हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी व्रत 2024
चतुर्थी व्रत भगवान गणेश को समर्पित है। इस दिन जातक गणेश जी की विशेष पूजा अर्चना करते हैं। पंचांग के अनुसार हर मास में दो चतुर्थी आती हैं। एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में। हर महीने पड़ने वाली चतुर्थी तिथियों के अलग-अलग नाम हैं, जिनमें से भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है।
इस लेख में हम जानेंगे:
- कब मनाई जाएगी हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी?
- संकष्टी चतुर्थी का क्या महत्व है?
- संकष्टी चतुर्थी का शुभ मुहूर्त क्या है?
- संकष्टी चतुर्थी की पूजन सामग्री क्या है?
- संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि क्या है?
- संकष्टी चतुर्थी से मिलते हैं ये लाभ?
- संकष्टी चतुर्थी के दौरान इन बातों का रखें ध्यान!
चलिए जानते हैं कि किस दिन है हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी?
- हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाएगी। जो कि साल 2024 में 22 अगस्त, गुरुवार को पड़ रही है।
- संकष्टी के दिन चन्द्रोदय का समय रात 08 बजकर 20 मिनट पर रहेगा।
- चतुर्थी तिथि का प्रारम्भ 22 अगस्त को दोपहर 01 बजकर 46 मिनट से होगा।
- वही चतुर्थी तिथि 23 अगस्त को रात 10 बजकर 38 मिनट पर समाप्त होगी।
संकष्टी चतुर्थी का क्या महत्व है?
संकष्टी चतुर्थी का व्रत प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है। बुद्धि एवं विवेक के देवता गणेश जी को समर्पित यह व्रत समस्त कष्टों को हरने वाला और धर्म, अर्थ, मोक्ष, विद्या, धन व आरोग्य प्रदान करने वाला है। शास्त्रों में भी कहा गया है कि जब मन संकटों से घिरा महसूस करें, तो संकष्टी चतुर्थी का अद्भुत फल देने वाला व्रत करें, और भगवान गणपति को प्रसन्न कर मनचाहे फल की कामना करें।
आइये जानते हैं इस चमत्कारिक व्रत के महत्व और इससे मिलने वाले लाभों के बारे में।
हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी का शुभ मुहूर्त क्या है?
- इस दिन ब्रह्म मुहूर्त प्रातः 04 बजकर 06 मिनट से प्रातः 04 बजकर 50 मिनट तक रहेगा।
- प्रातः सन्ध्या मुहूर्त प्रात: 04 बजकर 28 मिनट से सुबह 05 बजकर 35 मिनट तक होगा।
- अभिजित मुहूर्त दिन में 11 बजकर 35 मिनट से 12 बजकर 26 मिनट तक रहेगा।
- विजय मुहूर्त दिन में 02 बजकर 09 मिनट से 03 बजकर 01 मिनट तक रहेगा।
- इस दिन गोधूलि मुहूर्त शाम में 06 बजकर 27 मिनट से 06 बजकर 49 मिनट तक रहेगा।
- सायाह्न सन्ध्या काल शाम में 06 बजकर 27 मिनट से 07 बजकर 33 मिनट तक रहेगा।
- इस दिन अमृत काल सुबह 05 बजकर 47 मिनट से 07 बजकर 13 मिनट तक रहेगा।
- निशिता मुहूर्त रात 11 बजकर 38 मिनट से 23 अगस्त की रात 12 बजकर 23 मिनट तक रहेगा।
- सर्वार्थ सिद्धि योग रात 10 बजकर 05 मिनट से 23 अगस्त की रात 05 बजकर 35 मिनट तक रहेगा।
क्यों मनाई जाती है संकष्टी चतुर्थी?
