रामानुजाचार्य जयंती 2025 कब है? जानिए इस पावन दिन की तारीख, महत्व और पूजा की सही विधि।
रामानुजाचार्य जयंती महान वैष्णव संत और दार्शनिक रामानुजाचार्य की स्मृति में मनाई जाती है। वे विशिष्टाद्वैत वेदांत के प्रणेता थे और भक्ति मार्ग के प्रचारक थे। यह जयंती भक्ति, समानता और ज्ञान के संदेश को स्मरण करने का अवसर होती है, जो समाज को एकता और प्रेम की दिशा में प्रेरित करती है।
भारत भूमि पर कई ऐसे संत-महात्माओं का जन्म हुआ है, जिन्होंने अपने अच्छे विचारों एवं प्रेरणादायक कार्यों से लोगों को सदमार्ग पर चलना सिखाया। इन्हीं महान संतो में से एक प्रमुख नाम है 'श्री रामानुजाचार्य' जी का।
तमिल कैलेंडर के अनुसार आम तौर पर रामानुजाचार्य की जयंती चैत्र के महीने में तिरुवथिरई नक्षत्र पर मनाई जाती है।
रामानुज एक महान दार्शनिक और विचारक थे, उनका जन्म सन् 1017 में श्री तमिलनाडु के पेरामबुदुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम केशव भट्ट बताया जाता है। रामानुज जब बहुत छोटे थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा कांची में यादव प्रकाश गुरु से हुई। उसके बाद वो आलवन्दार यामुनाचार्य के शिष्य बने।
16 वर्ष की अवस्था में ही श्रीरामानुजम ने सभी वेदों और शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त कर लिया था, और 17 वर्ष की आयु में वो दांपत्य सूत्र में बंध गए। हालांकि कुछ ही समय पश्चात उन्होंने गृहस्थ जीवन का त्याग कर दिया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रामानुज लगभग 120 वर्षों तक जीवित रहे, और सन् 1137 ई. में उनका देहांत हो गया। रामानुज ने अपने जीवन काल में लगभग नौ पुस्तकें लिखी हैं, जिन्हें नवरत्न कहा जाता है। वो स्वयं भी भगवान विष्णु के बड़े उपासक थे, और अपने अनुयायियों को भी विष्णु भक्ति के प्रति प्रेरित किया।
श्री रामानुजाचार्य ने गृहस्थ आश्रम का त्याग करने के पश्चात् श्रीरंगम के यदिराज संन्यासी से संन्यास की दीक्षा ली। वे श्रीयामुनाचार्य के भी शिष्य रहे। ऐसा कहा जाता है, कि जब श्रीयामुनाचार्य का निधन होने वाला था, तब उन्होंने अपने एक शिष्य से श्रीरामानुजाचार्य को बुलावा भेजा, परंतु उनके वहां पहुंचने से पहले ही श्रीयामुनाचार्य जी परलोक सिधार गए।
जब श्रीरामानुजाचार्य वहां पहुंचे, तो देखा कि श्रीयामुनाचार्य की तीन अंगुलियां मुड़ी हुई थीं। रामानुजाचार्य को ज्ञात हो गया कि श्रीयामुनाचार्य इनके माध्यम से 'ब्रह्मसूत्र', 'विष्णुसहस्त्रनाम' और अलवन्दारों के 'दिव्य प्रबंधनम्' का टीका लिखवाना चाहते हैं। इसके बाद रामानुज ने श्रीयामुनाचार्य के शरीर को प्रणाम किया एवं उनकी अंतिम इच्छा पूरी की।
रामानुज पहले कुछ समय तक मैसूर के श्रीरंगम में रहे, इसके पश्चात् वो शालग्राम नामक स्थान पर चले गए। वहां रामानुज ने 12 वर्षों तक वैष्णव धर्म का प्रचार किया। इसके उपरांत उन्होंने वैष्णव धर्म का प्रचार प्रसार करने के लिए पूरे देश का भ्रमण किया।
श्री रामानुजाचार्य के अनुयायी लगभग पूरे देश में हैं, जो आज भी बड़ी आस्था से उनकी पूजा करते हैं, और उनके बताए गए भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा लेते हैं। भारत के दक्षिणी हिस्सों श्री रामानुजाचार्य जयंती विशेष रूप से मनाई जाती है। इस दिन रामानुज की मूर्ति को पारंपरिक तरीके से स्नान कराया जाता है, जिसके बाद उनकी शिक्षाओं को पुनः याद करने के लिए कई संगोष्ठियों का आयोजन होता है।
श्री रामानुजाचार्य जयंती पर देश के कई मंदिरों में सांस्कृतिक उत्सव भी मनाया जाता हैं। इस दिन मंदिरो को सजा कर भजन कीर्तन का आयोजन किया जाता है, और रामानुजाचार्य की मूर्तियों पर पुष्प चढ़ाकर श्रद्धांजलि अर्पित की जाती हैं। रामानुज को याद करने के साथ साथ लोग इस दिन भगवान विष्णु की भी उपासना करते हैं, एवं दान-पुण्य करते हैं।
तो भक्तों, ये थी रामानुजाचार्य जयंती से जुड़ी संपूर्ण जानकारी। ऐसी ही रोचक व व्रत त्यौहार से जुड़ी जानकारियों के लिए जुड़े रहिए श्री मंदिर पर।
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