जानिए परशुराम द्वादशी 2025 की तारीख, भगवान परशुराम की पूजा विधि, व्रत का महत्त्व और इस दिन से जुड़ी पौराणिक कथा
परशुराम द्वादशी भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी को समर्पित पर्व है, जो वैशाख शुक्ल द्वादशी को मनाया जाता है। इस दिन उनकी जयंती भी मनाई जाती है। परशुराम जी को शस्त्रविद्या के महान गुरु माना जाता है। भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
हिन्दू पंचांग के अनुसार हर वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को परशुराम द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के छठवें अवतार परशुराम जी की पूजा की जाती है, और कई लोग इस दिन व्रत भी करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि वे दम्पत्ति जो संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं, परन्तु इसमें विलम्ब हो रहा है, तो उन्हें इस दिन व्रत और पूजन अवश्य करना चाहिए।
हिन्दू धर्मपुराणों में उल्लेख मिलता है कि परशुराम द्वादशी के दिन भगवान शिव ने परशुरामजी को पृथ्वी पर बढ़ रहे अधर्म का नाश करने के लिए दिव्य परशु अस्त्र प्रदान किया था। मान्यता है कि धरती ने अपने लोगों पर हो रहे अनाचार से रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु से विनती की थी। इसके फलस्वरूप उन्होंने अक्षय तृतीया के दिन ऋषि जमदग्नी और रेणुका के पुत्र परशुराम के रूप में धरती पर जन्म लिया।
आगे चलकर परशुराम ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर, भगवान शिव ने उन्हें भार्गवास्त्र (परशु) प्रदान किया, जिससे उन्होंने हैहयवंशी राजाओं का संहार किया। कहा जाता है कि इसके बाद परशुराम ने कई वर्षों तक महेन्द्रगिरि पर्वत पर तपस्या की थी।
प्राचीन काल में धरती पर हैहयवंशी क्षत्रिय राजाओं का शासन था। उनमें से एक राजा था सहस्त्रार्जुन! उसने दम्भ में चूर होकर अपनी प्रजा पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। अपने कर्मों के कारण सहस्त्रार्जुन को ऋषि वशिष्ठ के शाप का भागी बनना पड़ा था, जिससे मतिभ्रष्ट होकर उसने अधर्म के मार्ग पर चलना शुरू कर दिया।
एक बार राजा सहस्रार्जुन परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि के आश्रम पहुंचा। वहां आँगन में उसने कामधेनु नामक सुन्दर कपिला गाय को देखा, और उसके मन में उसे पाने की लालसा जाग उठी। उसने ऋषि जमदग्नि से उस कामधेनु गाय को अपने साथ ले जाने की इच्छा व्यक्त की, लेकिन ऋषि ने यह कहते हुए मना कर दिया कि “यह गाय मुझे देवराज इंद्र के द्वारा भेंट स्वरूप दी गई है। इसे मैं किसी को नहीं दे सकता।” इस बात से रुष्ट सहस्रार्जुन बलपूर्वक कामधेनु को वहां से ले गया।
जब पितृभक्त परशुराम जी को इस बात का पता चला तो उन्होंने अपने पिता के सम्मान के लिए सहस्रार्जुन से युद्ध किया और उसकी सभी भुजाएँ काटकर उसका वध कर दिया।
अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए सहस्रार्जुन के पुत्रों ने अवसर देखकर परशुराम की अनुपस्थिति में उनके पिता जमदग्नि की हत्या कर दी। परशुराम की माता रेणुका अपने पति की मृत्यु से बहुत दुखी हुई, और दुःख में आकर वे जमदग्नि की चिता में समाकर सती हो गयीं।
अपने माता पिता का इतना भयावह अंत देखकर परशुराम क्रोध की अग्नि में जलने लगे। उन्होंने संकल्प लिया कि -"मैं हैहय वंश के सभी क्षत्रियों का नाश करके इस धरती को क्षत्रिय विहीन कर दूंगा"।
कहा जाता है कि परशुराम जी ने 21 बार क्षत्रिय से युद्ध किया, और 21 बार इस धरती पर से क्षत्रियों का नाश किया था।
आप सभी को परशुराम द्वादशी की शुभकामनाएं
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