इस दिन गणेश भगवान की पूजा का विधान है। संकष्ट का अर्थ है कष्ट या विपत्ति। शास्त्रों के अनुसार संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत करने से सभी कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है। इस दिन माताएं गणेश चौथ का व्रत करके अपनी संतान की दीर्घायु और कष्टों के निवारण के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं।
संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व
जैसा की इस चतुर्थी के नाम से ही स्पष्ट है संकष्टी, जिसका अर्थ है संकट को हरने वाली चतुर्थी। जो भी व्यक्ति इस दिन पूरे मन से गणपती जी के लिए व्रत रखता है, उसके सभी कष्टों और दुखों का नाश हो जाता है।
गणेश जी का दूसरा नाम विघ्नहर्ता भी है। माना जाता है की इस व्रत से विघ्नहर्ता गणेश घर में आ रहे सभी विघ्न एवं बाधाओं को हर लेते है। यह व्रत सभी आर्थिक समस्याओं से मुक्ति भी प्रदान करता है।
संकष्टी चतुर्थी के दिन गणपति बप्पा की पूजा करने से घर में चारों ओर एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियां दूर होती है और घर में शांति भी बनी रहती है।
ऐसा माना जाता है कि इस पवित्र व्रत को रखने से संतान को दीर्घायु होने का आशीर्वाद मिलता है। मान्यता है कि विधिपूर्वक इस दिन भगवान गणेश की उपासना करने से संतान को आरोग्य और लंबी उम्र की प्राप्ति होती है। साथ ही, कहा जाता है कि गणेश की उपासना से ग्रहों के अशुभ प्रभावों को भी कम किया जा सकता है। शास्त्रों के अनुसार संकष्टी चतुर्थी का यह व्रत परम मंगल करने वाला है।
संकष्टी चतुर्थी की पूजन सामग्री क्या है?
रिद्धि सिद्धि और बुद्धि के देवता भगवान गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए हर माह लम्बोदर संकष्टी चतुर्थी का व्रत और पूजन किया जाता है। ज्यादातर महिलाएं इस पूजा को अपनी संतान की सलामती और परिवार में सुख समृद्धि की कामना के साथ करती है। संकष्टी चतुर्थी की पूजा में सम्पूर्ण और सटीक पूजा सामग्री का होना बहुत जरूरी है, क्योंकि इसी से आपकी पूजा सफल होगी।
इसीलिए इस लेख में हम आपके लिए लेकर आए हैं संकष्टी चतुर्थी पूजा की सामग्री, जो कुछ इस प्रकार है:
- चौकी
- गणपति जी की प्रतिमा या तस्वीर
- लाल वस्त्र
- ताम्बे का कलश
- गंगाजल मिश्रित जल
- घी का दीपक
- हल्दी- कुमकुम
- अक्षत
- चन्दन
- मौली या जनेऊ
- तिल
- तिल-गुड़ के लड्डू
- लाल फूल
- दूर्वा
- पुष्प माला
- धुप
- कर्पूर
- दक्षिणा
- फल या नारियल
लम्बोदर संकष्टी चतुर्थी पर चन्द्रमा को अर्घ्य देने और पूजा के लिए
- ताम्बे का कलश
- दूध मिश्रित जल
- पूजा की थाली
- हल्दी - कुमकुम
- अक्षत
- भोग
- घी का दीपक
- फूल
- धूप
इस सामग्री को पूजा शुरू करने से पहले ही इकट्ठा कर लें, ताकि गणेश जी की पूजा करते समय आपको किसी तरह की कोई बाधा का सामना न करना पड़ें। इस सामग्री के द्वारा पूजा करने से आपकी संकष्टी चतुर्थी की पूजा जरूर सफल होगी और भगवान गणेश आपकी हर मनोकामना को जरूर पूरा करेंगे।
संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि क्या है?
प्रत्येक संकष्टी चतुर्थी के अधिदेवता प्रथम पूज्य भगवान गणेश को माना है। कहा जाता है कि संकष्टी चतुर्थी का अर्थ ‘कठिन समय से मुक्ति पाना’ है। इस दिन विधि विधान से पूजा अर्चना करने से भगवान गणेश अपने भक्तों के हर संकट को हर लेते हैं इसलिए संकष्टी चतुर्थी के दिन सम्पूर्ण विधि से गणपति जी की पूजा-पाठ की जाती है।
तो आइए, जानें कि संकष्टी चतुर्थी की विधिपूर्वक पूजा कैसे की जाती है?
