व्यास पूजा 2024 (Vyasa Puja 2024)
पौराणिक मान्यता के अनुसार आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि पर महर्षि व्यास का जन्म हुआ था, इस लिए ये पूर्णिमा तिथि हर वर्ष गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा के नाम से मनायी जाती है। इस दिन व्यास पूजा का विशेष महत्व है। आइए जानते हैं वेद व्यास से जुड़ी कथा और व्यास पूजा विधि-
व्यास पूजा 2024: तिथि और समय (Vyasa Puja 2024: Date and Time)
साल 2024 में व्यास पूर्णिमा का पर्व 21 जुलाई रविवार को मनाया जाएगा। पूर्णिमा तिथि का प्रारम्भ 20 जुलाई को शाम 05 बजकर 59 मिनट से होगा और पूर्णिमा तिथि का समापन 21 जुलाई को दोपहर 03 बजकर 46 मिनट पर होगा।
व्यास पूजा की विधि (Vyasa Puja Vidhi)
- आषाढ़ पूर्णिमा पर अपने गुरु के साथ-साथ महर्षि वेद व्यास की पूजा का भी विधान है।
- व्यास पूजा के दिन प्रातः उठकर घर की साफ़ सफाई करें, उसके बाद स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहनें।
- इसके बाद व्यासपीठ या व्यास का आसन बनाएं। इसके लिए भूमि पर एक धुला हुआ सफेद वस्त्र बिछाएं और उस पर उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक गंध से बारह रेखाएँ खींचें।
- फिर, 'गुरुपरम्परा सिद्धार्थ व्यास पूजां करिश्येस्य' मंत्र का पाठ करें। इसका अर्थ है कि मैं गुरु वंश की स्थापना के लिए गुरु महर्षि वेद व्यास की पूजा करता हूं।
- पूजा के समय भगवान ब्रह्मा, व्यास, शुकदेव, गौपाद, गोविंदस्वामी जी और गुरु शंकराचार्य का आह्वान करें।
- इसके बाद षोडशोपचार पूजा करें।
- महर्षि व्यास की शिक्षाओं का पालन करने का संकल्प लें।
- ये सभी अनुष्ठान करने के बाद अपने माता-पिता और से आशीर्वाद लें।
- व्यास पूर्णिमा के दिन आप व्यास जी द्वारा लिखित वेद या अन्य शास्त्र भी पढ़ सकते हैं।
महाभारत में वेद व्यास जी की भूमिका (Role Of Ved Vyas Ji In Mahabharata)
महर्षि वेद व्यास को सात चिरंजीवियों में से एक माना जाता है। कई विद्वानों का मानना है, कि वे अभी भी जीवित हैं। माना जाता है उनका वास्तविक नाम कृष्ण द्वैपायन था, किंतु चारों वेदों ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद का संकलन करने के कारण उन्हें वेद व्यास कहा जाने लगा।
महर्षि वेदव्यास हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण महाकाव्य महाभारत के रचयिता हैं। इसके अलावा उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता, व 18 पुराणों की भी रचना की। साथ ही चारों वेदों के संकलन का श्रेय भी वेद व्यास जी को ही जाता है। ऐसा कहा जाता है कि महर्षि वेद व्यास ने एक वेद को तीन वेदों में वर्गीकृत किया था- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद। और चौथा, जिसे अथर्ववेद के नाम से जाना जाता है, उसे बहुत समय बाद वेद के रूप में मान्यता मिली।
मान्यता है कि वेद व्यास उत्तराखंड में गंगा के तट पर रहते थे। इसी स्थान पर महाभारत के पांचों पांडव भी रहे थे, और ऋषि वशिष्ठ ने भी इस भूमि पर तपोसाधना की थी।
वेद व्यास ने इन की सहायता से लिखी महाभारत (Ved Vyas Wrote Mahabharata With Their Help)
हिंदू धर्म में भगवान श्री गणेश प्रथम पूज्य माने जाते हैं। सुख-समृद्धि के देवता गणेश जी न केवल प्रथम पूज्य हैं, बल्कि उन्हें प्रथम लिपिकार भी माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार श्री गणेश ने ही वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत का लेखन किया था। जानकार बताते हैं कि महाभारत वेद व्यास जी द्वारा रची गई है, लेकिन उस ग्रंथ को लिपिबद्ध किया था भगवान गणेश जी ने।
