छठवां श्राद्ध

छठवां श्राद्ध

29 सितम्बर, 2023 जानें श्राद्ध के छठवें दिन का महत्व


श्राद्ध का छठवां दिन(Sixth day of Shraddha)

श्राद्ध के छठवें दिन दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु षष्ठी तिथि को हुई होती है। इस दिन श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को सभी जगहों से सम्मान प्राप्त होता है।

छठवें श्राद्ध का महत्व(Importance of sixth Shraddha)

शास्त्रों के अनुसार समस्त वर्णों व संप्रदायों में पितृयज्ञ करना अनिवार्य माना जाता है। लेकिन किसी कारण वश श्राद्धकर्म छूट जाता है तो उसके लिए गया श्राद्ध जैसे प्रावधान वर्णित हैं। शास्त्रों में देवकार्य से अधिक महत्व पितृकार्य को बताया गया है। इसलिए देवगणों से पहले पितृगणों को प्रसन्न करना आवश्यक है। गरुड़ पुराण में वर्णित है कि समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई भी दुखी नहीं रहता। पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है। इतना ही नहीं बल्कि श्राद्धकर्ता को पितृऋण से मुक्तिभी मिल जाती है। षष्ठी का विधिवत श्राद्ध करने से सारे कार्य सिद्ध होते हैं तथा रोगों से मुक्ति मिल जाती है। ऐसे लोग निंदित हैं जो अपने पितृगणों को भूल जाते हैं।

छठवें श्राद्ध की तिथि और शुभ मुहूर्त(Date and Auspicious time of sixth Shraddha)

षष्ठी श्राद्ध - छठवां श्राद्ध षष्ठी तिथि आरम्भ -04 अक्टूबर, 2023 को सुबह 05:33 बजे षष्ठी तिथि की समाप्ति - 05 अक्टूबर, 2023 को सुबह 05:41 बजे

षष्ठी श्राद्ध बुधवार, 4 अक्टूबर, 2023 का शुभ मुहूर्त कुतुप मूहूर्त - सुबह 11:46 बजे से दोपहर 12:33 बजे तक अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट रौहिण मूहूर्त - दोपहर 12:33 बजे से दोपहर 01:21 बजे तक अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट
अपराह्न काल - दोपहर 01:21बजे से दोपहर 03:42 बजे तक अवधि - 02 घण्टे 22 मिनट्स

छठवें श्राद्ध की कहानी (Story of Sixth Shraddha)

पौराणिक कथा के अनुसार भीष्म पितामह गया में अपने शांतनु का श्राद्ध करने गए। वहां उन्होंने विष्णु पद पर अपने पूर्वजों का आह्वान किया। वहा श्राद्ध कर्म करने लगे तभी वहां पर शांतनु के हाथ निकले परन्तु भीष्म पितामह ने उनके हाथ को छोड़कर विष्णुपद पर पिंडदान किया। ऐसा करने से शांतनु प्रसन्न हुए और उन्होंने आशीर्वाद दिया। इसी तरह भगवान राम जी भी जब रूद्र पद पर पिंडदान करने के लिए तैयार हुए तब राजा दशरथ जी ने हाथ निकाला। परन्तु राम जी ने रूद्र पद पर पिंडदान किया। इस पर प्रसन्न होकर दशरथ जी ने राम जी से कहा “आज तुमने मुझे तार दिया। ऐसा करने से हम रूद्र लोक को जायेंगे।” इस कारण ही छठवें, सातवें और आठवें दिन विष्णुपद, रुद्रपद, ब्रह्मपद और दक्षिणानिग पद पर पिंडदान करने का विधान बताया गया है।

छठवें श्राद्ध की विधि (Method of sixth Shraddha)

  • छठवें श्राद्धकर्म में छ: ब्राह्मणों को भोजन कराने का विधान है।
  • श्राद्ध कर्म के समय कच्चा दूध, गंगाजल, तिल, जौ मिश्रित जल की जलांजलि देकर पितरों का पूजन करना चाहिए।
  • पितृगण के निमित, गाय के घी का दीप, चंदन और धूप लगाना चाहिए। साथ ही सफ़ेद फूल, सफ़ेद तिल, तुलसी पत्र और चंदन भी चढ़ाना चाहिए। और चावल के आटे से निर्मित पिण्ड समर्पित करना चाहिए। इसके बाद उनके नाम का नैवेद्य रखना चाहिए।
  • श्राद्ध कर्म के समय कुशा के आसन पर बैठना चाहिए और पितृ के निमित भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए गीता के छठे आध्याय का पाठ करना चाहिए।
  • इसके बाद चावल की खीर- पूड़ी, सब्ज़ी, सफ़ेद फल,मिठाई, मिश्री आदि अर्पित करना चाहिए।
  • श्राद्ध कर्म पूर्ण होने के बाद ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए और उन्हें सफ़ेद वस्त्र,दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।
  • भोजन के कुछ भाग गाय, कुत्ते और कौवे को खिलाना चाहिए। ब्राह्मण को घर बुलाकर श्राद्ध कर्म कर सकते हैं।

छठवें श्राद्ध से जुड़े रहस्य (Mysteries Related to Sixth Shraddha)

श्राद्ध में पितरों को जो भोज्य पदार्थ अर्पित किए जाते है उन्हें पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए।शास्त्रों के अनुसार कौवे को पितरों का रूप माना गया है। इसलिए उन्हें विशेष रूप से भोजन कराना चाहिए। कहा जाता कि यदि कौवे के भोजन ग्रहण किया तो पितरों ने भी भोजन ग्रहण कर लिया। श्राद्ध के समय पिंडदान और तर्पण करने से पितरों को बल प्राप्त होता है। वह शक्ति प्राप्त करके परलोक को जाते है। श्राद्ध कर्म करने से पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं । गया में श्राद्ध कर्म का विशेष महत्त्व बताया गया है। यहाँ पर बालू का पिंडदान किया जाता है।

छठवें श्राद्ध में क्या करें(What to do on sixth Shraddha)

  • श्राद्ध पक्ष में गाय का दान करना बहुत ही शुभ माना गया है। इससे सुख और धन-संपत्ति प्राप्त होती है। इसी तरह गुड़ का दान करना भी श्रेष्ठकारी होता है। श्राद्ध के दौरान अन्नदान में गेहूं और चावल का दान करना चाहिए।
  • श्राद्ध कर्म में तिल का भी विशेष महत्व होता है। इसलिए तिलों का दान करने से संकट और विपदाओं से रक्षा होती है। नमक का दान से पितर प्रसन्न होते है। शास्त्रों में बताया गया है कि जो व्यक्ति गया में पिंडदान करता है उसके पूर्वजों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। यदि आपको गया जाना संभव नहीं है तो आप घर पर भी पिंडदान और तर्पण कर सकते हैं।

छठवें श्राद्ध में क्या न करें(What not to do on the sixth Shraddha)

  • पितृ पक्ष के समय घर में मांस, लहसुन, प्याज, मसूर की दाल, मछली आदि को भूलकर भी न बनाएं। ऐसा करने से पितर रुष्ट हो जाते है और परिवार पर पितृदोष लग जाता है।
  • पितरों के तर्पण करने के दौरान श्राद्धकर्ता को शरीर पर तेल और साबुन लगाकर नहीं नहाना चाहिए।
  • श्राद्ध के दौरान मांगलिक कार्य, नए कपडे, भवन निर्माण, नयी कार लेना जैसे कार्यों को भी नहीं करना चाहिए।

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