कब है सोमवती अमावस्या 2024?

कब है सोमवती अमावस्या 2024?

सोमवती अमावस्या की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त व इसका महत्व


सोमवती अमावस्या 2024



सोमवती अमावस्या 2024 कब मनाई जाएगी? सोमवती अमावस्या का शुभ मुहूर्त व तिथि सोमवती अमावस्या क्यों मनाते हैं? महत्व क्या है? सोमवती अमावस्या की पूजा कैसे करें? सोमवती अमावस्या पूजा से मिलते हैं ये लाभ सोमवती अमावस्या पर इन बातों का रखें विशेष ध्यान सोमवती अमावस्या के आवश्यक मंत्र व आरती इन उपायों से बिना व्रत के मिलेगा सोमवती अमावस्या का फल

सोमवती अमावस्या 2024 कब मनाई जाएगी?


पंचांग के अनुसार अमावस्या तिथि एवं सोमवार का संयोग सोमवती अमावस्या कहलाता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा करने का विधान है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार वर्ष में प्रायः एक या दो सोमवती अमावस्या ही पड़ती हैं। लेकिन यदि 2024 की बात करें तो जनवरी से लेकर दिसंबर तक इस वर्ष हिन्दू कैलेंडर के अनुसार भी तीन सोमवती अमावस्या पड़ेंगी। पहली सोमवती अमावस्या चैत्र मास में, दूसरी भाद्रपद मास में और तीसरी पौष मास में।

आइए जानते हैं कि वर्ष 2024 में दूसरी सोमवती अमावस्या कब है?


  • सोमवती अमावस्या: 02 सितंबर, सोमवार (भाद्रपद कृष्ण अमावस्या)
  • अमावस्या तिथि प्रारम्भ: 02 सितंबर, सोमवार को 05:21 AM पर
  • अमावस्या तिथि समापन: 03 सितंबर, सोमवार को 07:24 AM पर

सोमवती अमावस्या क्यों मनाते हैं? महत्व क्या है?


भक्तों, ज्योतिष गणित के अनुसार जब मासिक अमावस्या की तिथि एवं सोमवार का संयोग होता है, तब इसे सोमवती अमावस्या कहा जाता है। भक्तजन इस दिन धर्म-कर्म के माध्यम से अपने जीवन को सार्थक बनाने का प्रयास करते हैं। यह दिन धार्मिक एवं ज्योतिष, दोनों ही दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है।

इसके अतिरिक्त आपको बता दें हिंदू कैलेंडर में वर्ष की 12 अमावस्या होती हैं, एवं प्रत्येक माह की अमावस्या तिथि किसी न किसी धार्मिक महत्व से जुड़ी हुई होती है।

सोमवती अमावस्या का महत्व


सनातन धर्म में सोमवती अमावस्या का दिन कई कारणों से महत्वपूर्ण माना जाता है। जैसे - इस विशेष दिन पर, शिव-पार्वती जी की पूजा-अर्चना करने से सभी को मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही इस दिन विवाहित स्त्रियां माता पार्वती से अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद मांगती हैं।

इसके अतिरिक्त इस दिन सुहागिन स्त्रियां तुलसी के पौधे और पीपल के वृक्ष का पूजन एवं व्रत करती हैं और अपने पति की सुख-समृद्धि एवं दीर्घायु की कामना करती है। कई स्थानों पर अविवाहित स्त्रियां भी इस दिन उपवास रखती हैं और मनचाहे जीवनसाथी के लिए प्रार्थना करती हैं।

यह दिन पितृ तर्पण करने के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस दिन जातक अपने मृत पूर्वजों का आशीर्वाद पाने एवं उन्हें शांति प्रदान करने के लिए तर्पण करते हैं। साथ ही इस दिन दुखों और कष्टों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए स्नान, होम, यज्ञ, दान और पूजा-अनुष्ठान आदि का भी अत्यंत महत्व है। माना जाता है कि इस दिन किये गए दान-धर्म का अक्षय फल कई गुना होकर पुनः लौटता है।

सोमवती अमावस्या के शुभ मुहूर्त इस प्रकार रहेंगे:


