श्राद्ध का दसवां दिन

श्राद्ध का दसवां दिन

8 अक्टूबर, 2023 जानें श्राद्ध के दसवें दिन का महत्व


श्राद्ध का दसवां दिन( Tenth Day of Shraddha)

श्राद्ध के दसवें दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु दशमी तिथि को हुई होती है। इस दिन जो व्यक्ति श्राद्ध करता है उसे जीवन में कभी भी लक्ष्मी की कमी नहीं होती है। उस व्यक्ति के पास धन सम्पदा सदैव बनी रहती है।

दसवें श्राद्ध का महत्व (Importance of Tenth Shraddha)

हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्त्व रहता है। पितृ पक्ष अर्थात श्राद्ध पक्ष में पितरों को पिंडदान और तर्पण किया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्राद्ध कर्म करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यदि श्राद्ध कर्म विधि विधान के साथ किया जाता है तो इससे पितर प्रसन्न होते है और वह श्राद्ध कर्ता को आशीर्वाद भी देते है। जिससे परिवार में सुख समृद्धि बनी रहती है। जीवन सुखमय हो जाता है। परन्तु यदि श्राद्ध कर्म के दौरान गलतियां की जाती है तो इससे पितृ नाराज़ भी हो सकते है। जिस कारण परिवार पर पितृ दोष लग जाता है। इसलिए किसी योग्य ब्राह्मण को बुलाकर श्राद्ध कर्म करने का विधान है।

दसवें श्राद्ध की तिथि और शुभ मुहूर्त(Date and auspicious time of Tenth Shraddha)

दशमी श्राद्ध - दशवां श्राद्ध दशमी तिथि आरम्भ - 08 अक्टूबर , 2023 को सुबह 10:12 बजे दशमी तिथि की समाप्ति - 09 अक्टूबर, 2023 को दोपहर 12:36 बजे दशमी श्राद्ध रविवार, 08 अक्टूबर, 2023 का शुभ मुहूर्त कुतुप मूहूर्त - सुबह 11:45 बजे से दोपहर 12:32 बजे तक अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट रौहिण मूहूर्त - दोपहर 12:32 बजे से दोपहर 01:19 बजे तक अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट अपराह्न काल - दोपहर 01:19 बजे से दोपहर 03:39 बजे तक अवधि - 02 घण्टे 20 मिनट

दसवें श्राद्ध की कहानी (Story of Tenth Shraddha)

पितृ पक्ष की पौराणिक कथा महाभारत काल से जुडी है। दानवीर कर्ण के विषय में सब जानते हैं कि वह देवी कुंती के सबसे बड़े पुत्र हैं। कर्ण ने अपने सम्पूर्ण जीवन में गरीबों और जरूरतमंदों को खूब दान दिया था परन्तु उन्होंने उन्हें पैसा और सोना दान किया। जो भी व्यक्ति उनके दर पर आता वह उन्हें खाली हाथ नहीं भेजता था। सोना, चांदी और आभूषण यह सब वह दान करता था पांच कभी भी उन्होंने अन्न का दान नहीं किया। जब उनकी मृत्यु हुयी तो वह स्वर्ग में गए। उन्हें वहां पर खाने के लिए सोना और चांदी दिया गया। इसपर कर्ण ने इंद्र से पूछा कि मुझे भोजन क्यों नहीं दिया जा रहा है। मैं इसे कैसे खा सकता हूँ ? तब इन्द्र देव ने बताया की उन्होंने कभी भी पितरों को भोजन दान नहीं किया है। इसकारण उन्होंने जो दान किया था वहीँ उन्हें भी दिया गया। कर्ण ने कहा कि मुझे इस बारे में ज्ञान नहीं था। मैं अपनी गलती को सुधारना चाहता हूँ।