सबसे पहले शुरू करते हैं पूजा की तैयारी, इसके लिए
- संकष्टी चतुर्थी के दिन आप प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठ जाएँ।
- व्रत करने वाले लोग सबसे पहले नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करें।
- इसके बाद साफ़ और धुले हुए कपड़े पहन लें।
- सूर्यदेव को जल से अर्घ्य दें और व्रत का संकल्प लें।
- इसके बाद पूरे दिन का व्रत धारण करें, और संध्या समय में गणपति की पूजा की शुरुआत करें।
- पूजा के लिए सभी सामग्री एकत्रित कर लें।
- जहाँ आपको चौकी की स्थापना करनी है, उस स्थान को अच्छे से साफ कर लें।
ध्यान देने योग्य बात - गणपति की पूजा करते समय जातक को अपना मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए।
यदि संभव हो तो इस दिन पूजा में जनेऊ और दूर्वा को भी अवश्य शामिल करें। यह भगवान गणेश को प्रिय है।
तो चलिए पूजा विधि शुरू करते हैं:
- सबसे पहले साफ़ किये गए स्थान पर चौकी स्थापित करें। इस पर लाल वस्त्र बिछाएं।
- कलश से फूल की सहायता से थोड़ा सा जल लेकर इस चौकी पर छिड़कें।
- अब इस चौकी के दाएं तरफ अर्थात आपके बाएं तरफ एक दीपक प्रज्वलित करें।
- अब गणपति जी के आसन के रूप में चौकी पर थोड़ा सा अक्षत डालें, और यहां गणपति जी को विराजित करें।
- अब भगवान जी पर फूल की सहायता से गंगाजल छिड़क कर उन्हें स्नान करवाएं।
- गणपति जी की मूर्ति को फूलों से अच्छी तरह से सजा लें।
- भगवान गणेश को हल्दी- कुमकुम-अक्षत, चन्दन आदि से तिलक करें। और स्वयं को भी चन्दन का तिलक लगाएं।
- इसके बाद वस्त्र के रूप में गणेश जी को मौली अर्पित करें।
- अब चौकी पर धुप-दीपक जलाएं, भगवान गणपति को तिल के लड्डू, फल और नारियल आदि का भोग लगाएं।
- भगवान के समक्ष क्षमतानुसार दक्षिणा रखें। अब संकष्टी व्रत कथा का पाठ करें।
- इसके बाद गणेश जी की आरती करें। यह आरती श्री मंदिर पर आपके लिए उपलब्ध है।
- अब रात में चाँद निकलने पर चंद्रदेव की पंचोपचार से पूजा करें और एक कलश में जल और दूध के मिश्रण से चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
- इस तरह आपकी पूजा सम्पन्न होगी।
- पूजा समाप्त होने के बाद सबमें प्रसाद बाटें और खुद भी प्रसाद ग्रहण करें।
संकष्टी चतुर्थी पर रात को चाँद देखने के बाद ही व्रत खोला जाता है और इस प्रकार संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूर्ण होता है। हम आशा करते हैं आपका यह संकष्टी चतुर्थी का व्रत सफल बनें।
संकष्टी चतुर्थी से मिलते हैं ये लाभ?
