मत्स्य द्वादशी | Matsya Dwadashi 2024, Kab Hai, Katha, Puja

Matsya Dwadashi 2024

मत्स्य द्वादशी 2024: तिथि, कथा व पूजा विधि जानें और पाएं भगवान विष्णु का आशीर्वाद इस शुभ पर्व पर।


मत्स्य द्वादशी | Matsya Dwadashi 2024

आज हम आपके लिए मत्स्य द्वादशी की संपूर्ण जानकारी लेकर आए हैं, इस लेख में आप जानेंगे कि-

  • मत्स्य द्वादशी कब है?
  • मत्स्य द्वादशी की कथा क्या है?
  • मत्स्य द्वादशी पर आसानी से करें पूजा
  • मत्स्य द्वादशी का महत्व

मत्स्य द्वादशी कब है

मत्स्य द्वादशी मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष यह 12 दिसंबर 2024, गुरुवार को मनाई जाएगी।

मत्स्य द्वादशी पर आसानी से करें पूजा

  • इस दिन प्रातः काल उठकर स्नानादि कार्यों से निवृत हो जाएं।
  • इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें और घर के मंदिर को भी स्वच्छ कर लें।
  • अब मंदिर में गंगाजल का छिड़काव करें और दीप प्रज्वलित करें।
  • इसके पश्चात् भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र को चंदन से तिलक करें, साथ ही मंदिर में स्थापित सभी अन्य देवी-देवताओं को हल्दी-कुमकुम या चंदन से तिलक करें।
  • अब भगवान विष्णु को अक्षत अर्पित करें।
  • अक्षत के बाद पीले पुष्प, पुष्प माला, भोग, पंचामृत, तुलसीदल, दक्षिणा आदि भगवान विष्णु को अर्पित करें।
  • आप विष्णु सहस्रनाम का पाठ भी कर सकते हैं।
  • अब धूप, दीप दिखाते हुए भगवान विष्णु की आरती करें।
  • अंत में पूजा में हुई किसी गलती के लिए भगवान से क्षमायाचना करें और फिर प्रसाद वितरित करें।
  • अगर आप व्रत का पालन कर रहे हैं तो पूजा के बाद फलाहार ग्रहण करें।

मत्स्य द्वादशी का महत्व और लाभ

यह दिन इस बात का प्रतीक है कि जब भी धरती पर पापों का बोझ बढ़ेगा, भगवान विष्णु समस्त मानव जाति का कल्याण करेंगे। इस दिन भक्त भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं, जिससे कि भगवान विष्णु अपनी कृपादृष्टि उनपर बनाएं रखें। इस दिन उपवास और पूजा-अर्चना से व्यक्ति को सुख-समृद्धि एवं पुण्य की प्राप्ति होती है।

मत्स्य द्वादशी की कथा

एक समय की बात है, सतयुग में द्रविड़ देश नामक एक राज्य हुआ करता था जहाँ राजा सत्यव्रत राज करते थे। वे बहुत ही धार्मिक और उदार थे। एक बार वे हमेशा की तरह कृतमाला नदी में स्नान कर रहे थे। स्नान करने के लिए जब उन्होंने अंजलि में जल लिया तो देखा कि उनके हाथ में लिए जल में एक छोटी सी मछली तैर रही है। उन्होंने उस मछली को पुन: नदी में छोड़ दिया।

नदी में जाते ही वह मछली राजा से उसके प्राणों की रक्षा करने की प्रार्थना करने लगी। वह कहने लगी कि, “नदी के बड़े जीव छोटे जीवों को खा जाते हैं। वे मुझे भी मारकर खा जाएंगे! कृपया मेरे प्राणों की रक्षा करें।”

यह सुनकर राजा आश्चर्यचकित तो हुए, किन्तु उन्होंने मछली की रक्षा करने के लिए उसे अपने कमंडल में डाला और अपने साथ ले गए।

लेकिन एक ही रात्रि में उस मछली का शरीर इतना बढ़ गया कि उसके लिए कमंडल छोटा पड़ने लगा। तब राजा ने मछली को कमंडल से निकालकर मटके में डाल दिया, लेकिन वह मटका भी मछली के लिए छोटा पड़ने लगा।

तब राजा ने मछली को सरोवर में छोड़ दिया और निश्चिंत हो गए कि सरोवर में वह सुविधापूर्ण रहेगी, लेकिन एक ही रात्रि में वह मछली फिर इतनी बड़ी हो गई कि वह सरोवर भी उसके लिए छोटा पड़ने लगा। यह देखकर राजा को यह भान हो गया कि यह कोई साधारण मछली नहीं है।

फिर राजा ने उस मछली के समक्ष हाथ जोड़े और कहा कि, “मैं जान गया हूं कि निश्चय ही आप कोई साधारण मत्स्य नहीं हैं। आप कोई देवीय शक्ति हैं और यदि यह बात सत्य है, तो कृपा करके बताइए कि आपने मत्स्य का रूप क्यों धारण किया है?”

तब राजर्षि सत्यव्रत के समक्ष भगवान विष्णु प्रकट हुए और उनसे कहा कि, “हे राजन! हयग्रीव नामक एक दैत्य ने ब्रह्मा जी से चारों वेदों को चुरा लिया है, जिससे जगत में चारों ओर अज्ञान और अधर्म का अंधकार फैला हुआ है। सृष्टि प्रलय की ओर बढ़ रही है। और इसकी रक्षा करने के लिए और हयग्रीव को मारने के लिए ही मैंने मत्स्य का रूप धारण किया है।”

फिर श्री हरि ने राजा को सचेत करते हुए कहा कि, “आज से सातवें दिन, भयानक जल प्रलय होगा और यह समस्त सृष्टि समुद्र में डूब जाएगी। ऐसा होने से पहले आप एक ऐसी नौका बनवाएं, जिसमें सब प्रकार के औषधि, बीज और सप्तर्षियों को लेकर आप उस नौका पर सवार हो सकें। प्रचंड आंधी के कारण जब वह नाव डगमगाने लगेगी, तब मैं मत्स्य रूप में अवतरित होकर आप सभी की रक्षा करूंगा।”

राजा सत्यव्रत ने भगवान विष्णु के कहे अनुसार बिल्कुल वैसा ही किया। जब प्रलय आया तो भगवान मत्स्य ने उस नौका को बचाने हेतु उसे हिमालय की चोटी से बांध दिया। आज उसी चोटी को 'नौकाबंध' के नाम से जाना जाता है।

प्रलय का प्रकोप शांत होने पर भगवान श्री हरि ने दैत्य हयग्रीव का वध करके उससे चारों वेदों को पुनः प्राप्त किया और उन्हें ब्रह्माजी को सौंप दिया। इस प्रकार राजा सत्यव्रत को भी वेदों का ज्ञान प्राप्त हुआ। आगे चलकर राजा सत्यव्रत ज्ञान-विज्ञान से परिपूर्ण होकर वैवस्वत मनु कहलाए। कहा जाता है कि मनु के वंशज ही आगे चलकर मनुष्य कहलाए।

इस कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने जिस दिन मत्स्य अवतार लेकर हयग्रीव दैत्य का वध किया था, उस दिन को मत्स्य द्वादशी के रूप में मनाया जाता है।

तो यह थी मत्स्य द्वादशी से जुड़ी संपूर्ण जानकारी, आप ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए श्री मंदिर से जुड़े रहें।

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