जानिए कोजागर पूजा कब है, शुभ मुहूर्त, तारीख और समय
आश्विन पूर्णिमा की रात माता लक्ष्मी की की जाने वाली पूजा को कोजागर पूजा कहते हैं। कहा जाता है कि जो भी भक्त इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करता है, तो मां लक्ष्मी स्वयं भक्तों को अपना आशीर्वाद देने धरती पर आती हैं। कोजागर व्रत कथा के अनुसार इस दिन मां लक्ष्मी की की गई पूजा उनके भक्तों के लिए काफी फलदायी होता है। जो भी भक्त ये व्रत करता है तो मां लक्ष्मी उसे कभी भी पैसों की तंगी से नहीं जूझने देतीं और ना ही उसका पूरा परिवार किसी भी तरह की परेशानी का सामना करता है।
शरद पूर्णिमा हिंदू धर्म में एक विशेष तिथि मानी गयी है। मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा वर्ष में एकमात्र ऐसा दिन होता है, जब चन्द्रमा सभी सोलह कलाओं से पूर्ण होकर अमृत वर्षा करते हैं। इसलिए शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की पूजा करने का विधान है। विवाहित स्त्रियां, जो वर्ष की हर पूर्णिमा को व्रत का संकल्प लेती हैं, वे शरद पूर्णिमा से ही उपवास प्रारम्भ करती हैं। गुजरात में शरद पूर्णिमा को शरद पूनम के नाम से मनाया जाता है।
शरद पूर्णिमा वर्ष में एकमात्र ऐसा दिन होता है, जब चन्द्रमा अपनी सभी सोलह कलाओं के साथ निकलता है एवं पृथ्वी के सबसे निकट होता है। धार्मिक एवं वैज्ञानिक दोनों ही दृष्टि से यह दिन बेहद लाभदायक माना गया है। हिंदू धर्म में, मानव का प्रत्येक गुण किसी न किसी कला से जुड़ा होता है, और यह माना जाता है कि सोलह विभिन्न कलाओं का संयोजन एक आदर्श व्यक्तित्व का निर्माण करता है।
शरद पूर्णिमा हिन्दू पंचांग में सर्वाधिक महत्व रखती है। शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रदेव की पूजा करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। यह शरद ऋतु में आती है तथा इसे अश्विन मास (सितंबर-अक्टूबर) की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस उत्सव को कौमुदी अर्थात चन्द्र प्रकाश अथवा कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। भारत के कई राज्यों में शरद पूर्णिमा को फसल कटाई के उत्सव के रूप में मनाते हैं, तथा इस दिवस से वर्षाकाल ऋतु की समाप्ति तथा शीतकाल ऋतु की शुरुआत होती है। गुजरात में शरद पूर्णिमा को शरद पूनम के नाम से भी मान्यता प्राप्त है।
इस दिन खीर का धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व - शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा से उत्पन्न होने वाली रश्मियाँ (किरणें) अद्भुत स्वास्थ्प्रद तथा पुष्टिवर्धक गुणों से भरपूर होती है, जो शरीर और आत्मा को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती हैं। साथ ही यह मान्यता भी है कि इस दिन चंद्र प्रकाश से अमृत की वर्षा होती है। श्रद्धालु इस दिन खीर बनाते हैं, और इसे चन्द्रमा के सभी सकारात्मक एवं दिव्य गुणों से परिपूर्ण करने के लिए इस खीर को चन्द्र प्रकाश के सीधे संपर्क में रखते हैं। इस खीर को प्रसाद के रूप में अगली सुबह वितरित किया जाता है।
इसके साथ ही यह भी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के चन्द्रमा की किरणें अमृतमयी होती हैं। इसीलिये इस दिव्य संयोग का लाभ उठाने के लिये, पारम्परिक रूप से शरद पूर्णिमा के दिन, गाय के दूध से बनी खीर और नेत्रों की ज्योति में वृद्धि करने वाली एक विशेष मिठाई जिसे ब्रज भाषा में इसे पाग कहते हैं- को बनाया जाता है, और पूरी रात चन्द्रमा की किरणों के नीचे रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि चन्द्रमा की किरणों से इस मिठाई में अमृत जैसे औषधीय गुण आ जाते हैं। प्रातःकाल, इस खीर का सेवन किया जाता है, और परिवार के सदस्यों में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। तथा नेत्रों की ज्योति के लिये लाभदायक मिठाई का कई दिनों तक औषधि की भाँति सेवन किया जाता है। नवविवाहित सौभाग्यवती स्त्रियाँ, जो वर्ष की प्रत्येक पूर्णिमासी को उपवास करने का संकल्प लेती हैं, वे शरद पूर्णिमा के दिन से उपवास प्रारम्भ करती हैं। यह दिवस धन की देवी, माता लक्ष्मी से भी सम्बंधित है। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा को व्रत रख कर पूर्ण रात्रि माता लक्ष्मी का पूजन करने से व्यक्ति की कुण्डली में लक्ष्मी योग नहीं होने के उपरांत भी अथाह धन तथा वैभव की प्राप्ति होती है।
