श्रावण पूर्णिमा 2024: जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि व महत्व

श्रावण पूर्णिमा 2024: जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि व महत्व

श्रावण पूर्णिमा पर इस विधि से करें पूजन, मिलेगा आशीर्वाद, सफल होगा व्रत


श्रावण पूर्णिमा 2024 (Shravan Purnima 2024)



हिंदू धर्म में श्रावण मास की पूर्णिमा को विशेष फलदाई माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि श्रावण की पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा अपने सभी कलाओं से पूर्ण होता है, जिसकी शोभा समस्त दिशाओं को प्रकाशित करती है। साथ ही, इस तिथि को देश भर के अलग-अलग प्रांतों में, विभिन्न पर्वों के रूप में भी मनाया जाता है। जहां उत्तर भारत में इस दिन रक्षा बंधन का पर्व होता है, वहीं दक्षिण भारत में यह दिन अवनि अवित्तम के नाम से मनाया जाता है।

कब है श्रावण पूर्णिमा? (Shravan Purnima Date & Time)


  • श्रावण पूर्णिमा 19 अगस्त 2024, सोमवार को मनाई जाएगी।
  • श्रावण पूर्णिमा 19 अगस्त को प्रातःकाल 03 बजकर 04 मिनट पर प्रारम्भ होगी।
  • श्रावण पूर्णिमा तिथि का समापन 19 अगस्त को रात्रि 11 बजकर 55 मिनट पर होगा।

जानिए श्रावण पूर्णिमा व्रत का महत्व (Importance of Shravan Purnima Vrat)


श्रावण पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु व शिव जी की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन चंद्रमा की पूजा करने से चंद्रदोष से मुक्ति भी मिलती है। कई प्रांतों में इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की भी आराधना की जाती है। मान्यता है, कि इस तिथि पर लक्ष्मी-नारायण के दर्शन, मनुष्य को सुख, धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके साथ ये दिन शुद्धिकरण और उपनयन संस्कार के लिए भी विशेष शुभ माना जाता है।

श्रावण पूर्णिमा की इस तिथि को, कुछ क्षेत्रों में कजरी पूनम नाम से भी जाना जाता है। इस दौरान स्त्रियां नवमी तिथि के दिन पत्तों से बने पात्रों में जौ बोती हैं, जिसे पूर्णिमा के दिन नदी में विसर्जित किया जाता है। महिलाएं इस दिन व्रत रखकर, अपनी संतान की लंबी आयु और सुख समृद्धि की कामना करती हैं।

आखिर क्यों मनाई जाती है श्रावण पूर्णिमा? (Why is Shravan Purnima Celebrated)


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रावण पूर्णिमा की तिथि को ही भगवान विष्णु ने हयग्रीव दैत्य के संहार हेतु, अपना हयग्रीव अवतार लिया था। इसके अलावा श्रावण महीने को शिव की आराधना का श्रेष्ठ समय माना जाता है, इसलिए इस पूरे महीने के दौरान उनकी विधिवत पूजा की जाती है। वहीं श्रावण पूर्णिमा की तिथि को उनका रुद्राभिषेक करने को भी असीम महत्त्व प्राप्त है। देश के अलग-अलग प्रांतों के शिव मंदिरों में इस दिन बड़े स्तर पर महादेव की पूजा के साथ उनका रुद्राभिषेक किया जाता है।

श्रावण पूर्णिमा की सम्पूर्ण पूजा विधि (Shravan Purnima Puja Vidhi)


श्रावण पूर्णिमा पर शिव जी की पूजा और जलाभिषेक करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। नीचे दी गई पूजा विधि के अनुसार पूजा करें:

  • प्रातः जल्दी उठकर स्नान करके नए वस्त्र धारण करें।
  • सूर्यदेव को जल अर्पित करें और 'ओम सूर्याय नमः' का जाप करें।
  • निकटतम शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग पर गंगाजल और दूध से अभिषेक करें।
  • शिव जी को पुष्प, बेलपत्र, धतूरा, चंदन, गंगाजल, घी, और दूध अर्पित करें।
  • शिव जी को भांग, केसर, अक्षत, और भस्म अर्पित करें।
  • शिव आरती और शिव चालीसा का पाठ करें।
  • अंत में भगवान शिव को खीर का भोग लगाएं और प्रसाद वितरित करें।
  • अपनी श्रद्धा के अनुसार आप इस दिन भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की उपासना भी कर सकते हैं।
  • चंद्रमा को गंगाजल, दूध, रोली और चावल मिलाकर अर्घ्य दें। इसी के साथ आपकी पूजा संपूर्ण होती है।

श्रावण पूर्णिमा पर स्नान और दान का क्या महत्व है (Importance of Snan-Daan on Shravan Purnima


श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि बहुत ही शुभ मानी जाती है। इस दिन दान-धर्म का काम करना भी बहुत अच्छा माना जाता है। इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए और स्नान के बाद गरीबों को अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार दान देना चाहिए। इस दिन चींटी और मछलियों को दाना और इसके साथ ही गाय को चारा खिलाने से दुख दरिद्रता समाप्त होती है।

श्रावण पूर्णिमा पर ध्यान रखें ये बातें (Things to Remember on Shravan Purnima)


आइए जानते हैं श्रावण पूर्णिमा के दिन किये जाने वाले कुछ कार्यों के बारे में, जिसको करने से ईश्वर के साथ-साथ पितृ भी प्रसन्न होते हैं।

श्रावणी तर्पण

श्रावण पूर्णिमा पर पितरों को प्रसन्न करने व आत्म कल्याण के लिए हवन किया जाता है। साथ ही इस दिन पितरों को तर्पण- अर्पण भी किया जाता है। पितरों के तर्पण से उन्हें तृप्ति प्राप्त होती है। इसमें ऋग्वेद के मंत्रों से आहुति दी जाती है। श्रावणी तर्पण में पाप-निवारण हेतु पातकों, उपपातकों और महापातकों से बचने, परनिंदा न करने, आहार-विहार का ध्यान रखने, हिंसा न करने, इंद्रियों का संयम करने एवं सदाचरण करने की प्रतिज्ञा ली जाती है। ऐसा करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

जनेऊ करें धारण

हिन्दू धर्म में प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है जनेऊ पहनना और उसके नियमों का पालन करना। जनेऊ धारण करने के बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। द्विज का मतलब होता है दूसरा जन्म। इस संस्कार में मुंडन और पवित्र जल में स्नान भी अहम होते हैं। सावन पूर्णिमा के दिन पुराने जनेऊ को उतारकर, मन, हृदय और कर्म से पवित्रता का संकल्प लेकर गायत्री मंत्र का जाप करते हुए नये जनेऊ को धारण करना चाहिए। इससे व्यक्ति की अशुद्धियां मिटती हैं और पूर्वज प्रसन्न होते हैं।

भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा

श्रावण पूर्णिमा के दिन भगवान शिव के साथ-साथ भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने की मान्यता है। विधि द्वारा भगवान विष्णु की पूजा करने से सुख, शांति, धन एवम् समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस दिन शिव जी को खीर का भोग लगाना चाहिए और विष्णु और लक्ष्मी जी को पीला भोग अर्पण करना चाहिए।

ब्राह्मणों को भोजन

स्नान या पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना भी बहुत शुभ माना गया है। जिससे समस्त दुखों का अंत होता है और आपको इच्छानुसार फल की प्राप्ति होती है। विधि अनुसार ब्राह्मणों को भोजन करवाने से सुख-शांति और पुण्य में बढ़ोत्तरी होती है।


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