तीसरा श्राद्ध

तीसरा श्राद्ध

1 अक्टूबर, 2023 जानें श्राद्ध के तीसरे दिन का महत्व


श्राद्ध का तीसरा दिन (Third Day of Shraddha)

श्राद्ध के तीसरे दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध होता है जिनकी मृत्यु तृतीया तिथि को हुई हो। तिथि के अनुसार श्राद्ध कर्म करने से पितृदोष नहीं लगता है। विधिवत रूप से तृतीय श्राद्ध करने से सुख समृद्धि, धन, स्वाथ्य आदि प्राप्त होता है।

तीसरे श्राद्ध का महत्व (Importance of third Shraddha)

प्राचीन साहित्य के मुताबिक बताया गया है कि पितर सावन महीने की पूर्णिमा से ही नीचे आ जाते हैं। पृथ्वी पर आने के बाद वह नई आई कुशा की कोंपलों पर विराजित रहते है। फिर श्राद्ध के दौरान जो भी व्यक्ति पितरों के नाम से दान और भोजन कराते हैं अथवा उनके नाम से जो भी निकालते हैं, उसे पितर सूक्ष्म रुप से ग्रहण करते हैं। ग्रंथों में तीन पीढि़यों तक श्राद्ध करने का विधान है। पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण करने का विशेष महत्त्व रहता है। श्राद्ध कर्म करने से पितर प्रसन्न होते है। उनकी आत्मा तृप्त होती है और वह सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।

तीसरे श्राद्ध की तिथि और शुभ मुहूर्त (Date and Auspicious Time of Third Shraddha)

तीसरा श्राद्ध तृतीया तिथि आरम्भ - 01अक्टूबर, 2023 को सुबह 09:41बजे तृतीया तिथि ख़त्म - 02 अक्टूबर, 2023 को सुबह 07:36 बजे

तृतीया श्राद्ध रविवार,1अक्टूबर, 2023 का शुभ मुहूर्त कुतुप मूहूर्त - सुबह 11:47 बजे से दोपहर 12:34 बजे तक अवधि - 00 घण्टे 48 मिनट रौहिण मूहूर्त - दोपहर 12:34 बजे से दोपहर 01:22 बजे तक अवधि - 00 घण्टे 48 मिनट अपराह्न काल - दोपहर 01:22 बजे से दोपहर 03:45 बजे तक अवधि - 02 घण्टे 23 मिनट

तीसरे श्राद्ध की कहानी (Story of Third Shraddha)

श्राद्ध से जुड़ी एक पौराणिक कथा बहुत ही प्रचलित है। महाभारत काल के दौरान जब कर्ण की मृत्यु हो गई तो मृत्यु के बाद उनकी आत्मा स्वर्ग में पहुंची। वहां उन्हें बहुत सोना और गहनें प्रदान किए गए। यह देखकर कर्ण की आत्मा तृप्त नहीं हुई । वह तो उस समय केवल आहार की तलाश कर रहे थे । तब उन्होंने इंद्रा देव से पूछा कि उन्हें भोजन के स्थान पर सोना क्यों दिया गया। तब इंद्र देव ने उन्हें बताया कि आपने अपने सम्पूर्ण जीवन में केवल सोने का दान ही दिया है इसलिए आपको खाने में सोना दिया गया। आपने अपने पूर्वजों को कभी भी भोजन का दान नहीं दिया था। इंद्रा देव की इस बात को सुनकर कर्ण ने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी उनके पूर्वज कौन है ? इस कारण उन्हें कुछ भी दान नहीं दे सके।
आत्मा रूपी कर्ण ने इन्द्र देव से अपनी गलती को सुधरने का अवसर माँगा। तब उन्हें 16 दिन के लिए पृथ्वी पर भेज दिया गया। धरती पर वापस आने पर उन्होंने अपने पितरों को याद कर उन्हें भोजन दान दिया और तर्पण किया। इन्ही 16 दिन के समय को पितृपक्ष कहा जाता है।

तीसरे श्राद्ध की विधि (Mysteries Related to Third Shraddha)