बृज क्षेत्र में शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि को भगवान श्री कृष्ण ने दिव्य प्रेम का नृत्य महा-रास (आध्यात्मिक/अलौकिक प्रेम का नृत्य) किया था। प्राचीन कथाओं के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात्रि में, श्री कृष्ण की बाँसुरी का दिव्य संगीत सुनकर, वृन्दावन की गोपियाँ श्री कृष्ण के साथ नृत्य करने के लिये वन में चली गयीं। यह वह रात्रि थी जब योगीराज श्री कृष्ण ने प्रत्येक गोपी के साथ पृथक कृष्ण बनकर पृथक-पृथक नृत्य किया। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने अलौकिक रूप से इस रात्रि के समय को भगवान ब्रह्मा की एक रात्रि के बराबर कर दिया और ब्रह्मा की एक रात्रि मनुष्य के अरबों वर्षों के बराबर मानी जाती है। बृज तथा वृन्दावन में रास पूर्णिमा को वृहद स्तर पर मनाया जाता है।
शरद पूर्णिमा के अवसर पर ब्रजघाट गंगानगरी में लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ आस्था की डुबकी लगाकर पुण्य का लाभ अर्जित करती है। श्रद्धालु इस पूर्णिमा पर निष्ठा के साथ गंगा मैया में डुबकी लगाकर पापों से मुक्त होकर मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं। इस पावन अवसर पर गरीब-निराश्रितों को भोजन-वस्त्र का दान करने का भी विशेष महत्व है।
इस प्रकार इस लेख में आपने शरद पूर्णिमा पर्व से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों के साथ ही इस पर्व का महत्व जाना भी। हमें उम्मीद है कि आज का यह लेख आपके लिए जानकारी से पूर्ण रहा होगा। यदि यह लेख आपको अच्छा लगा हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें, ताकि वह भी शरद पूर्णिमा से जुड़ी तमाम बातें जान सकें और इस पर्व के महत्व से अवगत हो सकें।
भारत के कई स्थानों पर शरद पूर्णिमा के शुभ अवसर पर देवी लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु, और चन्द्रमा की पूजा की जाती है। यहां हम आपको बताएंगे, कि आप सरलता से अपने घर पर शरद पूर्णिमा की पूजा कैसे करें।
इस शरद पूर्णिमा पर यह सरल पूजा करके आप माता लक्ष्मी से वैभव का आशीर्वाद प्राप्त कर सकेंगे। साथ ही चंद्रदेव की पूजा करने से जीवन में उत्पन्न हुए चंद्रदोष से भी मुक्ति मिलेगी।
वैसे तो हर साल आने वाले व्रत-पर्व के अनुष्ठान में शरद पूर्णिमा को विशेष महत्व दिया जाता है, क्योंकि इस दिन को धन की देवी माँ लक्ष्मी का जन्मदिवस माना जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसीलिए इस दिन माता लक्ष्मी का पूजन अवश्य करें,
और साथ ही इस दिन श्री सूक्तम अथवा लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें व महालक्ष्मी मन्त्र का 108 बार जाप भी इस दिन शुभ फलदायक होता है।
शरद पूर्णिमा पर अपने घर में सत्यनारायण की कथा करवाने से आपके घर में वास कर रही सभी नकारात्मक ऊर्जाएं दूर होंगी और आपको लक्ष्मीनारायण की कृपा-दृष्टि प्राप्त होगी।
इस शरद पूर्णिमा पर देवों के कोषाध्यक्ष कहे जाने वाले कुबेर देव की पूजा अवश्य करें। माँ लक्ष्मी के साथ भगवान कुबेर की पूजा करने से आपके घर में समृद्धि का वास बना रहता है।
इस पूर्णिमा पर चंद्रोदय के बाद चन्द्रमा की पूजा अवश्य करें। चंद्रदेव की कृपा से आपको और आपके परिवार को आरोग्य का आशीष प्राप्त होगा।
शरद पूर्णिमा पर चाँद की किरणों से होने वाली अमृत वर्षा आपके परिवार को सभी रोग-दोषों से मुक्त रखेंगी।
इसके साथ ही भारत के कई हिस्सों में इस दिन से कार्तिक स्नान का प्रारंभ भी होगा। एक बात और! इस दिन जरूरतमंदों को दान करना न भूलें। दान से आपको अनन्य पुण्य की प्राप्ति होगी और इससे संपन्नता आपके घर में सदा के लिए निवास करेगी।
