शीतला सप्तमी की पूजा विधि

शीतला सप्तमी की पूजा विधि

5 सितम्बर, 2023 जानें शीतला सातम का शुभ मुहूर्त और महत्व


हिंदू धर्म में पूजा और व्रत-पालन को काफी महत्वपूर्ण माना गया है। मगर इनमें से कुछ व्रत ऐसे हैं, जिन्हें विशेष रूप से लोक-कल्याणकारी माना जाता है। आज हम आपके लिए ऐसे ही एक व्रत की जानकारी लेकर आए हैं, जिसका नाम है शीतला सातम का व्रत। इसे शीतला सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। क्या आप जानते हैं, कि इस व्रत को साल में दो बार रखने की मान्यता है? अगर नहीं, तो आइए आज हम आपको, इस व्रत की संपूर्ण जानकारी से अवगत कराते हैं।

शीतला सप्तमी या शीतला सातम के व्रत का उल्लेख, स्कन्द पुराण में मिलता है। इस व्रत का पालन, एक बार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को किया जाता है और दूसरी बार इसका पालन, भादव महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को किया जाता है। इन दोनों ही तिथियों पर, माता शीतला की विधिवत पूजा और सप्तमी व्रत के पालन का विशेष महत्व है। लेकिन किसी भी व्रत को करने के लिए एक विशेष मुहूर्त होता है, तो आइए 2023 के शीतला सातम व्रत के शुभ मुहूर्त के बारे में जानते हैं?

शीतला सातम/ सप्तमी व्रत का शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार भादव मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि 5 सितम्बर 2023 को दोपहर 3 बजकर 45 मिनट पर प्रारंभ होगी। जिसका समापन 6 सितम्बर 2023 को सायंकाल 3 बजकर 40 मिनट पर होगा।

शीतला सातम का महत्व

शीतला सातम की पूजा और व्रत का पालन, मुख्य रूप से गुजरात में किया जाता है। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दक्षिण भारत के कुछ प्रांतों में भी, इस व्रत का पालन किया जाता है। ‘शीतला’ शब्द का सरल अर्थ है, ‘शीतलता प्रदान करने वाली’। देवी शीतला को देवी पार्वती का ही रूप माना गया है। साथ ही, उन्हें प्रकृति की उपचार शक्ति का प्रतीक भी माना गया है। तभी तो ऐसी मान्यता है, कि माँ शीतला की विधिवत पूजा करने से, वह अपने भक्तों की छोटी माता और चेचक जैसी अन्य बीमारियों से रक्षा करती हैं।

आपको बता दें, कि चिकेन पॉक्स की बीमारी को ही ‘छोटी माता’ कहा जाता है। ऐसा कहने के पीछे का कारण भी, माँ शीतला की पूजा से जुड़ा हुआ है। क्योंकि माँ शीतला, को अत्यंत शांत स्वरुप कहा जाता है। इसलिए ऐसी मान्यता है, कि विधिवत उनकी पूजा करने से मन को शांति और शरीर को ठंडक मिलती है। इसके साथ ही व्यक्ति के सभी रोग भी दूर हो जाते हैं। तभी शीतला सप्तमी के दिन, लोग अपने बच्चों के साथ मिलकर, माँ शीतला की आराधना करते हैं।

तो दोस्तों यह थी, शीतला सप्तमी का शुभ मुहूर्त और महत्व के बारे में जानकारी। आइए आगे जानते हैं शीतला सप्तमी की पूजा विधि के बारे में।

शीतला सप्तमी की पूजा विधि

पूजा सामग्री - इस दिन पूजा करने के लिए दो थाली को सजाएं। इनमें से एक थाली में प्रसाद के रूप में दही, रबड़ी, चावल, पुआ, पकौड़ी, नमक पारे, रोटी, शक्कर पारे, मठरी, बाजरे को रखें। फिर दूसरी थाली में आटे का दिया, रुई की बत्ती और घी रखें। इसके साथ-साथ, रोली, चावल, मेहंदी, काजल, हल्दी, लच्छा, वस्त्र, बड़कुले की एक माला भी एकत्रित कर लें। फिर टीका करने के लिए हल्दी और पानी के साथ, आम के पत्ते और शीतल जल से भरा हुआ कलश भी रखें।

पूजा विधि -शीतला सातम के दिन प्रातः काल जल्दी उठ कर स्नान के पश्चात, व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए। ध्यान रहे, कि इस दिन गर्म पानी से नहीं नहाना चाहिए, क्योंकि इस दिन शीतल जल से ही नहाने की परंपरा रही है। इसके पश्चात, मंदिर को गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें और दीप जलाएं। इसके बाद देवी शीतला की पूजा करें और रोली, हल्दी का टीका लगाएं।

फिर देवी शीतला को मेंहदी लगाकर, पुष्प और नए वस्त्र अर्पित करें। उसके बाद बासी खाने का भोग लगाएं और दिया जलाकर आरती करें। अंत में उनसे जुड़ी व्रत कथा पढ़े। विधिपूर्वक पूजा संपन्न होने के बाद, शीतला माता समेत घर के सभी सदस्यों को बासी भोजन का प्रसाद दें। बासी भोजन को प्रसाद के रूप में बांटने की वजह से, इसे काफ़ी स्थानों पर ‘बासौड़ा पर्व’ भी कहा जाता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन घर में ताज़ा भोजन नहीं बनाया जाता है और घर में चूल्हा भी नहीं जलाते हैं। साथ ही, माता को समर्पित किया जाने वाला प्रसाद भी एक दिन पहले ही बनाकर रखा जाता है और भक्त अपने परिवार सहित उसी को ग्रहण करते हैं।

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