
वृश्चिक संक्रांति 2025: जानें कब है, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि। इस पवित्र दिन के विशेष लाभ पाएं!
कार्तिक मास में जब भगवान सूर्य 'तुला राशि' से 'वृश्चिक राशि' में गोचर करते हैं, तो उस संक्रांति को वृश्चिक संक्रांति कहा जाता है। इस संक्रांति के अवसर पर सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद सूर्य देव की पूजा करें। तांबे के लोटे में पानी डालकर उसमें लाल चंदन, रोली, हल्दी और सिंदूर मिलाकर भगवान सूर्य को अर्पित करें।
जब भगवान सूर्य तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में प्रवेश करते हैं, तब उस दिन को वृश्चिक संक्रांति कहा जाता है। यह परिवर्तन हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के आसपास होता है। इस दिन सूर्य के राशि परिवर्तन के साथ ही ऋतु परिवर्तन का भी संकेत मिलता है, और यह समय दान, स्नान, और सूर्य उपासना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
जब सूर्य वृश्चिक राशि में गोचर करते हैं, तो उस दिन को वृश्चिक संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। इस समय सूर्य बुध प्रधान वृश्चिक राशि में जाते हैं। इस तरह वृश्चिक राशि में बुध और सूर्य का मिलन होता है, जिसे बुधादित्य योग का निर्माण कहा जाता है। इस संक्रांति के अवसर पर स्नान व दान करने का विशेष विधान है। इस दिन भगवान सूर्यदेव की उपासना के साथ-साथ भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने का भी विधान है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:31 ए एम से 05:23 ए एम |
प्रातः सन्ध्या | 04:57 ए एम से 06:16 ए एम |
अभिजित मुहूर्त | 11:21 ए एम से 12:04 पी एम |
विजय मुहूर्त | 01:32 पी एम से 02:15 पी एम |
गोधूलि मुहूर्त | 05:10 पी एम से 05:36 पी एम |
सायाह्न सन्ध्या | 05:10 पी एम से 06:28 पी एम |
अमृत काल | 07:32 पी एम से 09:18 पी एम |
निशिता मुहूर्त | 11:17 पी एम से 12:09 ए एम, नवम्बर 17 |
द्विपुष्कर योग | 02:11 ए एम, नवम्बर 17 से 04:47 ए एम, नवम्बर 17 |
मुहूर्त | समय |
सर्वार्थ सिद्धि योग | 06:16 ए एम से 02:11 ए एम, नवम्बर 17 |
अमृत सिद्धि योग | 06:16 ए एम से 02:11 ए एम, नवम्बर 17 |
सभी संक्रांतियों की तरह वृश्चिक संक्रांति का भी विशेष महत्व है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करके धर्म-कर्म दान-पुण्य आदि करते हैं। इसके अलावा, वृश्चिक संक्रांति पर जातक अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए भी कई अनुष्ठान करते हैं। वृश्चिक संक्रांति पर सूर्यदेव की पूजा करने और श्रद्धापूर्वक सूर्य मंत्रों का जप करने से असंख्य पुण्यफल प्राप्त होते हैं।
वृश्चिक सक्रांति के अवसर पर भगवान विश्वकर्मा की उपासना करने का भी विधान है। विश्वकर्मा पूजा का ये पर्व देश के कई क्षेत्रों में मनाया जाता है। कहा जाता है कि देवों के महल और शस्त्र आदि का निर्माण विश्वकर्मा द्वारा ही किया गया था। पौराणिक मान्यता ये है कि ब्रह्मा जी के आदेश पर ही भगवान विश्वकर्मा ने इस दुनिया की रचना की थी।
इस दिन कारखानों और कार्यालयों में भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति स्थापना करके विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस दिन लोग अपने घरों में लोहे की चीज़ों, जैसे तराजू, गाड़ी, साइकिल आदि को साफ करके, उसे गंगा जल से स्नान कराकर उसकी पूजा-अर्चना करते हैं, और भगवान विश्वकर्मा से सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
कहते हैं कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा से कार्यक्षेत्र में तरक्की मिलती है।
ज्योतिष शास्त्र में, सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में गोचर करने को संक्रांति के नाम से जाना जाता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार पूरे साल में बारह संक्रान्तियां होती हैं। हर राशि में सूर्य के प्रवेश करने पर उस राशि का संक्रांति पर्व मनाया जाता है। संक्रांति पर सूर्य देव की पूजा का विधान है।
इस माह 16 नवंबर, शनिवार को सूर्यदेव वृश्चिक राशि में गोचर कर रहें हैं, और इस दिन को वृश्चिक संक्रांति के नाम से मनाया जाएगा।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य का किसी राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है। इस प्रकार सूर्य के वृश्चिक राशि में प्रवेश करने को वृश्चिक संक्रांति कहते हैं। इस दिन जहां सूर्य देव की पूजा अर्चना करने से अनेकों फल प्राप्त होते हैं, वहीं कुछ ऐसे कार्य हैं, जिन्हें संक्रांति में करना वर्जित माना जाता है।
भक्तों यह थी वृश्चिक संक्रांति पर ध्यान रखें जाने वाली सावधानियों की जानकारी। हम आशा करते हैं कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी।
वृश्चिक संक्रांति का पर्व हर वर्ग, हर आयु, और हर धर्मपरायण व्यक्ति मना सकता है। इस पूजा के लिए किसी विशेष जाति या पंथ की बाध्यता नहीं है।
गृहस्थ लोग - पारिवारिक सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए पूजा करते हैं। व्यवसायी वर्ग - अपने कार्यक्षेत्र में वृद्धि और सफलता के लिए भगवान विश्वकर्मा की उपासना करते हैं। कर्मचारी वर्ग - नौकरी में स्थिरता और पदोन्नति की कामना से सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं। विद्यार्थी - ज्ञान, एकाग्रता और आत्मबल की प्राप्ति के लिए सूर्य मंत्रों का जाप करते हैं। महिलाएं - परिवार की सुख-शांति, संतान की उन्नति और आरोग्य की प्रार्थना करती हैं।
संक्षेप में, सच्चे मन से पूजा करने वाला कोई भी व्यक्ति वृश्चिक संक्रांति के पुण्य का अधिकारी बन सकता है।
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