पुराणों में वर्णन मिलता है कि, ऋषि पराशर के पुत्र महर्षि वेद व्यास ने ध्यानमग्न होकर महाभारत का स्मरण किया था, और उन्होंने सोचा कि क्यों न इस कथा को महाकाव्य के रूप में दुनिया के समक्ष रखा जाए। लेकिन अब वेद व्यास के सामने एक बड़ी समस्या ये थी कि इस महाकाव्य को लिपिबद्ध कौन करेगा।
अपनी ये दुविधा लेकर वेद व्यास ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। तब ब्रह्मा जी ने उन्हें सुझाव दिया कि हे महर्षि! इस कार्य में भगवान श्री गणेश ही अपनी सहायता कर सकते हैं, क्योंकि उनकी लिखावट तीव्र और बहुत सुंदर है। ये सुनकर महर्षि वेद व्यास ने श्री गणेश जी से महाभारत का लेखन करने का आग्रह किया। गणेश जी वेद व्यास जी का अनुरोध तो सहर्ष स्वीकार कर लिया, किंतु लेखन कार्य आरंभ करने से पहले उन्होंने महर्षि के समक्ष एक शर्त रख दी।
गणेश जी बोले- हे महर्षि! मैं इस महाकाव्य का लेखन अवश्य करूंगा, परंतु लेखन करते समय यदि आपने बीच में ही कथा कहना बंद कर दिया, तो मैं आगे नहीं लिखूंगा। इस पर वेद व्यास जी कहने लगे- हे गजानन! आप चिंता न करें, मैं कथा को बीच में नहीं रोकूंगा, किंतु मेरी भी एक शर्त है, कि आप हर श्लोक का अर्थ समझ कर ही उसे लिपिबद्ध करेंगे। गणेश जी ने भी महर्षि वेद व्यास का ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, और इस तरह महाकाव्य महाभारत की रचना संपन्न हुई।
महर्षि वेद व्यास न केवल वेदों पुराणों के रचयिता हैं, बल्कि उन्हें प्रथम गुरु भी माना जाता है। यही कारण है, कि हर वर्ष उनके जन्म दिवस को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।
वेद व्यास जी की जन्म कथा (Birth Story Of Ved Vyas Ji)
वेद व्यास जी ऋषि पाराशर और सत्यवती के पुत्र थे। उनके जन्म के पीछे एक काफी रोचक कथा है।पौराणिक काल में योगिराज पाराशर तीर्थयात्रा करते हुए यमुना तट पर पहुंच गए। वहां पर उन्होंने एक निषाद मल्लाह से नौका द्वारा यमुना नदी पार कराने के लिए कहा। इस पर निषाद ने अपनी मत्स्यगंधा नामक कन्या से कहा कि, पुत्री ये महान तपस्वी पाराशर हैं जो कि चारों वेदों में पारंगत हैं, तुम इन्हें शीघ्र ही नौका से उस पार ले जाओ।
मत्स्यगंधा ने अपने पिता की बात सुनकर महामुनी जी को नौका से नदी पार कराने लगी। इस दौरान ऋषि पाराशर उस कन्या पर मोहित हो गए और उन्होंने उसे अपने दाहिने हाथ से स्पर्श किया। कन्या को उनकी मंशा का ज्ञान हो गया। मत्स्यगंधा ने उनसे कहा कि- हे मुनिवर्य, आप एक तपस्वी हैं, परम ज्ञानी, विद्वान, सुंदर एवं ऊंचे कुल से हैं, और मैं दुर्गन्धयुक्त, काले रंग की मल्लाह से उत्पन्न एक मामूली कन्या हूँ, हम दोनों का मिलन कैसे संभव है?
यह सुनते ही ऋषि पाराशर ने कहा कि मैं कभी अप्सराओं पर भी मोहित नहीं हुआ, लेकिन लगता है ईश्वर की यही इच्छा है। ऐसा कहकर उन्होंने उस मत्स्यगंधा को मनोहर, सुंदर एवं सुगंधित कन्या में परिवर्तित कर दिया। मुनि की ऐसी इच्छा देखकर कन्या ने बोला कि आप कृपया करके रात्रि तक प्रतीक्षा करें क्योंकि दिन में प्रसंग उचित नहीं माना गया है।
मुनिश्रेष्ठ ने यह बात सुनकर शीघ्र ही अपनी शक्तियों से चारों ओर अंधकार उत्पन्न कर दिया। यह देखकर कन्या चकित हो गई और कहने लगी कि यदि हमारे मिलन से मैं गर्भवती हो गई तो मैं बाद में अपने पिता को क्या उत्तर दूंगी। समाज में भी मेरी अवहेलना होगी।
ऋषि पराशर ने कन्या की प्रार्थना सुनकर उसे वरदान दिया कि उसका नाम सत्यवती हो जाएगा और उसे चारों दिशाओं में प्रसिद्धि मिलेगी। साथ ही मुनि पाराशर ने कन्या को महातेजस्वी पुत्र का भी वरदान दिया जिसकी प्रशंसा तीनों लोकों में होगी और वह पुराणों की रचना व वेद की शाखाओं का विभाजन करेगा।
इसके बाद ऋषि पाराशर और सत्यवती के मिलन से वेद व्यास जी का जन्म हुआ और पाराशर जी के वरदान से उन्होंने अपने जीवन काल में कई महान कार्य किए।