हमारे हिंदू धर्म में एक पर्व ऐसा भी है, जिससे जुड़ी हुई यह मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा से धरती पर अमृत की वर्षा होती है। हम बात कर रहे हैं शरद पूर्णिमा की, जिसे धार्मिक दृष्टिकोण से बेहद अद्भुत और चमत्कारी माना गया है। इस पर्व के साथ ही इससे जुड़ी सभी परम्पराएँ भी काफी ख़ास और महत्वपूर्ण हैं। ऐसी ही एक परंपरा है इस दिन खीर बनाकर चंद्रमा के प्रकाश में रखने की।
आखिरकार क्या है इससे जुड़ा हुआ रहस्य और क्यों है यह आपके लिए महत्वपूर्ण, ऐसे सभी ज़रूरी प्रश्नों का उत्तर हम आपके लिए लेकर आए हैं, चलिए इस लेख में जानते हैं कि-
शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है और पृथ्वी के काफी नज़दीक होता है। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन चंद्रमा का प्रकाश इतना गुणकारी होता है कि इसकी तुलना अमृत से की गई है।
अगर धार्मिक दृष्टिकोण से इस दिन की पवित्रता को समझना चाहें तो कई कथाओं में आप जान पाएंगे कि इसी दिन समुद्र मंथन में अमृत निकला था, और लक्ष्मी जी का अवतरण हुआ था। इतने शुभ दिन पर मानिए चंद्र देव अपना अमृत रूपी प्रकाश से समस्त मानवजाति को लाभांवित करते हैं।
उनके प्रकाश में घुले हुए अमृत की प्राप्ति के लिए रात में खीर को चंद्रमा की रौशनी में रख दिया जाता है। अगर ज्योतिष शास्त्र के अनुसार देखें तो खीर में उपयोग होने वाली मुख्य सामग्री, दूध, चावल और मिश्री का भी संबंध चंद्रमा से है।
यह तो हमने जान लिया कि शरद पूर्णिमा में क्यों खीर को चंद्रमा की रौशनी में रखा जाता है, अब हम जानेंगे कि इसका महत्व क्या है और इससे आपको क्या लाभ मिलेंगे-
शास्त्रों में इस दिन चंद्रमा की रौशनी को विभिन्न प्रकार से ग्रहण करना बेहद लाभदायक माना गया है। इस दिन चंद्रमा के प्रकाश में समय व्यतीत करना व्यक्ति के मन को शांति और निर्मलता तो प्रदान करता ही है, लेकिन इस दिन चंद्रमा के उजाले में रखी गई खीर को ग्रहण करना व्यक्ति के जीवन में कई लाभों की सौगात लेकर आता है।
मान्यताओं के अनुसार, चंद्रमा की रोशनी खीर में घुलकर उसे इतना गुणकारी बना देती है कि इससे व्यक्ति को आरोग्य रूपी धन की प्राप्ति होती है। आर्युवेद में पित्त संबंधी परेशानियों को दूर करने के लिए भी इस खीर को फायदेमंद माना गया है। औषधीय गुणों के साथ इसे चंद्रदेव के आशीष के रूप में भी ग्रहण किया जा सकता है, जिससे व्यक्ति को सुख और शांति की प्राप्त होती है।
गर्भवती महिलाओं के लिए भी इस पर्व को खास माना गया, है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि चंद्र के प्रकाश से उन्हें स्वस्थ संतान की प्राप्ति होती है।
अब लेख में आगे जानते हैं कि इसे किस समय खुले आसमान में रखना चाहिए और कब ग्रहण करना चाहिए-
इस वर्ष शरद पूर्णिमा 9 अक्टूबर को पड़ेगी, चूंकि इसी तिथि पर चंद्रमा की रोशनी में खीर को रखना होता है, इसलिए आप इस दिन रात के समय में चंद्रोदय के बाद खीर को खुले आसमान में छलनी ढक कर रख दीजिए। अगले दिन 10 तारीख को सुबह स्नान के पश्चात् इस खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण करें और अपने परिवारजनों में भी वितरित करें।
अगर संभव हो पाए तो खीर को चांदी के पात्र में रखें, अगर पात्र न हो तो खीर में चांदी के सिक्के या चम्मच भी डाल सकते हैं। अगर इनमें से कुछ भी नहीं हो तो मिट्टी के पात्र में भी खीर रख सकते हैं। खीर में चीनी की जगह मिश्री का प्रयोग करें और गाय के दूध का इस्तेमाल करें। साथ ही खीर में थोड़ा सा गाय के दूध का घी ज़रूर डालें, इससे खीर अत्यधिक गुणकारी हो जाती है। संभव हो पाए तो इस दिन रात्रि जागरण करें।
इन सबसे अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी है अगर कोई इस दिन खीर नहीं बना पा रहा है तो उन्हें क्या करना चाहिए?
अगर आप किसी कारण वश खीर नहीं बना सकते तो एक पात्र में केवल दूध रखकर भी अपनी बालकनी में रात भर के लिए रख सकते हैं, इससे भी चंद्रमा का अमृत रुपी प्रकाश आप दूध के माध्यम से ग्रहण कर सकते हैं।
तो यह था शरद पूर्णिमा के पावन पर्व पर खीर का महत्व और इससे जुड़ी सभी महत्वपूर्ण बातें, ऐसी ही अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां श्रीमंदिर पर उपलब्ध हैं, उनका लाभ आप ज़रूर उठाएं।
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