  • ब्रह्म मुहूर्त: 04:29 AM से 05:15 AM तक
  • प्रातः सन्ध्या: 04:52 AM से 06:00 AM तक
  • अभिजित मुहूर्त: 11:55 AM से 12:46 PM तक
  • विजय मुहूर्त: 02:27 PM से 03:18 PM तक
  • गोधूलि मुहूर्त: 06:41 PM से 07:04 PM तक
  • सायाह्न सन्ध्या: 06:41 PM से 07:49 PM तक
  • अमृत काल: 09:41 PM से 11:27 PM तक
  • निशिता मुहूर्त: 11:58 PM से 12:43 AM (3 सितंबर) तक

आइये, अब संक्षिप्त में जानते हैं कि क्यों खास है सोमवती अमावस्या का दिन:

इस दिन भक्तजन गंगा जैसी पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और अपने पिछले और वर्तमान के सभी पापों से छुटकारा प्राप्त करते हैं। यह दिन भक्तों की मनवांछित कामनाओं की पूर्ति करने वाला भी है।

माना जाता है कि अमावस्या की तिथि पितृ तर्पण करने के लिए भी एक महत्वपूर्ण दिन है। पितृ दोष का शिकार होने वाले व्यक्तियों को सोमवती अमावस्या का व्रत रखने से पितृ दोष से राहत प्राप्त होती है। साथ ही इस दिन किसी ज़रूरतमंद व्यक्ति या किसी ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देने से आपके पुण्यफल में वृद्धि होती है।

यदि आप भी सोमवती अमावस्या के विशेष दिन पर पूजा-अर्चना कर अपने इष्ट की कृपा पाना चाहते हैं तो आपको कहीं और जाने की जरूरत नहीं है। श्री मंदिर पर आप सभी के लिए इस पर्व से जुड़ी समस्त जानकारी उपलब्ध है। जुड़े रहें और लाभ उठाएं।

कैसे करें सोमवती अमावस्या की पूजा? जानें विधि


सनातन धर्म में सोमवती अमावस्या का दिन स्नान एवं दान के साथ विवाहित स्त्रियों के लिए भी विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है। साथ ही प्रत्येक अमावस्या की तिथि को पितरों की तिथि भी कहा जाता है। चूँकि आगामी माह में अमावस्या सोमवार को पड़ रही है, अतः इस सोमवती अमावस्या के दिन विधि-विधान सहित पूजन एवं व्रत का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।

सोमवती अमावस्या पूजा विधि की सामग्री


  • गंगाजल
  • पुष्प
  • पुष्प माला
  • हल्दी-कुमकुम-अक्षत
  • मिष्ठान
  • ऋतुफल
  • धुप-दीप
  • दक्षिणा
  • सुहाग का सामान (क्षमता अनुसार)।

सोमवती अमावस्या व्रत की पूजा विधि


  • सबसे पहले इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करें। अगर यह संभव न हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
  • इसके बाद साफ वस्त्र धारण करें। अब तांबे के कलश में जल लेकर सूर्य देव को अर्घ्य दें।
  • अब घर के मंदिर को भी गंगा जल छिड़क कर शुद्ध कर लें।
  • अब मंदिर में स्थापित शिव जी और माता पार्वती सहित सभी देवी-देवताओं पर भी गंगा जल छिड़ककर उन्हें स्नान करवाएं।
  • मंदिर में एक दीपक जलाएं, ताकि अग्निदेव आपकी पूजा के साक्षी बनें।
  • अब सभी देवी-देवताओं को हल्दी-कुमकुम से तिलक लगाएं। इसके बाद सभी को पुष्प, अक्षत अर्पित करें।
  • अब भोग के रूप में मिष्ठान्न और फल अर्पित करें।
  • धुप-दीप से भगवान की आरती करें, और पूजा में हुई किसी भी गलती के लिए भगवान से क्षमा मांगें।
  • अंत में सभी को प्रसाद वितरित करें और पूरा दिन या क्षमता अनुसार व्रत का पालन करें।
  • किसी ब्राम्हण अथवा जरूरतमंद व्यक्ति को इस दिन दान-दक्षिणा अवश्य दें, इससे आपकी पूजा सफल होगी।
  • इस दिन संध्या के समय पीपल के पेड़ के नीचे अपने पितरों के नाम का घी का दीपक जलाएं।
  • इस दिन भगवान विष्णु की भी पूजा का विधान है। अतः आप श्री हरि का ध्यान भी अवश्य करें।