संकष्टी चतुर्थी पर व्रत रखना अत्यंत फलदायी होता है। आज हम बात करेंगे कि इस शुभ तिथि पर किये गए व्रत और पूजन से मनुष्य को वे कौन से 5 लाभ प्राप्त होते हैं, जो उनके जीवन को सफल बनाने में उनकी सहायता करते हैं।
इनमें सर्वप्रथम लाभ है - संतान दीर्घायु और निरोगी बनती है
संकष्टी चतुर्थी पर पूरी श्रद्धा से किया गया व्रत और अनुष्ठान आपकी संतान को सभी विषम परिस्थितियों से बचाता है। माताएं विशेषकर इस दिन अपनी संतान की सुरक्षा और लम्बी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और उनके व्रत से प्रसन्न होकर भगवान गणेश उनकी इस मनोकामना को अवश्य पूरा करते हैं। यदि आप भी अपनी संतान के लिए हर माह व्रत रखना चाहती हैं तो इस व्रत का पालन अवश्य करें।
सकंष्टी चतुर्थी से मिलने वाला दूसरा बड़ा लाभ है - कठिन परिस्थितियों से मुक्ति
संकष्टी का शाब्दिक अर्थ होता है सभी संकटों से मुक्ति पाना। संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत करने से मिलने वाला यह विशेष लाभ है। दैनिक जीवन में ऐसे कई कार्य होते हैं, जहाँ आपको अड़चनों का सामना करना पड़ता है और अंत में वे कार्य नहीं बन पाते हैं। संकष्टी चतुर्थी के व्रत के प्रभाव से सभी तरह की बाधाओं और अड़चनों से मुक्ति मिलती है। इस दिन पूरे समर्पण के साथ व्रत रखने से प्रथम पूज्य भगवान गणेश अपने भक्तों के सभी कष्टों को हरकर उनके जीवन को आसान बनाते हैं।
तीसरा लाभ है परिवार में सुख समृद्धि
संकष्टी चतुर्थी पर किये गए व्रत से व्रती के सभी परिवारजनों पर गणपति जी की कृपा बरसती है। संकष्टी चतुर्थी के दिन की गई विधिपूर्वक पूजा से संपूर्ण कुटुंब को सुखी जीवन का आशीर्वाद लाभ के रूप में मिलता है। इस तिथि पर किया गया व्रत बहुत ही प्रभावशाली होता है, और यदि घर में कोई एक सदस्य भी इस व्रत का पालन करें तो उस घर से सभी नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है और परिवार में समृद्धि का वास होता है।
चौथा लाभ है दुर्लभ मनोकामनाओं की पूर्ति
संकष्टी चतुर्थी का व्रत और पूजन करने से मनुष्य की कई दुर्लभ इच्छाओं की पूर्ति हो सकती है। मंगलमूर्ति भगवान गणेश बहुत दयालु हैं और वे संकष्टी चतुर्थी पर व्रत करने वाले अपने भक्तों की हर मनोकामना को पूरा करते हैं। इस दिन पूरी आस्था से गणपति जी का ध्यान करना बहुत लाभदायक होता है इसीलिए आप भी अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए इस शुभ तिथि पर सच्चे मन से व्रत अवश्य करें।
पांचवा लाभ है बुद्धि और ज्ञान पूर्ति
हिन्दू धर्म में गणेश जी को बुद्धि का दाता माना जाता है, और चूँकि संकष्टी चतुर्थी की तिथि भगवान गणेश को ही समर्पित है, इसीलिए इस दिन व्रत करने से गणपति जी प्रसन्न होकर अपने भक्तों को ज्ञान और बुद्धि का वरदान देते हैं। इस दिन गणेशजी के मन्त्रों का उच्चारण करने से मनुष्य को ध्यान क्रेंदित करने में मदद मिलती है। इस दिन व्रत करने के साथ ही आप मन लगाकर किसी भी परीक्षा या प्रतियोगिता की तैयारी करें। आपको लाभ जरूर प्राप्त होगा।
संकष्टी चतुर्थी के व्रत से मिलने वाले यह विशेष लाभ आपके जीवन को सफल और खुशहाल बनाएँगे। हम आशा करते हैं यह आपके लिए सहायक होगा और आपको गणेश जी का आशीर्वाद मिलता रहेगा।
संकष्टी चतुर्थी के दौरान इन बातों का रखें ध्यान!
