कब है जय पार्वती व्रत 2024 का समापन

कब है जय पार्वती व्रत 2024 का समापन

पूरी होगी सुयोग्य वर की कामना


जया पार्वती व्रत समापन ( Jaya Parvati Vrat Ends)



जया पार्वती व्रत माता पार्वती को समर्पित पर्व है। यह विशेष रूप से गुजरात में मनाया जाने वाला पर्व है। सुहागिन स्त्रियां ये व्रत रखकर माता से अपना सुहाग अखंड होने की कामना करती हैं और कुंवारी कन्याएं ये व्रत सुयोग्य वर पाने के लिए रखती हैं। जयापार्वती व्रत हर वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि से प्रारंभ होकर कृष्ण पक्ष की तृतीया पर समाप्त होता है। आइए जानते हैं इस साल यह कब समाप्त होंगे और क्या होगा शुभ मुहूर्त।

जया पार्वती व्रत समापन कब है (Jaya Parvati Vrat 2024 Date and Time)


जया पार्वती व्रत बुधवार 24 जुलाई को श्रावण कृष्ण तृतीया पर समाप्त होगा। तृतीया तिथि मंगलवार 23 जुलाई को सुबह 10 बजकर 23 मिनट पर प्रारंभ होगी। और तृतीया तिथि का समापन 24 जुलाई को सुबह 07 बजकर 30 मिनट तक रहेगा।

जया पार्वती व्रत समापन के शुभ मुहूर्त (Jaya Parvati Vrat 2024 Shubh Muhurta)


  • इस दिन ब्रह्म मुहूर्त प्रातः 03 बजकर 57 मिनट से प्रातः 04 बजकर 39 मिनट तक रहेगा।
  • प्रातः सन्ध्या मुहूर्त प्रात: 04 बजकर 18 मिनट से सुबह 05 बजकर 21 मिनट तक होगा।
  • अभिजित मुहूर्त नहीं है।
  • विजय मुहूर्त दिन में 02 बजकर 19 मिनट से 03 बजकर 12 मिनट तक रहेगा।
  • इस दिन गोधूलि मुहूर्त शाम में 06 बजकर 47 मिनट से 07 बजकर 09 मिनट तक रहेगा।
  • सायाह्न सन्ध्या काल शाम में 06 बजकर 47 मिनट से 07 बजकर 51 मिनट तक रहेगा।
  • इस दिन अमृत काल दिन में 11 बजकर 39 मिनट से 01 बजकर 07 मिनट तक रहेगा।
  • इस दिन निशिता मुहूर्त दिन में 11 बजकर 43 मिनट से 12 बजकर 26 मिनट तक रहेगा।

जया-पार्वती व्रत पूजा विधि (Jaya Parvati Vrat 2024 Puja Vidhi)


  • आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाएं।
  • इसके बाद स्नानादि कार्यों से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
  • व्रत के पहले दिन एक पात्र में ज्वार या गेहूं के दानों को बोकर पूजा के स्थान पर रख दें और अगले 5 दिनों तक ज्वार के पात्र में जल,अक्षत पुष्प, रोली, और रूई की माला चढ़ाएं।
  • रूई से बनी इस माला के हार को नगला के नाम से जाना जाता है, जिसे कुमकुम से सजाया जाता है।
  • इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विधान है। इसलिए घर के मंदिर में एक आसन पर लाल कपड़ा बिछाकर माता पार्वती और भगवान शिव की प्रतिमा को स्थापित करें।
  • इसके बाद भगवान के समक्ष दीप जलाएं और व्रत का संकल्प लें।
  • अब शिव-पार्वती जी को कुमकुम, अष्टगंध, शतपत्र,कस्तूरी और फूल, नारियल, नैवेद्य, ऋतु फल, धूप पंचामृत आदि अर्पित करें। साथ ही मां पार्वती को सुहाग की सामग्री चढ़ाएं।
  • अगर आपने बालू या रेत से बने हाथी का निर्माण किया है तो उस पर पांच प्रकार के फल, फूल और प्रसाद अवश्य चढ़ाएं।
  • इसके बाद व्रत कथा का पाठ करें और फिर माता पार्वती और भगवान शिव की आरती उतारें। आखिरी में माता पार्वती का ध्यान करते हुए सुख-सौभाग्य और गृह शांति की कामना करें और अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगे।
  • व्रत के पांचवे दिन आप सुबह स्नान करके माता पार्वती, भगवान शिव और ज्वार पात्र की पूजा करें और रात्रि में भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें।
  • अगले दिन रेत के हाथी और ज्वार के पौधों को किसी पवित्र नदी या तालाब में विसर्जित करें। इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दान-दक्षिणा देने के पश्चात, हरी सब्जी तथा गेहूं से बनी रोटियों से व्रत का पारण करें।

जया पार्वती व्रत का पारण क्यों ज़रूरी है? (Importance of Jaya Parvati Vrat Paran)


मान्यताओं के अनुसार, किसी व्रत या उपवास के दूसरे दिन किया जाने वाला पहला भोजन पारण कहा जाता है। यदि विधि विधान से किसी व्रत का पारण ना किया जाए, तो व्रत अधूरा माना जाता है और व्रती को उसका पूरा फल नहीं मिलता है। जया पार्वती व्रत आषाढ़ मास में शुक्ल पक्ष त्रयोदशी से आरम्भ होता है और पांच दिन बाद कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि पर संपन्न होता है। जो स्त्रियां एक बार जया पार्वती व्रत रखने का संकल्प लेती हैं, उन्हें पांच साल, सात साल, नौ साल, ग्यारह साल या लगातार बीस वर्षों तक हर साल इस व्रत का पालन करना चाहिए।

जो जातक जया पार्वती का व्रत रखते हैं, उनके लिए व्रत के पांच दिनों के दौरान भोजन में नमक का सेवन करना वर्जित होता है। कुछ भक्तगण इस व्रत के समय अनाज व सभी तरह की सब्जियों का उपयोग भी नहीं करते हैं। जया पार्वती व्रत के पहले दिन एक छोटे बर्तन में ज्वार या गेहूं के दाने बोए जाते हैं, और उसे पूजा स्थल पर रखा जाता है। इसके बाद व्रत के पाँच दिन तक इस पात्र की पूजा की जाती है।

गौरी तृतीया को, यानि व्रत के अन्तिम दिन सुबह पूजा करने के बाद इस पांच दिवसीय व्रत का पारण किया जाता है। उससे एक दिन पहले की रात्रि में स्त्रियां जागरण करती हैं व पूरी रात भजन-कीर्तन करते हुए मां पार्वती का सुमिरन करती हैं। इस रात्रि जागरण की परंपरा को जयापार्वती जागरण कहा जाता है।

अगले दिन, यानि गौरी तृतीया को प्रातः गेहूं या ज्वार को पात्र से निकालकर किसी पवित्र नदी में प्रवाहित किया जाता है। ये पूजा संपन्न होने के बाद, व्रत रखने वाली स्त्रियां नमक, सब्जियों व गेहूं से बनी रोटियां खाकर व्रत का पारण करती हैं। इस प्रकार जया पार्वती का व्रत संपन्न हो जाता है।


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