गुरुवायुर एकादशी 2024 | Guruvayur Ekadashi, Shubh Muhurat, Katha

गुरुवायुर एकादशी 2024

गुरुवायुर एकादशी 2024: शुभ मुहूर्त, कथा और पूजा विधि जानें। इस पावन दिन का महत्व समझें!


गुरुवायुर एकादशी | Guruvayur Ekadashi 2024

भारत के दक्षिण में स्थित अतिसुन्दर राज्य केरल में गुरुवायुर एकादशी का पर्व पूरी आस्था के साथ मनाया जाता है। मलयालम कैलेंडर के अनुसार गुरुवायुर एकादशी की तिथि वृश्चिक मास के शुक्ल पक्ष के ग्यारहवें दिन होती है। यह एकादशी 41 दिनों तक चलने वाले प्रसिद्ध मंडला पूजा उत्सव के दौरान आती है।

गुरुवायुर एकादशी कब है?

इस वर्ष गुरुवायुर एकादशी दिसंबर 11, 2024 (बुधवार) को मनाई जाएगी।

  • गुरुवायुर एकादशी प्रारम्भ - दिसंबर 11, 2024 को 03:42 AM बजे से

  • गुरुवायुर एकादशी समाप्त - दिसंबर 12, 2024 को 01:09 AM तक

  • हर एकादशी की तरह गुरुवायुर एकादशी पर रखे गए व्रत का पारण द्वादशी तिथि पर शुभ मुहूर्त में किया जाता है।

  • पारण का समय - 06:34 AM से 08:41 AM

  • द्वादशी समापन का समय - 10:26 PM

गुरुवायुर एकादशी के शुभ मुहूर्त

  • ब्रह्म मुहूर्त : 04:46 AM से 05:40 AM तक
  • प्रातः सन्ध्या : 05:13 AM से 06:34 AM तक
  • अभिजित मुहूर्त : नहीं है
  • विजय मुहूर्त : 01:37 PM से 02:20 PM तक
  • गोधूलि मुहूर्त : 05:07 PM से 05:34 PM तक
  • सायाह्न सन्ध्या : 05:09 PM से 06:30 PM तक
  • अमृत काल : 09:34 AM से 11:03 AM तक
  • निशिता मुहूर्त : 11:25 PM से 12:19 AM (12 दिसंबर) तक

विशेष योग

  • रवि योग : 06:34 AM से 11:48 AM तक

गुरुवायुर एकादशी का महत्व

केरल के गुरुवायुर कृष्ण मंदिर में गुरुवायुर एकादशी पर विविध आयोजन किये जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस एकादशी पर गुरुवायुर मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की विधि-विधान से पूजा करने से मनवांछित फल प्राप्त होता है और व्यक्ति के सभी पापों का क्षय होता है।

क्या विशेष है इस पर्व में

केरल के प्रसिद्ध गुरुवायुर कृष्ण मन्दिर में गुरुवायुर एकादशी को बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस एकादशी पर उदयस्थमन पूजा अर्थात सुबह से शाम तक की जाने वाली पूजा, देवस्वोम द्वारा ही आयोजित की जाती है। दक्षिण भारत विशेषतः केरल में गुरुवायुर एकादशी पर सुबह की सीवेली (एक छोटी सी पूजा) के बाद, पार्थसारथी मंदिर में हाथियों का एक भव्य जुलूस निकाला जाता है। इस दिन को गीतोपदेशम दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इस तिथि पर रात्रि में पूजा करने के बाद जुलूस के साथ ही दीपदान किया जाता है, जिसे एकादशी विलक्कू कहते हैं। इसी के साथ इस उत्सव का समापन होता है।

इस दिन मंदिरों में जाकर निर्माल्य दर्शन किया जाता है, जो सुबह 3 बजे से शुरू होकर अगले दिन अर्थात द्वादशी तिथि पर सुबह 9 बजे तक होता है। द्वादशी के दिन मंदिरों में द्वादशी पानम नाम से अपनी क्षमता के अनुसार धन चढ़ाने की भी परंपरा है।

