होली भाई दूज की कथा (Holi Bhai Dooj Ki Katha)
होली के बाद द्वितीया तिथि को भाई दूज के नाम से जाना जाता है। इस दिन भाई अपनी बहनों के घर भोज के लिए जाते हैं। बहनें उन्हें तिलक करके उनकी लम्बी आयु के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं।
पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार है-
प्राचीन काल में एक नगर था, जहां एक बुढ़िया रहती थी। उसके एक बेटा और एक बेटी थी। बेटी का विवाह हो चुका था। एक बार होली के बाद भाई ने अपनी मां से कहा, माता! मैं अपनी बहन के ससुराल जाकर उससे तिलक कराना चाहता हूं। बुढ़िया ने कहा, ये तो अति उत्तम विचार है बेटा! अवश्य जाओ! इसी बहाने बहन का कुशल क्षेम भी पूछते आना। बेटा एक जंगल से होते हुए गुज़र रहा था, तभी रास्ते में उसे नदी मिली। उस नदी ने कहा मैं तेरी काल हूं और तेरी जान लेकर रहूंगी। इस पर बुढ़िया का बेटा बोला, मैं पहले अपनी बहन से तिलक करा लूं, फिर बेशक तुम मेरे प्राण ले लेना।
इसके बाद जैसी ही वह आगे बढ़ा, उसी रास्ते में एक शेर मिला। बुढ़िया की बेटे से शेर ने भी यही कहा कि वह उसके प्राण लेना चाहता है। बेटे ने पुनः नदी को कही हुई बात दोहराई, और आगे बढ़ चला। थोड़ा और आगे बढ़ा तो उसे एक सांप मिला। वह भी बुढ़िया के बेटे की जान का प्यासा था। उस सांप से भी लड़के ने कहा कि मैं अपनी बहन के यहां होकर वापस लौट आऊं, फिर निसंकोच तुम मेरे प्राण ले लेना।
इस तरह जब भाई अपनी बहन के घर पहुंचा तो उसकी बहन सूत कात रही थी। भाई ने बहन को पुकारा परंतु उसने नहीं सुना। लेकिन जब दोबारा उसने आवाज़ लगाई, तो बहन बाहर आ गई। भाई ने बहन से कहा, बहना! अपने हाथों से मुझे तिलक कर दो। बहन ने भाई को तिलक लगाया और वह दुखी मन से वापस चलने को हुआ। भाई को दुखी देखकर बहन ने पूछा, भैया घर पर मां तो ठीक है ना? आखिर वह कौन सा कष्ट है, जिस कारण आपके चेहरे पर यह दुख दिख रहा है। इतना सुनकर भाई ने उसे रास्ते में घटी घटनाओं के बारे में बताया।
यह सब सुनकर बहन ने कहा, भैया! तुम निराश ना हो! आपकी बहन के रहते हुए कोई आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। इतना कहकर बहन भीतर गई और अपने साथ एक मांस का टुकड़ा, दूध व एक चुनरी लेकर आई, और भाई को कुछ समझा कर सारी वस्तुएं दे दीं।
जैसे ही भाई थोड़ी दूर चला, रास्ते में सबसे पहले उसे शेर मिला। उसने शेर के आगे मांस डाल दिया, इससे उसका ध्यान भटक गया और वह मांस खाने में व्यस्त हो गया। इस तरह थोड़ा आगे बढ़ने पर सांप मिला, जिसे भाई ने दूध दे दिया। सांप भी दूध पीने लगा और उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाया। चलते-चलते सबसे अंत में नदी मिली, जिस पर भाई ने चुनरी चढ़ा दी।
इस तरह बहन की चतुराई ने काल रूपी नदी सांप और शेर से अपने भाई की रक्षा की, और भाई ने भी जीवन भर बहन की रक्षा करने का संकल्प लिया। इसी कारण भाई-बहन के इस पावन पर्व को आज भी बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।