इसके अतिरिक्त इस दिन कई स्थानों पर पीपल के पेड़ की पूजा करने के बाद, विवाहित स्त्रियां पेड़ के चारों ओर एक पंक्ति में 108 परिक्रमा लेकर पेड़ की एक टहनी पर लाल या पीले रंग का पवित्र धागा बाँधती हैं। उसके बाद, पीपल के पेड़ को सिंदूर, चंदन का लेप, दूध और फूल आदि चढ़ाते हैं और उसके नीचे बैठकर पवित्र मंत्रों का पाठ करते हैं। इसके साथ ही सोमवती अमावस्या पर तुलसी के पौधे का पूजन एवं परिक्रमा करने की भी परंपरा है। जिसमें तुलसी जी के 108 फेरे लिए जाते हैं एवं उन्हें सुहाग का सामान भी अर्पित किया जाता है। अतः आप अपने घर के रीति के अनुसार सोमवती अमावस्या के उपवास एवं पूजा-पाठ का पालन करें।

इन उपायों से व्रत न करने वाले कैसे पाएं सोमवती अमावस्या का शुभ फल?


सोमवती अमावस्या की विशेष तिथि के दिन भक्तजन पूजा, व्रत, धर्म-अनुष्ठानों और दान आदि के माध्यम से भगवान के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करते हैं। किंतु आजकल दौड़भाग से भरी जीवनशैली और समय की कमी के कारण हम और आप जैसे कई लोग चाहकर भी व्रत जैसे कठिन धार्मिक कार्य का पालन नहीं कर पाते।

आपकी इसी दुविधा को ध्यान में रखते हुए हम आपको कुछ ऐसे सद्कार्य बताने जा रहें हैं, जो आपको उपवास के समान ही शुभ फल प्रदान करेंगे।

तो आइये, जानते हैं कुछ खास उपाय।

पवित्र निकायों में स्नान

इस दिन प्रातः जल्दी उठकर गंगा जी या अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने का अत्यंत महत्व है। यदि ऐसा संभव न हो पाए तब भी आप घर के पानी में ही गंगाजल मिलाकर स्नान-ध्यान अवश्य करें।

आसान पूजा-विधि

सर्वप्रथम प्रातः जल्दी उठकर नित्यकर्मों से निवृत होकर स्नान करें। स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

इसके बाद सूर्यनारायण को शुद्ध जल से अर्घ्य दें और संकल्प लें कि ‘हे प्रभु! मैं सोमवती अमावस्या व्रत का पालन करने में सक्षम नहीं हूँ, लेकिन इस शुभ दिन पर पूर्ण श्रद्धा से शिव जी, माता पार्वती की भक्ति करने का संकल्प लेती हूँ।

उसके बाद आप बिल्वपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव की पूजा करें। संभव हो तो शिव जी को कनेर, धतूरा, गुलाब के फूल व बिल्वपत्र चढ़ाएं, इसके बाद दक्षिणा चढ़ाकर आरती के बाद पुष्पांजलि समर्पित करें।

भगवान शिव के मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ मन्त्र का जाप करें और शिव जी को जल चढ़ाएं।

श्रृंगार और सुहाग की सामग्री जो आपके पास उपलब्ध हो, माता पार्वती को अर्पित करें। इसके बाद भगवान उमामहेश्वर का ध्यान कर प्रार्थना करें कि “हे उमानाथ - कर्ज, दुर्भाग्य, दरिद्रता, भय, रोग व समस्त पापों का नाश करने के लिए आप पार्वतीजी सहित पधारकर मेरी पूजा स्वीकार करें।”