गुरुवायुर एकादशी की पूजा विधि

पूजा सामग्री

  • गुरुवायुर एकादशी के दिन भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को स्नान कराकर साफ कपड़े से पोंछ लें।
  • पूजा के लिए शुद्ध घी का दीपक और अगरबत्ती जलाएं।
  • भगवान को चढ़ाने के लिए ताजे फल और फूल लाएं।
  • तिलक लगाने के लिए चंदन और रोली का प्रयोग करें।
  • भगवान को भोग लगाने के लिए कुछ विशेष व्यंजन बनाएं।
  • दूध, दही, शहद, घी और केसर से पंचामृत तैयार करें।
  • एक कलश में जल भरकर उसमें रोली, चावल और कुछ सिक्के डालें।
  • एक थाली में सभी पूजा सामग्री को व्यवस्थित करें।

पूजा विधि

  • गुरुवायुर एकादशी के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
  • भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को पंचामृत से स्नान कराएं।
  • भगवान को चंदन, रोली और पुष्पों से श्रृंगार करें।
  • भगवान के समक्ष धूप और दीप जलाएं।
  • भगवान को बनाए हुए नैवेद्य अर्पित करें।
  • भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें।
  • भगवान की आरती करें।
  • पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करें।

गुरुवायुर एकादशी के दिन करें ये उपाय

  • इस दिन पूरे दिन उपवास रखना चाहिए।
  • केवल फलाहार या जल ही ग्रहण करना चाहिए।
  • यदि आप पूरे दिन उपवास नहीं रख पा रहे हैं, तो कम से कम एक समय का भोजन छोड़ सकते हैं।
  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
  • भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को स्नान कराएं और उन्हें शुद्ध कपड़ों से पोंछें।
  • भगवान को फूल, फल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
  • विष्णु सहस्रनाम का जाप करें।
  • भगवान की आरती करें।

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय : इस मंत्र का जाप करने से मन शांत होता है और भगवान की कृपा प्राप्त होती है। श्री कृष्ण गोपालाय नमः : इस मंत्र का जाप करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

  • इस दिन दान करना बहुत शुभ माना जाता है। आप अपनी क्षमता के अनुसार किसी जरूरतमंद को भोजन, कपड़े या धन दान कर सकते हैं।
  • तुलसी का पौधा भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है। इस दिन तुलसी की पूजा करने से विशेष फल मिलता है।
  • इस दिन सात्विक भोजन करना चाहिए।
  • प्याज, लहसुन और मांसाहार का सेवन करने से बचना चाहिए।
  • इस दिन मनन और ध्यान करने से आत्मिक शांति मिलती है।
  • यदि संभव हो तो गुरुवायुर मंदिर में दर्शन करने जाएं।
  • विष्णु पुराण का पाठ करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • इस दिन सकारात्मक विचारों को मन में रखें और दूसरों की सेवा करें।

इन उपायों को करने से आपको गुरुवायुर एकादशी के व्रत का पूरा फल मिलेगा और आप भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करेंगे।

गुरुवायुर एकादशी व्रत के लाभ

  • गुरुवायुर एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और धार्मिक पुण्य अर्जित होता है।
  • यह व्रत पिछले जन्मों के पापों को दूर करने में मदद करता है और व्यक्ति को मोक्ष के मार्ग पर ले जाता है।
  • एकादशी का व्रत करने से मन शांत होता है और व्यक्ति को आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है।
  • व्रत के दौरान शरीर को विश्राम मिलता है और पाचन तंत्र स्वस्थ रहता है।
  • यह व्रत आर्थिक समृद्धि लाने में भी सहायक होता है।
  • इस व्रत को करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

