एकदन्त संकष्टी चतुर्थी का मुहूर्त एवं पूजा विधि

एकदन्त संकष्टी चतुर्थी का मुहूर्त एवं पूजा विधि

इस व्रत संतान बनेगी दीर्घायु और निरोगी!


एकदन्त संकष्टी चतुर्थी 2024 (Ekdant Sankashti Chaturthi 2024)


प्रत्येक वर्ष में हर माह आने वाला संकष्टी चतुर्थी का पर्व भगवान गणेश को ही समर्पित है। ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को एकदंत संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। भगवान गणेश बुद्धि, बल और बुद्धिमत्ता के देवता हैं। वह अपने भक्तों की सभी समस्याओं और बाधाओं को दूर कर देते हैं, इसीलिए उन्हें विघ्नहर्ता और संकटमोचन भी कहा जाता है। संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की विशेष पूजा करने और व्रत कथा का पाठ करने से सभी दुख, कष्ट और पाप मिट जाते हैं।

माना जाता है कि संकष्टी चतुर्थी व्रत रखने से व्यक्ति केो सभी प्रकार के कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। इसके साथ ही भगवान श्री गणेश जी की कृपा से धन, सुख-समृद्धि आती है। हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला यह पर्व मनोवांछित फल देने वाला माना जाता है।

एकदन्त संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त (Ekdant Sankashti Chaturthi 2024 Date)


साल 2024 में जेष्ठ माह में एकदन्त संकष्टी चतुर्थी का व्रत रविवार 26 मई 2024 को रखा जाएगा। चतुर्थी तिथि का प्रारम्भ 26 मई 2024 को शाम 06 बजकर 06 मिनट से होगा और चतुर्थी तिथि का समापन 27 मई 2024 को शाम 04 बजकर 53 मिनट पर होगा। वहीं संकष्टी के दिन चन्द्रोदय का समय रात 09 बजकर 39 मिनट पर है।

संकष्टी चतुर्थी का महत्व (Importance Of Ekdant Sankashti Chaturthi)


भगवान गणेश देवताओं में सर्वश्रेष्ठ और प्रथम पूजनीय हैं। मान्यता है कि संकष्टी चौथ के दिन इसकी पूजा करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से सभी तरह के कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख-सौभाग्य सदैव बना रहता है। इस दिन जो जातक सच्ची आस्था और श्रद्धा से भगवान गणेश की पूजा करते हैं, उन्हें मनोवांछित फल प्राप्त होता है।

संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि (Ekdant Sankashti Chaturthi Puja Vidhi)


  • संकष्टी चतुर्थी के पहले दिन स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें।

  • पूजा के लिए ईशान कोण में चौकी पर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें।

  • फिर चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं और भगवान से हाथ जोड़कर पूजा और व्रत का संकल्प लें।

  • सबसे पहले भगवान गणेश को पुष्प के माध्यम से थोड़ा सा जल अर्पित करें।

  • इसके बाद फूल-मालाएं चढ़ाएं. इसके साथ ही दूर्वा की 11 या 21 गांठें चढ़ाएं। दूर्वा चढ़ाने के साथ ही 'इदं दुर्वादलं ऊं गं गणपतये नम:' मंत्र का जाप करें।

  • इसके बाद सिन्दूर और अक्षत लगाएं और नैवेद्य में लड्डू या मोदक चढ़ाएं।

  • इसके बाद जल चढ़ाने के साथ ही घी का दीपक और धूप जलाएं और भगवान गणेश का ध्यान करें।

  • फिर पूरे दिन व्रत रखें और सूर्यास्त से पहले दोबारा भगवान गणेश की पूजा करें और चंद्र देव के दर्शन करने के बाद जल से अर्घ्य दें। इससे व्रत खोलें।

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