दान

इस दिन निर्धनों एवं ब्राम्हणों को क्षमता अनुसार दान (आर्थिक सहायता, अन्न, वस्त्र आदि का दान) करना बेहद फलदायी होता है, माना जाता है कि इस दिन किये गए दान-धर्म का अक्षय फल कई गुना होकर पुनः लौटता है।

पीपल देवता और तुलसी माता की भक्ति

यदि आप विधि-विधान से सोमवती अमावस्या का व्रत और पूजन नहीं कर पा रहें हैं तो निराश मत होइए। आप सच्चे भाव से पीपल के वृक्ष और तुलसी माता को हाथ जोड़कर नमन करें और अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना करें।

मंदिर में करें प्रार्थना

सोमवती अमावस्या के दिन अगर आप घर पर किसी भी प्रकार से पूजा करने में असमर्थ हैं तो आप निकटम भोलेनाथ जी के मंदिर में भी जाकर उनका जलाभिषेक अवश्य करें। यदि संभव हो पाए तो आप मंदिर में भी भोग और दक्षिणा चढ़ा सकते हैं। आप सच्चे मन से अगर प्रार्थना करेंगे तो शिव जी अवश्य आप पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखेंगे।

साथ ही वैवाहिक जीवन में आने वाली सभी परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए मंदिर जाकर शिवजी और मां पार्वती पर एक साथ मौली या फिर कलावे को सात बार लपेट दें। ऐसा करने से वैवाहिक जीवन में प्रेम भाव बढ़ेगा।

सोमवती अमावस्या से मिलने वाले 5 लाभ, अवश्य जानें


सोमवती अमावस्या के दिन संपूर्ण भक्ति भाव से धर्म-कर्म सहित उपवास करने की महिमा अत्यंत निराली है। इस दिन सोमवार और अमावस्या के संयोग की शक्ति न सिर्फ आपके जीवन को सफल और समृद्ध बनाएगी बल्कि आपको और आपके पूर्वजों को मोक्ष का मार्ग भी दिखाएगी।

आइये, जानते हैं सोमवती अमावस्या के दिन व्रत-पूजन से मिलने वाले मुख्य लाभ कौन-कौन से हैं -

मोक्ष की प्राप्ति

जो लोग इस दिन गंगा जैसी पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, उन्हें अपने पिछले और वर्तमान के सभी पापों से छुटकारा प्राप्त होता है तथा वे पृथ्वीलोक के सुखों को भोगकर मोक्ष को प्राप्त होते हैं।

मनवांछित फलों की पूर्ति

हिंदू संस्कृति में, पीपल का वृक्ष देव समान माना गया है। साथ ही इसे देवताओं का निवास स्थान भी कहा जाता है। सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा आपको मनवांछित फलों का लाभ देती है।

अखंड सौभाग्य का वरदान

इस दिन सुहागन स्त्रियां भी अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत एवं तुलसी पूजन का विधिविधान से पालन करती हैं। यह भी माना जाता है कि अगर अविवाहित स्त्रियां भी इस दिन उपवास रखती हैं तो उन्हें एक अच्छा और उपयुक्त जीवनसाथी मिलता है।

पितृ दोष से राहत

यह दिन पितृ तर्पण करने का एक महत्वपूर्ण दिन है। पितृ दोष से पीड़ित व्यक्तियों को सोमवती अमावस्या का व्रत रखने से पितृ दोष से राहत प्राप्त होती है।

पुण्य प्राप्ति

सोमवती अमावस्या के दिन किसी भी ज़रूरतमंद व्यक्ति या किसी ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देने से आपके पुण्यफल में वृद्धि होती है। खासकर इस दिन किए गए दान का फल कई गुना अधिक लाभकारी माना जाता है।

सोमवती अमावस्या से जुड़ी अन्य सभी जानकारी श्री मंदिर पर उपलब्ध है। आप स्वयं भी इसका लाभ लें और अपने प्रियजनों को भी इससे अवगत कराएं। जय तुलसी मैया की।