तब इंद्रदेव ने कर्ण को 15 दिनों के लिए पृथ्वी पर भेजा। ताकि वह अपने पितरों का पिंडदान और तर्पण कर सकें। कारण ने पृथ्वी पर आकर विधिवत रूप से श्राद्ध कर्म किया। और भी वह स्वर्ग लोक आये। जहाँ उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुयी। तभी से श्राद्ध कर्म करने का विधान शुरू हो गया।

दसवें श्राद्ध की विधि(Method of Tenth Shraddha)

गया में श्राद्ध करने का विधान है। लेकिन यदि ऐसा संभव नहीं हो पाता है तो घर पर भी श्राद्ध कर सकते है। इसमें पितरों को तृप्त करने हेतु पिंडदान और तर्पण किया जाता है। साथ भी ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है। श्राद्ध तिथि के दिन सबसे पहले सूर्य निकलने से पहले स्नान करना चाहिए। इसके बाद साफ वस्त्र पहनना चाहिए। इसके बाद ही श्राद्ध कर्म करना चाहिए और दान देना चाहिए। इस गाय,कुत्ता ,चींटी और कौआ को भी भोजन कराना चाहिए। क्योंकि शास्त्रों में ऐसा माना जाता है कि इन्हे भोजन कराने से पितरों की आत्मा भी तृप्त हो जाती है। और वह आशीर्वाद देते है।

दसवें श्राद्ध से जुड़े रहस्य (Mysteries related to Tenth Shraddha)

बुजुर्ग कहते है कि कौवे का घर पर आना शुभ नहीं होता है। इसलिए कौआ को घर पर बैठने पर वहां से हटा दिया जाता है। परन्तु पितृ पक्ष के समय कौवे को खाना खिलाना शुभ माना जाता है। इसके पीछे भी पौराणिक मान्यता है कि यदि पितृ पक्ष में कौआ ने खाना खा लिया तो इससे पितृ तृप्त हो जाते हैं। कौवे द्वारा किया गया भोजन सीधे पितरों को मिलता है। इसलिए श्राद्ध के समय कौवे को भोजन कराया जाता है। ये पौराणिक कथा के अनुसार सबसे पहले इन्द्र के पुत्र जयन्त ने कौवे का रूप धारण किया था। जब भगवान श्रीराम ने धरती पर अवतार लिया तब जयंत ने कौए के रूप में माता सीता के पैर पर चोंच मारा था। उसके ऐसा करने पर भगवान श्रीराम ने तिनके का बाण चलाया और जयंत की आंख फोड़ दी। जब जयंत ने इसने इस कार्य के लिए माफी मांगी तो राम जी ने उसे वरदान दिया कि तुम्हें अर्पित किया गया भोजन पितरों को मिलेगा। तब से श्राद्ध के दौरान कौवों को भोजन कराने की परंपरा चली आ रही है। इस कारण ही श्राद्ध पक्ष में कौवों को सबसे पहले भोजन कराया जाता है।

दसवें श्राद्ध में क्या करें( What to do on the Tenth Shraddha)

  • पितरों के निमित गीता पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से पितरों को मोक्ष मिलता है।
  • यदि संभव हो सके तो श्राद्ध कर्म को नदी के किनारे करना चाहिए। शास्त्रों में नदी के किनारे किया गया श्राद्ध कर्म शुभ माना जाता है।
  • अपने पितरों की पसंद का भोजन बनाकर उसे ब्राह्मण को खिलाना चाहिए और अपने सामर्थ्य के अनुसार उन्हें दान देकर खुश करना चाहिए।
  • पितरों को जल देते समय आप इस मंत्र का उच्चारण भी कर सकते है। “अस्मत्पितामह वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः”

दसवें श्राद्ध में क्या न करें(What not to do in the Tenth Shraddha)

श्राद्ध कर्म के समय लहसुन,प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए। साथ ही मांस , मदिरा का भी सेवन नहीं करना चाहिए। शाकाहारी भोजन में भी खीरा, सरसों का साग और कद्दू की सब्जी नहीं बनानी चाहिए। शुभ कार्य करने से भी बचना चाहिए। आप इसे बाद में कर सकते हैं।

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