  • तीसरे श्राद्ध में ब्राह्मण को बुलाकर श्राद्ध कर्म करवाए।
  • फिर उन्हें भोजन करवाए और दान देकर उन्हें संतुष्ट करें।
  • पिंडदान का समय दोपहर 12 बजे के बाद ही रखे यदि श्राद्ध कर्म का उत्तम समय होता है।
  • पिंडदान करने समय जिस आसान पर बैठे वह कपड़े का होना चाहिए।
  • पिंडदान करते समय तुलसी का उपयोग करें। फिर तर्पण करें।
  • भोजन जो श्राद्ध कर्म के समय लिया गया है उसमे से कुछ अंश कौए, गाय और कुत्ते के लिए भी निकालें और उन्हें भोजन कराते समय मन में अपने पितरों का स्मरण करें और उनसे भोजन ग्रहण करने का आग्रह करें।
  • हो सके तो श्राद्ध कर्म गंगा नदी के किनारे करना चाहिए और यदि संभव ना हो तो अपने ही घर में श्राद्ध कर्म की विधि को करें।

तीसरे श्राद्ध से जुड़े रहस्य (Mysteries Related to Third Shraddha)

श्राद्ध के दौरान हम ब्राह्मण और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, सामग्री और पात्र दान करते हैं । ऐसा माना जाता है कि इनके माध्यम से ये सभी वस्तुए पितरों तक पहुँचती है। श्रद्धा और प्रेम से किया गया श्राद्ध ही फलित होता है। श्राद्ध करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है। विधिवत श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होते है और परिवार को आशीर्वाद देते है। जिस कारण उनका परिवार फलता, फूलता रहता है। यदि श्राद्ध कर्म में कोई चूक हो जाती है तो पितर नाराज़ हो जाते हैं । जिससे पितृदोष लगता है। ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध के दौरान यदि कौआ भोजन कर लेता है तो माना जाता है कि पितरों से ख़ुशी-ख़ुशी भोजन ग्रहण कर लिया है। क्योंकि कौआ को पितरों का रूप माना गया है।

तीसरे श्राद्ध में क्या करें (What To Do In The Third Shraddha)

  • श्राद्ध में गाय का दूध, दही और घी का उपयोग करें। शास्त्रों में गाय को बहुत ही पवित्र माना गया है। इसलिए गाय से मिलने वाली वस्तुए भी पवित्र रहती है। श्राद्ध के दिन भगवान् विष्णु और यम की पूजा अर्चना करनी चाहिए। उसके बाद ही तर्पण करना चाहिए।
  • पितृ के निमित लक्ष्मी नारायण का ध्यान करते हुए गीता का तीसरा अध्याय का पाठ करना चाहिए।
  • पितरों को भात, खीर, सब्जी और कढ़ी का भोग लगाना चाहिए। और श्राद्ध कर्म करते समय बनाये गए सभी भोजन को की थाली को भी साथ में रखें और अंगूठे से जल अर्पित करें।
  • श्राद्ध कर्म के समय तुलसी अवश्य रखें। ऐसा करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।

तीसरे श्राद्ध में क्या न करें (What Not to Do in the Third Shraddha)

  • तीसरे श्राद्ध के करते समय मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन और बेंगन का सेवन ना करें। इनका सेवन करने से पितृ नाराज हो जाते है।
  • पितृ दोष लगने से जन धन की हानि होती है। स्वाथ्य से जुडी समस्याएं होने लगती है। परिवार से सभी सदस्य दुखी रहने लगते है।
  • श्राद्ध के दौरान मांगलिक कार्य जैसे - शादी, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश जैसे सुबह कार्यो को करना वर्जित माना गया है। इसके अलावा नए वाहन ख़रीदना, नए कपडे खरीदना और पहनने की मनाही है।
  • यदि आप श्राद्ध कर्म कर रहे है तो गलती से भी श्राद्ध कर्म किसी दूसरे के घर पर ना करें। इसे अपने ही घर पर करना किये। या फिर ऐसी जगह करना चाहिए जो की सार्वजानिक सम्पति हो जिस पर किसी का भी कोई अधिकार ना हो।

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