सावधान! इन 6 बातों का रखें सोमवती अमावस्या पर ध्यान


सनातन मान्यता और ज्योतिष शास्त्र दोनों ही सोमवती अमावस्या को हिन्दू पंचांग की एक विशेष तिथि मानते हैं। यदि कुछ विशेष नियमों को ध्यान में रखते हुए अमावस्या के दिन पूजन एवं उपवास का पालन किया जाए तो निश्चय ही भक्तों को इस शुभ दिन का लाभ प्राप्त होता है।

अतः इस दिन पूजा-पाठ और व्रत के साथ-साथ कुछ आसान सावधानियां बरतने की भी सलाह दी जाती है

आइए, जानते हैं कि सोमवती अमावस्या के दिन किन कार्यों को करने की सख्‍त मनाही है।

प्रातः देर तक न सोएं

सोमवती अमावस्या का दिन स्नान, दान, तर्पण और पूजा-पाठ का दिन है। अतः इस दिन देर तक न सोएं, बल्कि जल्दी उठें और प्रभु का नाम लेकर अपना दिन शुरू करें।

सदाचारी बनें

इस दिन शांति और धीरज रखते हुए सदाचार का पालन करें। किसी भी प्रकार के कलह, झगड़े और विवाद आदि से दूर रहें। झूठ न बोलें और न ही किसी से कड़वे वचन कहें।

सूनसान स्थानों पर न जाएं

अमावास्‍या के दिन सुनसान स्थानों पर न जाएं क्‍योंकि अमावस्‍या पर रात के अंधेरे में कई नकारात्‍मक शक्तियां सक्रिय हो जाती हैं। इसलिए विशेषकर श्‍मशान घाट और कब्रिस्‍तान में न जाएं।

ब्रह्मचर्य का पालन

सोमवती अमावस्या पर तन-मन की शुद्धि बना कर रखें। भजन, कीर्तन करते हुए अपना दिन व्यतीत करें और पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करें।

तामसिकता से बचें

इस दिन जुआ, मांसाहार, शराब और धूम्रपान जैसे अवगुणों से दूर रहें। साथ ही तामसिक भोजन का सेवन भी न करें।

पाप कर्मों से दूर रहें

सोमवती अमावस्‍या के दिन बुजुर्गों, संत, गरीब या किसी भी असहाय व्यक्ति को कष्ट न पहुँचायें। साथ ही अपने आसपास जीव-जंतुओं का भी ध्यान रखें। किसी को भी अकारण परेशान करके पाप के भागीदार न बनें।

साथ ही हम आपसे विनम्र अनुरोध करते हैं कि सामान्य दिनों में भी इन दुर्गुणों से दूर रहें।

हम आशा करते हैं कि स्नान, तर्पण और दान का ये दिन आप सभी के जीवन में सुख-शांति एवं सफलता लेकर आए। साथ ही यह आपकी धार्मिक आस्था को और अधिक मजबूती प्रदान करें।

सोमवती अमावस्या के मंत्र-आरती


किसी कारणवश यदि आप व्रत नहीं भी करते हैं, तब भी नीचे दिए गए मंत्रों-आरती से आप अपनी सोमवती अमावस्या पूजा को सफल बना सकते हैं।

इस लेख में पढ़िए:

  • ॐ नमः शिवाय मंत्र और इसके लाभ
  • ॐ नमो भगवते मंत्र और इसके लाभ
  • गायत्री मंत्र और इसके लाभ
  • अयोध्या, मथुरा, माया श्लोक और इसके लाभ
  • शिव जी की आरती
  • श्री विष्णु जी की आरती
  • तुलसी मैया की आरती

ॐ नमः शिवाय॥

लाभ - इस मंत्र के जाप से काम, क्रोध, घृणा, मोह, लोभ, भय, एवं विषाद आदि वासनाओं से मुक्ति प्राप्त होती है। यह मंत्र साहस, ऊर्जा एवं उत्साह का प्रतीक है। शिव जी के इस मंत्र का निरंतर जाप अकाल मृत्यु के भय को भी नष्ट करता है।

