गोवर्धन पूजा की कथा

गोवर्धन पूजा की कथा

पढ़ें ये कथा होगी श्री कृष्ण की कृपा


गोवर्धन पूजा की कथा

दीपावली के बाद पूरे देश में गोवर्धन पूजा बड़ी ही श्रद्धापूर्वक मनाई जाती है। यह त्यौहार काफी ख़ास है, क्योंकि इसका संबंध भगवान श्रीकृष्ण से है। चलिए इस कथा के माध्यम से हम आपको बताते हैं कि इस पर्व की शुरूआत कैसे हुई और इसका भगवान श्रीकृष्ण से क्या संबंध है-

द्वापर युग में एक बार देवराज इंद्र को अपनी शक्तियों के ऊपर काफ़ी अहंकार हो गया था। उनका यह अभिमान तोड़ने के लिए श्रीकृष्ण ने बड़ी ही अद्भुत लीला रची थी।

एक दिन श्रीकृष्ण ने देखा कि ग्रामवासी किसी पूजा की तैयारी में व्यस्त हैं और स्वादिष्ट पकवान बना रहे हैं। यह देखकर श्रीकृष्ण मैया यशोदा से पूछते हैं कि, माँ यहां सब लोग किस पूजा की तैयारियों में व्यस्त हैं?

श्रीकृष्ण की बातें सुनकर यशोदा माता उत्तर देती हैं बताती हैं कि, गांव के सभी लोग, इंद्रदेव की पूजा में व्यस्त हैं।

कृष्ण जी आगे पूछते हैं कि उनकी पूजा क्यों की जाती है? तो माँ यशोदा उन्हें बताती हैं कि, यह पूजा इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए की जाती है, जिससे गांव में ठीक से वर्षा होती रहे और खेतों में फसलें लहलहाती रहें,

जिससे कभी भी अन्न की कमी न हो। गांववासियों के साथ यहां के पशुओं का भी भरण-पोषण इस अन्न से ही होता है।

इस बात पर श्री कृष्ण ने कहा कि फिर इंद्र देव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा होनी चाहिए क्योंकि गायों को चारा वहीं से मिलता है। इंद्रदेव तो कभी प्रसन्न नहीं होते हैं और न ही दर्शन देते हैं।

श्रीकृष्ण की यह बात बृज के अन्य लोगों को भी पता लगी और उन्होंने कान्हा की बात मानकर इंद्र देव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू कर दी।

यह देखकर इंद्र देव अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। इंद्रदेव ने इतनी वर्षा की कि उस से बृज वासियों को फसल के साथ काफी नुकसान हो गया।

वर्षा न रुकने पर सभी बृजवासी श्रीकृष्ण की शरण में पहुंचे और उनसे रक्षा की प्रार्थना करने लगे। श्रीकृष्ण ने सभी बृजवासियों को इंद्रदेव के प्रकोप से बचाने के लिए अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया। उन्होंने बृज के सभी लोगों से अपने गाय, बछड़े और अन्य पशुओं समेत पर्वत के नीचे शरण लेने के लिए कहा।

इंद्रदेव श्रीकृष्ण की यह लीला देखकर और भी क्रोधित हो गए और उन्होंने वर्षा की गति को और तीव्र कर दिया। तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर विराजमान होकर वर्षा की गति को नियंत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें।

इंद्र लगातार सात दिन तक वर्षा करते रहे तब ब्रह्मा जी ने इंद्र से कहा कि श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं और उन्हें कृष्ण जी की पूजा की सलाह दी। ब्रह्मा जी की बात सुनकर इंद्र ने श्री कृष्ण से क्षमा मांगी और उनकी पूजा करके अन्नकूट का 56 तरह का भोग लगाया। तभी से गोवर्धन पर्वत पूजा की जाने लगी और श्री कृष्ण को प्रसाद में 56 भोग चढ़ाया जाने लगा।

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