
विश्वेश्वर व्रत: जानें कथा, विधि व महत्व, भगवान शिव की कृपा से पाएं सुख-शांति और समृद्धि का आशीर्वाद।
भगवान शिव को विश्वनाथ या विश्वेश्वर भी कहा जाता है और हिन्दू धर्म में उनको समर्पित व्रत की बहुत मान्यता है। यही वजह है, कि इस व्रत को भी विश्वेश्वर व्रत कहा जाता है। यह व्रत प्रदोष व्रत के दिन किया जाता है, जो कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष में अंतिम पांच दिन भीष्म पंचक में तीसरे दिन होता है।
विश्वेश्वर व्रत भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है। भगवान शिव को “विश्वेश्वर” नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि वे संपूर्ण विश्व के ईश्वर हैं — सृष्टि, पालन और संहार, तीनों में समान रूप से स्थित हैं।
यह व्रत कर्नाटक के येलुरु स्थित श्री विश्वेश्वर मंदिर से भी जुड़ा हुआ है। मान्यता के अनुसार, भगवान शिव ने स्वयं इस स्थान पर शिवलिंग के रूप में प्रकट होकर राजा कुंडा को दर्शन दिए थे। तब से इस दिन भगवान विश्वेश्वर की विशेष पूजा का विधान चला आ रहा है। भक्त इस व्रत के माध्यम से भगवान से अपने जीवन की सभी बाधाओं को दूर करने, स्वास्थ्य, शांति और समृद्धि की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। इस व्रत के दौरान भगवान शिव का रुद्राभिषेक करवाना और नारियल चढ़ाना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
विश्वेश्वर व्रत का धार्मिक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टि से अत्यंत महत्व है। इस व्रत को करने से:
येलुरु विश्वेश्वर मंदिर में इस दिन भगवान का फूलों से श्रृंगार किया जाता है और भक्त अपने वजन के बराबर नारियल चढ़ाते हैं। यह परंपरा राजा कुंडा की उस कथा से जुड़ी है जिसमें उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए नारियल जल चढ़ाया था। धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत करने वाला व्यक्ति भगवान शिव की कृपा से जीवन में आने वाले हर संकट को सहजता से पार कर लेता है
विश्वेश्वर व्रत की पूजा भगवान शिव के विश्वेश्वर रूप की आराधना के लिए की जाती है। पूजा में प्रयुक्त सामग्री इस प्रकार है — मुख्य पूजन सामग्री सूची:
यह व्रत पूर्ण श्रद्धा और विधि-विधान से किया जाता है। नीचे क्रमवार पूजा विधि दी गई है —
विश्वेश्वर व्रत भगवान शिव के विश्वनाथ स्वरूप को समर्पित एक पवित्र व्रत है। इस व्रत में शुद्धता, संयम और भक्ति का पालन अत्यंत आवश्यक होता है। नीचे व्रत के मुख्य नियम दिए गए हैं –
भगवान शिव “आशुतोष” कहलाते हैं, अर्थात जो शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। विश्वेश्वर व्रत के दिन इन उपायों से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त की जा सकती है:
विश्वेश्वर व्रत के दिन कुछ विशेष धार्मिक उपाय करने से जीवन की बाधाएँ दूर होती हैं और भगवान शिव की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।
विश्वेश्वर व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भक्ति, आत्मसंयम और शिव कृपा प्राप्त करने का माध्यम है। जो भक्त इस दिन नियमपूर्वक उपवास, जप, दान और पूजा करता है, उसे भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त होती है। इस व्रत से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं और सुख, शांति तथा समृद्धि की प्राप्ति होती है।
बहुत समय पहले कुथार राजवंश में एक शूद्र राजा हुआ करते थे, जिन्हें कुंडा राजा के नाम से जाना जाता था। एक समय की बात है, राजा ने भार्गव मुनि को अपने राज्य में आने का निमंत्रण भेजा था। लेकिन उन्होंने उस निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया। आपको बता दें, कि मुनि ने राजा से कहा कि आपके राज्य में मंदिरों और पवित्र पावन नदियों का अभाव है। मुनि को कार्तिक पूर्णिमा से पहले भीष्म पंचक के पांच दिन के त्यौहार में तीसरे दिन पूजा करने के लिए उचित स्थान की आवश्यकता होती है, जिसका उन्हें राजा कुंडा के राज्य में अभाव लग रहा है।
राजा कुंडा को जब इस बात का पता लगा, तो वह इस बात से बहुत परेशान हुए। तब भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने अपना राज्य अपने सहायक के हवाले कर दिया और खुद राज्य छोड़ गंगा नदी के किनारे तपस्या करने के लिए चले गए। उन्होंने नदी किनारे एक महान यज्ञ का अनुष्ठान किया था और इस प्रकार भगवान शिव की आराधना की। तब भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और राजा से वरदान मांगने को कहा। तब राजा ने भगवान शंकर से उनके राज्य में रहने की इच्छा जताई, जिसे भगवान भोलेनाथ ने स्वीकार कर लिया।
उस समय भगवान शंकर राजा कुंडा के राज्य में एक कंद के पेड़ में रहने लगे थे। एक दिन एक आदिवासी स्त्री वहां जंगल में अपने खोए हुए बेटे को ढूंढ रही थी, जो वहीं जंगल में खो गया था। उस स्त्री ने वहां कंद के वृक्ष के पास जाकर उस पर अपनी तलवार से प्रहार किया। तलवार लगते ही उस वृक्ष से खून बहने लगा था। बहते हुए खून को देखकर उस स्त्री ने समझा, कि वह कंद नहीं बल्कि उसका पुत्र है और उसका नाम ‘येलु’,‘येलु’ पुकारने लगी तथा जोर-जोर से रोने लगी। तभी उस स्थान पर भगवान शिव लिंग के रूप में प्रकट हुए थे और तभी से यहां पर बने मंदिर को येलुरु विश्वेश्वर मंदिर कहा जाने लगा था।
उस स्त्री द्वारा तलवार से किए गए प्रहार से शिवलिंग पर एक निशान पड़ गया था। ऐसा कहते हैं, कि वह निशान आज भी येलुरु श्री विश्वेश्वर मंदिर में स्थापित शिवलिंग में देखा जा सकता है। यह भी माना गया है, कि कुंडा राजा ने प्रहार के स्थान पर नारियल पानी डाला था तभी कंद का खून बहना बंद हुआ था। इसलिए आज भी यहां भगवान शिव को नारियल पानी या नारियल का तेल चढ़ाने का विधान है। इसके अलावा, भगवान को चढ़ाया गया तेल मंदिर में दीपक जलाने के काम में लिया जाता है।
यह थी भगवान भोलेनाथ को समर्पित विश्वेश्वर व्रत की संपूर्ण जानकारी। उम्मीद है यह लेख भगवान शिव की आराधना के साथ-साथ व्रत का अनुष्ठान करने में आपके लिए उपयोगी होगा। ऐसे ही अन्य पर्व, उत्सव, त्योहारों के विषय में अवगत होने के लिए जुड़े रहिए श्री मंदिर के साथ।
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