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥

लाभ - यह मंत्र सर्वोत्तम विष्णु मंत्र माना जाता है। सोमवती अमावस्या के दिन 108 बार इस मंत्र का जाप करने से भगवान अति प्रसन्न होते हैं, और अपने भक्त की हर मनोकामना पूरी करते हैं।

अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवन्तिकापुरी, द्वारवती ज्ञेयाः सप्तैता मोक्ष दायिका॥ गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती, नर्मदा सिंधु कावेरी जलेस्मिनेसंनिधि कुरू॥

लाभ - सोमवती अमावस्या के दिन सप्त पुरियों एवं सप्त नदियों को समर्पित इस श्लोक के जाप से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। साथ ही स्नान, दान एवं पूजन का संपूर्ण फल प्राप्त होता है।

ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्॥

लाभ - यह मंत्र नकारात्मक शक्तियों, तनाव एवं चिंता से मुक्ति प्रदान करता है। साथ ही बौद्धिक क्षमता एवं स्मरणशक्ति में बढ़ोत्तरी करता है।

सोमवती अमावस्या के पवित्र दिन पर आप उक्त मंत्रों को अपनी पूजा में अवश्य शामिल करें। साथ ही पूजन का समापन आरती के साथ करें एवं अपनी मनोकामना भगवान के समक्ष कहें।

इस दिन की जाने वाली प्रमुख आरतियां


शिव जी की आरती


॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥ जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा । ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे । हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे। त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥

अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी । चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे । सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता । जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका । प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी । नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥

त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे । कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥

जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा| ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥

श्री विष्णु जी की आरती


|| ॐ जय जगदीश हरे || ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट, क्षण में दूर करे || || ॐ जय जगदीश हरे ||

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी स्वामी शरण गहूं मैं किसकी, तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी || || ॐ जय जगदीश हरे ||

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी स्वामी तुम अंतर्यामी, पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी || || ॐ जय जगदीश हरे ||

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता स्वामी तुम पालनकर्ता, मैं मूरख खल कामी , कृपा करो भर्ता || || ॐ जय जगदीश हरे ||

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति, स्वामी सबके प्राणपति, किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति || || ॐ जय जगदीश हरे ||

दीनबंधु दुखहर्ता, ठाकुर तुम मेरे, स्वामी ठाकुर तुम मेरे, अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा मैं तेरे || || ॐ जय जगदीश हरे ||

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा, स्वामी पाप हरो देवा, श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा || || ॐ जय जगदीश हरे ||

श्री जगदीश जी की आरती, जो कोई नर गावे, स्वामी जो कोई नर गावे, कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे || || ॐ जय जगदीश हरे ||

तुलसी माता की आरती


॥ जय तुलसी माता ॥ जय जय तुलसी माता, मैया जय तुलसी माता । सब जग की सुख दाता, सबकी वर माता ॥ ॥ जय तुलसी माता ॥

सब योगों से ऊपर, सब रोगों से ऊपर । रज से रक्ष करके, सबकी भव त्राता ॥ ॥ जय तुलसी माता ॥

बटु पुत्री है श्यामा, सूर बल्ली है ग्राम्या । विष्णुप्रिय जो नर तुमको सेवे, सो नर तर जाता ॥ ॥ जय तुलसी माता ॥

हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वंदित । पतित जनों की तारिणी, तुम हो विख्याता ॥ ॥ जय तुलसी माता ॥

लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में । मानव लोक तुम्हीं से, सुख-संपति पाता ॥ ॥ जय तुलसी माता ॥

हरि को तुम अति प्यारी, श्याम वर्ण सुकुमारी । प्रेम अजब है उनका, तुमसे कैसा नाता ॥ हमारी विपद हरो तुम, कृपा करो माता ॥ ॥ जय तुलसी माता ॥

जय जय तुलसी माता, मैया जय तुलसी माता । सब जग की सुख दाता, सबकी वर माता ॥ ॥ जय तुलसी माता ॥

हम हमेशा की तरह आगे भी सनातन धर्म से जुड़ी समस्त जानकारी आप तक पहुंचाते रहेंगे, आप बने रहिए आपके अपने श्री मंदिर के साथ।


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