श्राद्ध का तेरहवां दिन

श्राद्ध का तेरहवां दिन

11 अक्टूबर, 2023 जानें श्राद्ध के तेरहवें दिन का महत्व


श्राद्ध का तेरहवां दिन( Thirteenth Day of Shraddha)

तेरहवां श्राद्ध के दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु त्रयोदशी को हुई होती है। इसके अलावा नवजात बच्चों की मृत्यु का श्राद्ध भी इस दिन किया जाता है। इस दिन श्राद्ध कर्ता को दीर्घायु, ऐश्वर्य, श्रेष्ठ बुद्धि आदि की प्राप्ति होती है।

तेरहवें श्राद्ध का महत्व (Importance of Thirteenth Shraddha)

श्राद्ध पक्ष को पितृ पक्ष और महालय भी कहते हैं । पितृ पक्ष के समय हमारे पूर्वज सूक्ष्म रूप से पृथ्वी पर आते है। और उनके नाम से किये गए तर्पण और पिंडदान को स्वीकार करते हैं। ऐसा करने से पितरों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है साथ ही उन्हें मोक्ष भी प्राप्त होता है। पितर प्रसन्न होकर अपने वंश को आशीर्वाद देते है। जिससे घर में सुख शांति और समृद्धि बनी रहती है। वंश आगे बढ़ता है। इसलिए देवताओं से पहले पितृ पूजा को महत्त्व दिया गया है। श्राद्ध नहीं करने से पितृ दोष लगता है जो अत्यंत दुखदाई होता है। जिस भी परिवार में पितृ दोष रहता है। वह धन, सम्पति, वैभव से विहीन रहता है। उसका कुल नहीं बढ़ता। साथ ही परिवार में सदैव क्लेश बना रहता है। इसलिए श्राद्ध कर्म करना जरुरी है।

तेरहवें श्राद्ध की तिथि और शुभ मुहूर्त(Date and auspicious time of Thirteenth Shraddha)

त्रयोदशी श्राद्ध - तेरहवां श्राद्ध त्रयोदशी तिथि आरम्भ - 11 अक्टूबर, 2023 को शाम 05:37 बजे त्रयोदशी तिथि की समाप्ति - 12 अक्टूबर, 2023 को शाम 07:53 बजे त्रयोदशी श्राद्ध बृहस्पतिवार, 12 अक्टूबर, 2023 का शुभ मुहूर्त कुतुप मूहूर्त - दोपहर 11:44 बजे से दोपहर 12:31 बजे तक अवधि - 00 घण्टे 46 मिनट रौहिण मूहूर्त - दोपहर 12:31 बजे से दोपहर 01:17 बजे तक अवधि - 00 घण्टे 46 मिनट अपराह्न काल - दोपहर 01:17 बजे से दोपहर 03:36 बजे तक अवधि - 02 घण्टे 19 मिनट

तेरहवें श्राद्ध की कहानी (Story of Thirteenth Shraddha)

श्राद्ध की कहानी महाभारत काल से चली आ रही है। जब से श्राद्ध की शुरुआत हुयी थी। तभी से सम्पूर्ण जगत इस श्राद्ध को करता आ रहा है। और अपने पितरों को मोक्ष की प्राप्ति करता आ रहा है। कथा के अनुसार जब कर्ण की मृत्यु हुयी तो उनकी आत्मा स्वर्ग पहुंची। वहां पहुंच कर जब उन्हें भूख लगी तो उन्हें खाने में सोना और चांदी दिया गया। यह देखकर कर्ण ने कहा कि यह क्या है इसे कैसे खाया जा सकता है ? इस पर देवराज इंद्र ने उन्हें बताया कि उन्होंने अपने जीवन में लोगों और जरूरतमंद व्यक्तियों को केवल सोने और चाँदी का दान दिया है। उन्होंने कभी भी भोजन का दान किसी को भी नहीं दिया है। इस कारण उनपर पितृ ऋण शेष है। यह सुनकर कर्ण ने कहा की उन्हें उनके पूर्वजों के विषय में कुछ पता नहीं है। जिस कारण वह पितृ ऋण से मुक्त नहीं हो पाया। कर्ण ने अपनी गलती को सुधारने के लिए इंद्र से विनती की। तब इन्द्र ने उन्हें 15 दिनों के लिए पृथ्वी पर भेजा। पृथ्वी पर आकर कर्ण के अपने पितरों के निमित तर्पण किया और भोजन कराया। इसके बाद वह मोक्ष को प्राप्त हुए। तभी से श्राद्ध करने की प्रथा चली आ रही है।

