महेश नवमी क्यों मनाते हैं? जानें

महेश नवमी क्यों मनाते हैं? जानें

जीवन में सुख और सौभाग्य की प्राप्ति


महेश नवमी क्यों मनाते हैं? जानें


हर साल यह ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन सृष्टि के रचयिता भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि महेश नवमी का व्रत करने से विवाहित लोगों को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वहीं अविवाहित लोगों की जल्द ही शादी होने के योग बन रहे हैं। इसलिए भक्त श्रद्धापूर्वक भगवान शिव की पूजा करते हैं।अगर आप भी भगवान शिव की कृपा पाना चाहते हैं तो महेश नवमी के दिन पूजा के दौरान इन मंत्रों का जाप जरूर करें। इन मंत्रों के जाप से घर में सुख-समृद्धि और शांति आती है। साथ ही मनोवांछित फल भी प्राप्त होता है। आइए जानते हैं महेश नवमी से जुड़ी जानकारियां-

महेश नवमी 2024 तिथि (Mahesh Navami 2024 Date)


साल 2024 में महेश नवमी शनिवार 15 जून 2024 को मनाई जाएगी। नवमी तिथि का प्रारम्भ 15 जून 2024 को मध्य रात्रि 12 बजकर 03 मिनट से होगा और नवमी तिथि का समापन 16 जून 2024 को तड़के सुबह 02 बजकर 32 मिनट तक होगा।

क्यों मानते है महेश नवमी (Why Mahesh Navami Celebrated )


ऐसी मान्यता है कि ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष के नवें दिन भगवान शंकर के वरदान स्वरूप माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई थी। महेश नवमी का पर्व 'माहेश्वरी धर्म' को मानने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक प्रमुख अवसर है। माहेश्वरी समाज के लोग इस पावन पर्व को अत्यंत आस्था व हर्षउल्लास के साथ मनाते हैं।

कैसे हुई माहेश्वरी समाज की उत्त्पत्ति (How Did Maheshwari Society Come Into Existence)


धर्मग्रंथों में वर्णन मिलता है कि माहेश्वरी समाज के पूर्वज पूर्व में क्षत्रिय वंश के थे। एक बार शिकार करते समय उन्हें कुछ ऋषियों ने श्राप दे दिया। जिसके पश्चात् इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए क्षत्रियों ने भगवान शिव की उपासना की। इसके फलस्वरूप शंकर जी ने अपनी कृपा से उन्हें श्राप से मुक्त कर दिया। यही कारण है कि यह समुदाय 'माहेश्वरी' नाम से जाना जाने लगा। जिसमें 'महेश' का अर्थ है शंकर और वारि का अर्थ है समुदाय या वंश। शिव जी की आज्ञा होने के कारण इस समाज के पूर्वजों ने क्षत्रिय कर्म छोड़कर वैश्य या व्यापारिक कार्य को अपनाया, इसलिए आज भी माहेश्वरी समाज के लोग वैश्य या व्यापारिक समुदाय के रूप में जाने जाते हैं।

महेश नवमी का धार्मिक महत्व (Religious Importance Of Mahesh Navami)


माहेश्वरी समाज के लिए महेश नवमी का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस उत्सव की मनाने की तैयारी लगभग तीन दिन पहले से ही आरंभ हो जाती है, जिनमें कई प्रकार के धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा इस दिन लोग 'जय महेश' के जयकारे लगाते हैं। महेश नवमी के अवसर पर भगवान भोलेनाथ एवं माता पार्वती की विशेष रूप से पूजा अर्चना होती है।

महेश नवमी पर्व से मिलने वाली प्रेरणा (Inspiration From Mahesh Navami festival)


माहेश्वरी समाज को श्राप से मुक्त करते समय भगवान शिव ने क्षत्रिय राजपूतों को शिकार करने की प्रवृत्ति का त्याग कर व्यापार या वैश्य कर्म अपनाने की आज्ञा दी। इसके पीछे कारण था उन्हें हिंसा के मार्ग से हटा कर अहिंसा के रास्ते पर चलाना। इस प्रकार महेश नवमी के इस पर्व से हमें प्रेरणा मिलती है कि मनुष्य को हर प्रकार की हिंसा का त्याग कर जगत् कल्याण, परोपकार के कर्म करने चाहिए।

बोध चिन्ह व प्रतीक (Signs And Symbols)


  • महेश- स्वरूप में भगवान 'शिव' पृथ्वी से ऊपर कमल पुष्प पर बेलपत्ती, त्रिपुंड्र, त्रिशूल, डमरू के साथ लिंग रूप में विराजमान होते हैं। भगवान शिव के इस बोध चिह्न के प्रत्येक प्रतीकों के अलग अलग-महत्व हैं।

  • पृथ्वी- पृथ्वी गोल परिधि में है, परंतु भगवान महेश ऊपर हैं, अर्थात पृथ्वी की परिधि भी जिन्हें नहीं बाँध सकती, वह एक लिंग भगवान महेश संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हैं।

  • त्रिपुंड - इसमें तीन आड़ी रेखाएँ हैं, जो कि संपूर्ण ब्रह्मांड को समाए हुए हैं। एक खड़ी रेखा जो भगवान शिव का तीसरा नेत्र मानी जाती है, जो केवल दुष्टों के विनाश हेतु खुलता है। यह त्रिपुंड भस्म से ही लगाया जाता है। ये महादेव के वैराग्य और त्याग के स्वभाव का प्रतीक है। त्रिपुंड हमें प्रेरणा देता है कि हमें भी अपने जीवन में सदैव त्याग व वैराग्य की भावना रखनी चाहिए।

  • त्रिशूल- त्रिशूल समस्त दुष्ट प्रवृत्ति के जीवों का विनाश कर सर्वत्र शांति की स्थापना करने का प्रतीक है।

  • डमरू- डमरू स्वर व संगीत से फैलाई जाने वाली सकारात्मकता का महत्व बताता है। डमरू प्रेरणा देता है कि उठो, जागो और जनमानस को जागृत कर सकारात्मकता का डंका बजाओ।

  • कमल- कमल नौ पंखुड़ियाँ हैं, जो नौ दुर्गाओं का प्रतीक मानी जाती हैं। कमल एक ऐसा पुष्प है, जिसे भगवान विष्णु ने अपनी नाभि से अंकुरित कर ब्रह्मा की उत्पत्ति की। महालक्ष्मी भी कमल पर ही विराजमान हैं, इसके अलावा ज्ञान की देवी सरस्वती का भी आसन श्वेत कमल ही है। कमल कीचड़ में खिलता है, जल में रहता है, परंतु वो किसी तरह की नकारात्मकता को अपने अंदर समाहित नहीं करता है। जिस प्रकार कमल सदैव पवित्र व पूज्यनीय होता है, उसी प्रकार हमें भी बुरी संगत में रहने के बावजूद भी स्वयं पर उसका प्रभाव नहीं होने देना चाहिए।


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