरूर मनाना चाहिए। ऐसा करने से पितृ खुश होते हैं। इसके अलावा ब्राह्मण, गरीब और जरूरतमंद लोगों को इस दिन भोजन करना चाहिए। अपनी सार्थकता के मुताबिक इस दिन दान करना भी ज्योतिष शास्त्र में उचित माना गया है।
- इस पितृ पक्ष उम्मीद करते हैं, आप भी सरल उपाय को अपनाकर पितरों को खुश कर सकेंगे।
आशा करते हैं इस लेख द्वारा प्रदान की गई जानकारी आपको पसंद आई होगी। ऐसी ही रोचक एवं धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहें श्री मंदिर के साथ... नमस्कार। ऐसी ही रोचक एवं धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहें श्री मंदिर के साथ... नमस्कार।