गुरुवायुर मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

द्वारिकापुरी में एक विशिष्ट मूर्ति थी, जिसे श्री हरि विष्णु ने ब्रह्माजी को दिया था। इस दिव्य मूर्ति का प्राचीन इतिहास कुछ इस प्रकार है- एक समय महाराज सुतपा और उनकी रानी ने पुत्र प्राप्ति के लिए ब्रह्माजी की आराधना की, जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने वह मूर्ति महाराज सुतपा को प्रदान कर दी, और उनसे इस मूर्ति की नियमित उपासना करने को कहा। महाराज इस मूर्ति की पूरी श्रद्धा से पूजा-अर्चना करने लगे। इस भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि ‘आपकी रानी के गर्भ से मैं स्वयं विष्णु कई रूपों में जन्म लूंगा।’

अगले जन्म में इन्हीं राजा सुतपा और उनकी रानी ने राजा कश्यप और रानी अदिति के नाम से जन्म लिया। इस समय भगवान विष्णु इनके घर बावन रूप में जन्में।

इसके बाद फिर अगले जन्म में सुतपा वासुदेव के रूप में जन्में। उनकी पत्नी देवकी के गर्भ से कृष्ण का जन्म हुआ। कंस का वध करने के पश्चात् इस प्राचीन मूर्ति को वासुदेव ने धौम्य ऋषि को प्रदान कर दिया। ऋषि धौम्य ने इस मूर्ति को द्वारिका में प्रतिष्ठापित किया।

काफी समय बाद एक बार श्री कृष्ण ने अपने मित्र उद्धव को देव गुरु बृहस्पति के पास एक विशिष्ट संदेश लेकर भेजा। संदेश यह था कि द्वारिकापुरी शीघ्र ही समुद्र में जलमग्न होने वाली है। उस समय वह मूर्ति वहीं विराजमान थी। भगवान कृष्ण ने उद्धव को बताया कि वह मूर्ति असाधारण है, और कलियुग में यह मेरे भक्तों के लिए अत्यन्त कल्याणकारी सिद्ध होगी।

जब देवगुरु बृहस्पति कृष्ण का संदेश पाकर द्वारिका पहुंचे, तब तक द्वारिका समुद्र में डूब चुकी थी। देवगुरु बृहस्पति ने वायुदेव की सहायता से इस मूर्ति को समुद्र से निकाला, तथा इसे स्थापित करने के लिए उपयुक्त स्थान की खोज शुरू की। वर्तमान समय में यह मूर्ति केरल में स्थापित है। कहा जाता है कि जिस मंदिर में यह मूर्ति स्थापित हुई, वहां एक सुंदर झील थी। इस झील के तट पर भगवान शिव अपनी अर्धांगिनी पार्वती के साथ जल क्रीड़ा किया करते थे। शिव से आज्ञा प्राप्त करके ही बृहस्पति जी ने उस प्राचीन मूर्ति की स्थापना यहां की थी।

चूंकि केरल में उस पवित्र स्थान पर गुरु और वायु देव ने इस मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की, इसलिए इसका नाम गुरुवायूर पड़ा। केरल बहुत सुन्दर राज्य है, और वहां स्थित इस मंदिर की महिमा भी दिव्य है। यदि कभी अवसर मिले तो जीवन में एक बार इस मंदिर के दर्शन अवश्य करें।

यदि किसी कारण से आप यह नहीं कर पाएं तो इस दिन श्री मंदिर के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण को सच्चे मन से चढ़ावा अर्पित करें। इस चढ़ावा सेवा के माध्यम से आप घर बैठे अपने और अपने परिवार के नाम से भारत के कुछ प्रसिद्ध कृष्ण मंदिर जैसे कि वृंदावन में श्री बांके बिहारी मंदिर और गोवर्धन के गिरिराज मुखारविंद मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण को चढ़ावा अर्पित कर सकते हैं।

तो दोस्तों! गुरुवायुर एकादशी के पावन दिन पर आप हमारी इस सेवा का लाभ अवश्य उठाएं और चढ़ावे के रूप में चुनरी, भोग, दूध, पुष्प और द्वादशी पानम आदि समर्पित कर अपने परिवार के लिए प्रभु की कृपा प्राप्त करें।

श्री मंदिर द्वारा आयोजित आने वाली पूजाएँ

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