कुछ ऐसे भी कार्य हैं जिन्हें संकष्टी चतुर्थी के दिन भूलकर भी नहीं करना चाहिए। यदि आपने यह सावधानियां नहीं बरतीं तो आपका संकष्टी चतुर्थी का व्रत विफल भी हो सकता है।
आइये इस लेख में जानें वे कौन सी बातें है, जिनका चतुर्थी व्रत के दौरान ध्यान रखना आपके लिए जरूरी है।
गणेश जी को तुलसी और केतकी के फूल अर्पित न करें
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रथम पूज्य भगवान गणेश की पूजा में तुलसी के पत्ते और केतकी के फूल को सम्मिलित नहीं किया जाता है। तुलसी भगवान गणेश को अप्रिय है, वहीं केतकी का फूल भगवान शिव को अर्पित करना वर्जित होता है, इसीलिए यह फूल गणेश जी को भी नहीं चढ़ाया जाता है। आप ये दो पुष्प और पत्र भूलकर भी गणेश जी को अर्पित न करें, इससे आपकी पूजा निष्फल हो सकती है।
उपाय : भगवान गणेश जी को दूर्वा और गुड़हल का फूल चढ़ाएं।
व्यवसाय संबंधी कार्य आरम्भ न करें
हिन्दू कैलेंडर में हर चतुर्थी को रिक्ता तिथि माना जाता है। इसीलिए इस दिन अपने व्यवसाय और नौकरी से जुड़े किसी भी नए कार्य की शुरआत नहीं करनी चाहिए। इस दिन नए व्यापार और रोजगार से संबंधित कार्य शुरू करने से उस कार्य के सफल होने की संभावना कम होती है। इसलिए संकष्टी चतुर्थी पर इस बात का अवश्य ध्यान रखें।
उपाय : व्यवसाय से जुड़े काम शुरू करने के लिए किसी अन्य दिन को चुनें।
माता पिता और बड़ों का अनादर न करें
हम सभी यह जानते हैं कि भगवान गणेश अपने माता पिता भगवान शिव और पार्वती से कितना स्नेह करते हैं। उनके लिए माता-पिता समस्त ब्रह्माण्ड के समान हैं। इसीलिए संकष्टी चतुर्थी के दिन अपने माता पिता और किसी भी बड़े-बुजुर्ग का अनादर न करें। यदि आप ऐसा करते हैं तो आप भगवान गणेश के प्रकोप के भागी अवश्य बनेंगे।
उपाय : इस दिन निकटतम गणेश मंदिर में अवश्य जाएं।
चंद्रदेव के दर्शन और पूजा के बिना व्रत न खोलें
संकष्टी चतुर्थी पर इस बात का ध्यान रखें कि इस दिन किया गया व्रत चन्द्रदेवता के पूजन और दर्शन के बिना नहीं खोला जाता है। आप इस शुभ दिन पर गणेशजी की विधि पूर्वक पूजा करने के बाद चन्द्रमा को जल और दूध के मिश्रण से अर्घ्य अवश्य दें। इसके बिना आपकी संकष्टी चतुर्थी की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाएगी। साथ ही चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद ही सात्विक भोजन से अपना व्रत खोलें। चंद्र दर्शन किये बिना व्रत खोलने से व्रत का फल प्राप्त नहीं होगा।
उपाय : इस दिन चन्द्रोदय का समय देखें और उसी के अनुसार व्रत खोलें।
सदाचार और ब्रह्मचर्य का पालन करना न भूलें
भगवान गणेश जी को समर्पित संकष्टी चतुर्थी के दिन ब्रह्मचर्य और सदाचार का पालन अवश्य करें। किसी भी तरह के दुष्विचार और अनैतिकता को इस दिन मन में न आने दें। इसके साथ ही झूठ न बोलें, किसी की निंदा न करें और किसी भी जीव को हानि न पहुंचाएं।
उपाय : इस दिन गणेश जी के मन्त्रों और चालीसा का जप करें।
तामसिक भोजन से दूर रहें
संकष्टी चतुर्थी के दिन आप तामसिक भोजन और किसी भी तरह के व्यसन से दूर रहें। इस दिन लहसुन-प्याज आदि से बना मसालेदार खाना, मांस, मदिरा आदि का सेवन न करें। ऐसा करने से आपको इस व्रत और आपके द्वारा किये जा रहे पूजन-अनुष्ठान का पूरा लाभ नहीं मिलेगा। साथ ही कोशिश करें कि आपके घर में भी किसी अन्य सदस्य द्वारा मांस-मदिरा का सेवन न किया जाए।
उपाय : बिना लहसुन-प्याज से बना सादा शाकाहारी भोजन ग्रहण करें।
इसी तरह की और जानकारियों के माध्यम से श्री मंदिर आपके हर व्रत और पूजा को सफल बनाने के लिए प्रयासरत है। तो बने रहिये श्री मंदिर के साथ।