देवघर मंदिर के रहस्यमय पहलुओं को जानिए, जहाँ बाबा बैद्यनाथ के आशीर्वाद से जुड़े अनगिनत चमत्कारी अनुभव और इस मंदिर की महिमा अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
देवघर का बाबा बैद्यनाथ धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसका रहस्य अत्यंत अद्भुत है। मान्यता है कि यहां स्वयं रावण ने भगवान शिव को स्थापित किया था, लेकिन एक भूल के कारण शिवलिंग वहीं स्थायी रूप से स्थापित हो गया। कहा जाता है कि इस शिवलिंग में भगवान शिव और शक्ति दोनों की ऊर्जा समाई हुई है।
देवघर मंदिर, जिसे बैद्यनाथ धाम के नाम से भी जाना जाता है, भारत के झारखंड राज्य में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू तीर्थस्थल है। बाबा बैद्यनाथ धाम भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। देवघर मंदिर का इतिहास और रहस्य सदियों से भक्तों को आकर्षित करते रहे हैं।
शास्त्रों और मान्यताओं के अनुसार, देवघर मंदिर को शिव-शक्ति का मिलन स्थल माना जाता है। इसके साथ ही यह दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर हैं जहां शिव-शक्ति एकसाथ विराजमान हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा बताया गया है कि यहां माता सीता का हृदय कट कर गिरा था। इसलिए इसे हृदय पीठ भी कहा जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, जब राजा दक्ष के महायज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया तो माता सती उनसे क्रोधित हो गईं और उन्होंने इसे अपना अपमान मानते हुए अग्निकुंड में आत्मदाह कर लिया, जिसके बाद भगवान शिव क्रोधित हो गए और माता सती के मृत शरीर को अपने कंधे पर उठाकर तांडव करने लगे थे। शिव के इस क्रोध से विनाश आ जाता, ऐसे में भगवान विष्णु के चक्र से सती के शरीर के टुकड़े हो गए। शरीर का कोई भी अंग जहां-जहां गिरा, वह स्थान शक्तिपीठ कहलाया। मान्यता है कि देवघर बैद्यनाथ धाम में देवी मां का हृदय कटकर गिरा था, इसलिए इसे शक्तिपीठ भी कहा जाता है।
पुजारी बताते हैं कि यहां पहले शक्ति की स्थापना हुई और फिर शिवलिंग की स्थापना हुई। सती के ऊपर भगवान भोले का शिवलिंग स्थित है। इसलिए इसे शिव और शक्ति का मिलन स्थल भी कहा जाता है।
भक्तों का कहना है कि यह दुनिया का एकमात्र मंदिर है जहां शिव और शक्ति एक साथ मौजूद हैं। इसलिए, जब भक्त बाबा धाम आते हैं, तो वे एक बर्तन जल शिवलिंग पर और दूसरा पार्वती मंदिर में चढ़ाते हैं। यहां सच्चे मन और श्रद्धा से मांगी गई सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
वैसे तो आपने अधिकतर भगवान शिव के मंदिर में त्रिशूल लगा देखा होगा। लेकिन, देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ मंदिर परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण और सभी मंदिरों में पंचशूल लगे हैं। इसे सुरक्षा कवच माना गया है। बता दें कि मंदिर में लगे पंचशूल को महाशिवरात्रि के दो दिन पहले उतारे जाते हैं। इसके साथ ही महाशिवरात्रि से एक दिन पहले विधि-विधान के साथ उनकी पूजा की जाती है। इसके बाद फिर पंचशूलों को स्थापित कर दिया जाता है। बता दें कि इस दौरान भगवान शिव और माता पार्वती के गठबंधन को भी हटा दिया जाता है।
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