तेरहवें श्राद्ध की विधि(Method of Thirteenth Shraddha)

  • जब भी श्राद्ध करें तो किसी योग्य ब्राह्मण को बुलाकर श्राद्ध करना चाहिए। ताकि साल में एक बार आने वाला इस दिन का कार्य विधिवत तरीके से पूर्ण हो सके।
  • श्राद्ध वाले दिन सुबह स्नान करके साफ वस्त्र धारण करना चाहिए।
  • इसके बाद श्राद्ध का भोजन एक थाली में रखना चाहिए और उस भोजन को अपने मृत परिजन की फोटो के सामने रखना चाहिए। साथ ही भोजन का कुछ भाग गाय, चींटी, कुत्ता और कौआ के लिए निकालना चाहिए।
  • इसके बाद अपने पूर्वजों का स्मरण कर उन्हें भोजन ग्रहण करने का आग्रह करना चाहिए। इसके बाद जल से तर्पण करना चाहिए।
  • श्राद्ध कर्म होने के बाद घर पर आमंत्रित किये गए ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए।
  • याद रखिये की आप ब्राह्मण को जो भोजन खिला रहे है वह लोहे की थाली में ना दें। श्राद्ध कार्य में लोहे की सामग्री को वर्जित माना गया है।
  • फिर ब्राह्मण को भोजन कराकर उन्हें यथाशक्ति दान और दक्षिणा देनी चाहिए। इसके बाद भोजन का निकाला गया भाग गाय, कुत्ते और कौवे को खिलाना चाहिए।
  • फिर बाद में परिवार परिवार के सभी सदस्यों को भोजन करना चाहिए।

तेरहवें श्राद्ध से जुड़े रहस्य (Mysteries related to Thirteenth Shraddha)

श्राद्ध पक्ष पूर्वजों का सम्मान करने के लिए होते हैं। इस दौरान लोग अपने दिवंगत प्रियजनों हेतु प्रार्थना करते हैं। लोग अपने पूर्वजों के नाम पर ब्राह्मणों को भोजन और वस्त्र दान करते है। ब्राह्मणो के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लेते है। ऐसा भी माना जाता है कि जो व्यक्ति श्राद्ध करता है। और उसके पूर्वजों द्वारा आशीर्वाद में उन्हें जो चीजे प्राप्त होती है वह कभी नष्ट नहीं होती है।

तेरहवें श्राद्ध में क्या करें( What to do on the Thirteenth Shraddha)

श्राद्ध कर्म को विधिविधान के साथ करना चाहिए तभी यह पूर्ण होता है और इसका फल मिल पाता है। श्राद्ध के दौरान अपने पूर्वजो को याद करना चाहिए साथ ही उनके प्रति श्राद्ध भाव रखना चाहिए। ताकि उनकी आत्मा यह देखकर प्रसन्न हो और उन्हें शांति मिल सके। यदि संभव हो सके तो श्राद्ध को किसी नहीं के किनारे करना छाइये। नहीं के किनारे श्राद्ध करना पवित्र माना गया है।

तेरहवें श्राद्ध में क्या न करें(What not to do in the Thirteenth Shraddha)

श्राद्ध कर्ता को बाल,दाढ़ी और नाख़ून नहीं कटवाने चाहिए। ऐसा करने से धन की हानि हो जाती है। शाम और रात के समय श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए। ऐसा करना शास्त्रों में वर्जित माना जाता है। श्राद्ध पक्ष के दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, जनेऊ, गृह प्रवेश आदि नहीं करना चाहिए। नए कपडे भी नहीं खरीदने चाहिए और ना ही नए कपडे पहनने चाहिए। श्राद्ध के समय ब्राह्मण के भोजन करने से पहले भोजन नहीं करना चाहिए। श्राद्ध के दौरान यदि कौआ आपके घर आता है तो उसे भागना नहीं चाहिए बल्कि उसे भोजन कराना चाहिए। क्योंकि माना गया है कि पितर कौआ के रूप में भोजन ग्रहण करने आते है।

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